फसलों के अवशेष से बनायें जैविक खाद उसे जलायें न किसान-डा०वी.पी.सिंह

राकेश मौर्य की रिपोर्ट

 

बहराइच विकास खंड तेजवापुर क्षेत्र किसानों ने गेहूं फसल काट कर खेत खाली कर चुके हैं अब क्षेत्र के किसान खेतों की जुताई कराने के खेत में गेहूं की नराई खेत में ही जलाने काम किसान बेधड़क कर रहे हैं। जागरूकता के अभाव में किसान गेहूं की नराई खेतों में ही जलाने रहे।शायद उन्हें ये नहीं ज्ञात है कि फसलों के अवशेष को जलाना खेत की मिट्टी के लिए कितना घातक साबित हो सकता है। विकास खंड तेजवापुर के ग्राम पंचायत खैरटिया अमीनपुर,अकिलापुर,टेपरा,टेडंवाव खसहा मोहम्मदपुर  में कई किसान अपने खेत नराई जला चुके है।वे अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। जबकि कृषि विभाग द्वारा प्रदेश के किसानों से अपील की गई है कि वे गेहूं कटने के बाद बचे हुए फसल अवशेष ‘नराई’ को खेतों में न जलाएं। नराई को जलाना खेती के लिये आत्मघाती कदम सिद्ध हो सकता है। नराई जलाने का कृत्य धारा 144 के तहत प्रतिबंधित है। नराई में आग लगाने पर पुलिस द्वारा प्रकरण भी कायम किया जा सकता है।

 

कृषि वैज्ञानिक केन्द्र बहराइच के कृषि वैज्ञानिक डा० बीपी सिंह ने बताया कि इस सम्बन्ध में  शासन के नोटिफिकेशन में निषेधात्मक निर्देश दिये गये हैं। निर्देशों के उल्लंघन किये जाने पर व्यक्ति, निकाय को नोटिफिकेशन प्रावधान अनुसार दो एकड़ से कम भूमि रखने वाले को ढाई हजार प्रति घटना पर्यावरण क्षतिपूर्ति, दो से पांच एकड़ भूमि रखने वाले को पांच हजार प्रति घटना क्षतिपूर्ति एवं पांच एकड़ से अधिक भूमि रखने वाले को 15 हजार प्रति घटना पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि देना होगी।

 

श्री सिंह ने बताया कि नराई में आग लगाने से भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है। भूमि के सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। फलस्वरूप जैविक खाद का निर्माण बन्द हो जाता है। भूमि की ऊपरी पर्त में ही पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं। आग के कारण पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। भूमि कठोर हो जाती है। इससे जलधारण क्षमता कम होती है, फसल सूखती है, खेत की सीमा पर पेड़-पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं, पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है, वातावरण के तापमान में वृद्धि से धरती गर्म होती है, कार्बन से नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस का अनुपात कम हो जाता है, केंचुए नष्ट हो जाते हैं, इससे भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, नरई जलाने से जन-धन की हानि होती है। नराई के सदुपयोग की सलाह देते हुए डा० बीपी सिंह बताया कि जलाने की अपेक्षा अवशेषों और डंठलों को एकत्रित करके जैविक खाद जैसे भू-नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जाये तो वे बहुत जल्दी सडक़र पोषक तत्वों से भरपूर पोषक खाद बना देते हैं। इनसे कृषक स्वयं जैविक खाद बना सकते हैं। खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हैरो आदि की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से आने वाली फसलों में जैवांश खाद की बचत की जा सकती है।

 

ऐसे बढ़ सकती खेत की उपजाऊ क्षमता-

 

कृषि वैज्ञानिक केन्द्र बहराइच के कृषि वैज्ञानिक डा० बीपी सिंह कहते हैं कि- “मक्का, गेहूं, धान आदि फसलों का खेत में काफी अवशेष बच जाता है। ऐसे में किसानों को फसल अवशेष को नहीं जलाना चाहिए। जलाने से मृदा में मौजूद कार्बन और जीवाणुओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इससे मृदा के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। फसल अवशेष को खेत में ही जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए। आजकल जब गोबर की खाद नहीं मिलती है तो ऐसे में किसान फसल अवशेष का समुचित प्रबंधन कर खेत की उर्वरता बढ़ा सकते हैं। धान के साथ ही दूसरे फसल अवशेष से भी खेत की उर्वरता बढ़ायी जाती है।”

 

ऐसे करें अवशेष का प्रबंधन-

 

फसल अवशेषों का उचित प्रबन्ध करने के लिये आवश्यक है कि अवशेष (गन्ने की पत्तियों, धान की पराली) को खेत में जलाने के बजाय उनसे कम्पोस्ट तैयार कर खेत में प्रयोग करना चाहिए। उन क्षेत्रों में जहां चारे की कमी नहीं होती वहां धान की पुआल को खेत में ढेर बनाकर खुला छोडऩे के बजाय गड्ढ़ों में कम्पोस्ट बनाकर उपयोग कर सकते हैं।

 

मूंग व उड़द की फसल में फलियां तोड़कर खेत में मिला देना चाहिये। इसी तरह केले की फसल के बचे अवशेषों से यदि कम्पोस्ट तैयार कर ली जाय तो उससे 1.87 प्रतिशत नाइट्रोजन 3.43 प्रतिशत फास्फोस तथा 0.45 प्रतिशत पोटाश मिलता है।

 

खेत में अवशेष प्रबंधन-

 

फसल की कटाई के बाद खेत में बचे अवशेष घासफूस, पत्तियां व ठूंठ आदि को सड़ाने के लिये किसान फसल को काटने के बाद 20-25 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हैक्टयर की दर से छिड़क कर कल्टीवेटर या रोटावेटर से मिट्टी में मिला देना चाहिये इस प्रकार अवशेष खेत में ही सडऩा शुरू हो जाएंगे।

 

 

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