संत कबीर की दृष्टि 21 वीं सदी पर भी थी!

 

साजिद अंसारी/सलिल पाण्डेय की रिपोर्ट

मिर्जापुर । समाजसुधारक सन्त कवि कबीर जन्मे थे तो 16 शताब्दी में लेकिन उनकी नजर थी 21वीं सदी पर भी थी । जब वे दोहा “कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सब की खैर, ना काहू से दोस्ती नहिँ किसी से बैर” लिख रहे थे तो वे जानते थे कि अर्थवादी और भौतिकता के चलते समाज में संवेदनशून्यता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी और पूरी दुनियां अर्थ की होड़ में गुटों में विभक्त हो जाएगी तब भारी संकटों के कारण गुट निरपेक्ष आन्दोलन के बिना लोक कल्याण नहीं होगा । कबीर की यह पंक्तियाँ संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका की ओर इशारा करती हैं कि कोई ऐसा व्यक्ति या संगठन हो जो मानव-कल्याण को महत्ता दे । प्रकारान्तर से कबीर अपनी स्थिति ‘ना काहु से दोस्ती ना काहु से बैर’ के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ की निरपेक्षता पर जोर देते है ताकि कहीं ऐसा न हो कि भौतिकता की होड़ में मनुष्य जानवर बन जाए । कबीर के एक दूसरे दोहे ” सांई से सब होत है बन्दे ते कछु नाहिं, राई से पर्वत करे पर्वत राई माहि” में भी वे सांई शब्द प्रयोग करते हुए व्यक्ति में आदर्शो एवं संस्कारों की विशिष्टता का एहसास करा रहे है क्योंकि संरक्षण देने वाला ही सांई (मालिक) हो सकता है जबकि ‘वन्दे’ शब्द के माध्यम से निरन्तर वन्दगी, जी-हुजूरी, खुशामदी तथा दूसरों के बल पर जीवन जीने वालों  से किसी उपलब्धि की आशा नहीं की जा सकती । इस दोहे में कबीर के वनस्पतिशास्त्र का ज्ञाता होना भी झलकता है । कबीर ‘वंदा’ नाम के उस पेड़ से परिचित दिखते है जो परजीवी है और आसपास के पेड़ों का खुराक लेकर बढ़ता है । यहां कबीर दूसरों का हक छीनने की   कोशिशों पर कटाक्ष कर रहे हैं । इस तरह के लोग ठाठ-बाट से भले जीते हैं पर समाज मे कुछ ऐसा बड़ा या नया काम नहीं कर सकते कि जमाना उनके पीछे चले या उन्हें लम्बे दिनों तक याद करे । इसी   दोहे में आगे कबीर का आधुनिक हाईटेक दुनियां का अनुमान शत प्रतिशत खरा है । हाईटेक युग मे राई जैसे पेन ड्राइव (चिप) में विशाल दुनियां के साथ अंतरिक्ष तक  को समेट लेने की तकनीक सामने है । सन्त कबीर का भौतिकता पर भी कटाक्ष इस दोहे के जरिए देखा जा सकता है जिसमें वे लिखते है कि “काकर पाथर जोड़ के मस्जिद दई बनाय,ता चढ़ी मुल्ला बाग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय” । यहां भौतिकता (आलीशान पत्थर के भवनों) के बल पर सम्मान पाने  की कोशिशों पर व्यंग्य परिलक्षित होता है । मानवीय गुणों से हीन व्यक्ति येन-केन-प्रकारेण धन कमाकर और भौतिक उपकरणों के बल पर श्रेष्ठ बन रहा है । सन्त कवियों में गोस्वामी तुलसीदास ने भी रामचरित मानस में अनेक प्रसंगों में इस तरह की प्रवृत्तियों को रेखांकित किया है ।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सन्त कबीर ने अपने तीसरे नेत्र से आने वाले समय को देख लिया था । जाहिर है कि कबीर सचाई के बल पर जीवन मे तप किया जिसके चलते वें भगवान शंकर की तरह  त्रिनेत्रधारी हो गए ।

 

बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल

कबीर के पदचिह्नों पर उनका पुत्र कमाल भी चल पड़ा । एक बार कबीर ने कमाल से कहा-‘जाओ बकरी के लिए घास-पात काट के ले आओ’ । कमाल घासपात काटने के लिए हंसिया उठाया तो हवा के झोंकों से हिलते घासपात को देखकर कमाल को लगा कि घासपात में जीवन है और हंसिया देखकर वह न काटने का संकेत कर रहा है । कमाल बिना घासपात काटे लौट आया तो कबीर ने खाली हाथ लौटने का कारण पूछा । कमाल बोल पड़ा- ‘पिताजी, हंसिया देख घासपात आरजू करने लगे कि हमें न कांटो । कबीर चिंता में पड़ गए कमाल की बात सुनकर । उन्होंने अपनी पत्नी लोई से कहा कि अब कमाल की शादी जल्दी करा दिया जाए वरना यह साधु बन जाएगा । उनकी पत्नी लोई ने बेटे कमाल से जब शादी की बात की तब कमाल बोल पड़ा- किससे शादी करूं ? सारी स्त्रियां मुझे मां की तरह लगती हैं । यह सुनकर कबीर बोल पड़े-”बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल” । यहाँ कमाल का दो अर्थ है । एक तो बेटा दूसरा अद्वितीय ।

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