बाराबंकी:सरकारी आदेशों पर भारी पड़ रही है शिक्षकों की मनमानी

राम धीरज यादव की रिपोर्ट

बाराबंकी।शिक्षा के स्तर के बढ़ाने के लिए भले ही केंद्र सरकार के साथ साथ प्रदेश सरकार कड़े प्रयासो में लगी हुइ हो, लेकिन सरकारी टीचरों की मनमानी के आगे सभी प्रयास विफल हो रहे हैं। समय पर टीचरों के न आने के कारण मासूमों छात्र-छात्राओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है। शिक्षा के नाम पर सरकारी स्कूलों में टीचर मासूमों के भविष्य के साथ खिलवाड करते हुए उनका भविष्य बर्बाद करने में लगे हुए हैं। क्षेत्र के गांव  कोटवा सडक के प्राथमिक विधालय कोटवा सडक दो  में एक ऐसा ही मामला देेखने को मिला, जहां स्कूल टाइम होने के बाद भी कोई टीचर समय पर स्कूल नही पहुंच रहे  बल्कि तीन चार मासूम बंद क्लास रूम के दरवाजे पर अपने बस्तेे लटकाए जमीन पर बैठे हुए रहते है।  यह कोई पहला मामला नही है यह   प्रत्येक दिन की कहानी बन गई    ।  उनसे पूछा गया कि टीचर किस समय आते हैं तो मासूम छात्रों जवाब दिया कि प्रात: नौ बजे से तीन बजे तक स्कूल है, लेकिन कभी भी नौ बजे स्कूल नहीं खोला जता बल्कि लगभग दस बजे के करीब एक टीचर आ जाते है. लेकिन हमे छुट्टी एक से दो बजे  के बीच दी जाती है        । जबकि स्कूल में दो टीचरों की डयूटी है। इसके साथ ही दो आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की भी डयूटी इसी स्कूल में है और अधिकतर गैर हाजिर रहती है। अगर स्कूल पहुंचती भी है तो वह अपनी डयूटी के प्रति गंभीर नहीं है।

ग्रामीणों का आरोप है कि यहां तैनात   प्रधानाचार्या श्वेता भारती के मनमाने तौर तरीको के आगे जिले से लेकर तहसील स्तर के अधिकारी भी अपने घुटने टेक दिया जिस के कारण इस प्रधानाचार्या के हौसले बुलंद है  ।इस विधालय परिसर मे दो   आंगनबाडी  केन्द्र संचालित किये जाते है आंगनबाडी    कार्यकत्रियां सरकार से मिलने सामग्री भी बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं को नहीं देती। सांठ-गांठ करके गर्भवती महिलाओं तथा मासूम बच्चों को मिलने वाली वस्तुओं को डकारा जा रहा है। सरकार से मोटा वैतन पाने वाले टीचर्स ही शिक्षा के मंदिर में मासूमों के साथ शिक्षा के नाम पर खिलवाड़ कर रहे हैं। अगर प्राईवेट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की तुलना सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों से करें तो सच्चाई स्ंवय ही सामने आ जाएगी। बनीकोडर छेत्र के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने वाले अधिकतर मासूम अपने स्कूल तथा माता-पिता     विधालय शिछको का नाम भी सही प्रकार से नहीं लिख पाते।

यह है प्रदेश के सरकारी स्कूलो की दशा।

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