संतोष गुप्ता की रिपोर्ट:
चन्दौली : शहाबगंज विकासखंड के मसोई गांव में चल रहे भागवत कथा के दूसरी निशा में कथावाचक पंडित चंद्र सागर जी महाराज ने कथा का गुणगान करते हुए भक्ति का विश्लेषण करते हुए कहा कि जो भगवान का हो जाय वही भागवत है ।भगवान के निवास का नाम भागवत है। भगवान के उपदेश का नाम भागवत है। इसलिए भगवान से जो संबंध जोड़ ले वह भागवत हो जाता है ।भगवत्प्रेम की प्राप्ति हेतु विशेष आयु ,बल, श्रेष्ठ, जाति ,योग्यता व रूप की आवश्यकता नहीं होती ।अपितु भक्तिभाव से ही प्रभु रीझ जाते हैं –
व्याध्य स्याचरणं ध्रुवस्य च वयो विद्या गजेंद्रस्य का ।
का जातिर्विदुरस्य यादवपते उग्रस्य किं पौरुषं ।।
अर्थात ध्रुव की आयु मात्र 5 वर्ष की थी । गजराज कौन सा विद्वान था ? विदुर जी तो दासी के पुत्र थे, और उग्रसेन में कौन सा पौरुष था ? कुब्जा कौन सी रूपवती थी ? किंतु इन सब को कृष्ण की कृपा सुलभ हो गई ।केवल भाव के कारण । भगवान कपिल देव अपनी माता को सांख्यशास्त्र का उपदेश करते हुए 24 तत्वों का ज्ञान प्रदान करते हैं ।तत्वज्ञान होने पर मन दुख सुख के बंधन से मुक्त हो जाता है ।अहंकार और ममता के कारण ही सुख दुख होते हैं । लौकिक वासना से मन बिगड़ता है और वहीं मन अलौकिक वासना से सुधरता है । अर्थात मन यदि परमात्मा के नाम रूप गुण और लीला में आसक्त हो जाए तो जीव का परम कल्याण हो जाता है ।ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि उत्तानपाद राजा की दो पत्नियां हैं । एक सुरुचि अर्थात विषय आनंद और दूसरी सुनीति अर्थात भजनानंद। भजनानंद का पुत्र होता है ध्रुव। ध्रुव का अर्थ होता है अविनाशी। यानी जिस का विनाश नहीं होता है। उत्तम शब्द का अर्थ है ईश्वर के प्रति अज्ञानता वही सुरुचि का फल है। विषय आनंद दो 4 मिनट से अधिक नहीं रहता । माता सुनीति ने अपने पुत्र को भक्त बनाया ।माता ही संस्कार देने के कारण बच्चे की प्रथम गुरू होती है ।ध्रुव की भक्ति से भगवान ध्रुव को दर्शन देने नहीं अपितु ध्रुव का दर्शन करने हेतु पधारें ।अंत में मृत्यु देव ने भी ध्रुव के सामने सिर झुका दिया ।कथा में काफी संख्या में लोगों ने कथा का श्रवण किया ।