बरेली:मुस्लिम-यादव में अटकी सपा जिलाध्यक्ष की कुर्सी

सुमित शर्मा की रिपोर्ट

बरेली। लोकसभा चुनाव सिर पर है और समाजवादी पार्टी में जिलाध्यक्ष का नाम ही तय नहीं हो पा रहा है। दरअसल हाईकमान यह ही तय नहीं कर पा रहा है कि बरेली में जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर अपने परंपरागत वोटर यादव को बैठाया जाए या किसी मुस्लिम को।

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जिलाध्यक्ष की कुर्सी से शुभलेश यादव और महानगर अध्यक्ष की कुर्सी से कदीर अहमद को हटा तो दिया है लेकिन उनका विकल्प आज तक नहीं तलाशा जा सका है। दरअसल इन दोनों अध्यक्षों की कुर्सी जाने का बड़ा कारण पूर्व राज्यसभा सदस्य वीरपाल सिंह यादव का सपा छोड़कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में जाना रहा। वीरपाल प्रसपा में प्रदेश के मुख्य महासचिव बन चुके हैं और बरेली के पांच नेताओं को प्रसपा में प्रदेश सचिव बनाया गया है। इनमें तीन मुस्लिम, एक यादव और एक गुर्जर है। वीरपाल को जमीनी नेता माना जाता है ऐसे में सपा नेतृत्व बरेली को लेकर कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है। और उसकी यही एहतियात बरेली के कार्यकर्ताओं पर भारी पड़ती नजर आ रही है। सपा के स्थानीय नेता अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे हैं। एक दूसरे पर अनुशासनहीनता के आरोप लगाये जा रहे हैं।

बसपा से समझौता होने के बाद बरेली लोकसभा सीट पर तो सपा प्रत्याशी का उतरना तय माना जा रहा है वहीं आंवला लोकसभा सीट पर बसपा की दावेदारी से मामला फंस गया है। सूत्रों के अनुसार सपा हाईकमान बरेली में जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष की कुर्सी पर लोकसभा सीटें तय होने के बाद फैसला लेना चाहता है हालांकि तब भी मामला जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर फंसा है। सपा में अभी तक दो बार के अल्प समय को छोड़कर जिलाध्यक्ष हमेशा यादव ही रहा है वहीं महानगर अध्यक्ष मुस्लिम। इस बार लोकसभा चुनाव सिर पर है। ऐसे में हाईकमान के सामने असमंजस है कि वो जिलाध्यक्ष यादव को बनाये या किसी और को। दरअसल यादव को जिलाध्यक्ष नहीं बनाने पर सपा का यह परंपरागत वोट शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को जाने का खतरा है क्योंकि प्रसपा आंवला लोकसभा पर किसी यादव को मैदान में उतार सकती है। वहीं सपा नेतृत्व के सामने दूसरी समस्या यह है कि जिलाध्यक्ष की कुर्सी किसी मुस्लिम को दे दी जाए। दरअसल लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटरों को सहेज कर रखना भी बड़ी चुनौती है। अब ऐसे में मामला यहां अटका है कि जिलाध्यक्ष यादव को बनाया जाए या किसी मुस्ेिलम को। एक संकट और भी है। यादवों में तो जिलाध्यक्ष बनने के लिए कई दावेदार हैं लेकिन पार्टी के अधिकांश स्थापित मुस्लिम नेता जिलाध्यक्ष बनने को तैयार नहीं हैं। दरअसल उन्हें लगता है कि भाजपा सरकार में जिलाध्यक्ष बनना उनके लिए मुफीद नहीं रहेगा।

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