किताब- आई लव यू
लेखक- कुलदीप राघव
समीक्षा-
आज बातें किताबें में मैं ले के आया हूँ एक बहुत ही प्यारी किताब “आई लव यू ”
यूँ तो ये एक बहुत ही यंग राइटर की किताब है, मगर इस किताब मे उसने जिंदगी के सभी पहलुओं को छूने की कोशिश बड़ी शिद्दत से की है।
किताब आप एक बार में पूरी पढ़ सकते हैं , बिलकुल आम भाषा मे लिखी गयी है।
इस किताब के पात्र ईशान, स्नेहा, अनन्या, नामित और भी कुछ दोस्त, सब प्यार दोस्ती और विश्वास को रिप्रेजेंट करते हैं।
कुलदीप ने बड़ी ही साफगोई से आज के जीवन को किताब मे उतारा है, आज के जीवन का मतलब ,आज के युवा वर्ग की प्यार और दोस्ती की कहानी, ऐसी कहानी जो पारंपरिक ना होके भी पारंपरिक है, इसमें संघर्ष भी है, परंपराओं से, गलत फैसले से हुए खुद के नुकसान को झेलने से, और इन सब परिस्थियों में रहते हुए भी अपने प्यार को पाने की खुशी, ये सब इस एक कहानी में आपको मिलेगा।
स्नेहा जहां आज की मॉडर्न नारी का रूप है जो अपने फैसले लेती है और अगर कुछ गलत हुआ तो उसका सामना भी करती है, अपनी फैमिली में सबको साथ लेके चलती है,
जहाँ स्नेहा ऐसा पात्र है जो समझदार है ,परिपक्व है, वही ईशान नए जमाने का युवा है, जो उम्र के उस पड़ाव में है जहाँ उसे बहुत कुछ सीखना और देखना है। स्नेहा ने जीवन मे बहूत कुछ देख लिया है सह लिया है और आगे अपनी समझदारी से जिंदगी बिताने की जद्दोजहद में लगी हुई है। फिर प्यार , नए दोस्तों का मिलना , घर वालों की ना, फिर हाँ, दोस्तों की दोस्ती सब कुछ है इस कहानी मे। सच कहूं तो अगर थोड़ी और मेहनत हो तो ये एक बेहतरीन हिंदी फ़िल्म की कहानी में तब्दील हो सकती है। ये कहानी आज के युवाओं को लुभाएगी, और लुभा भी रही है। मैं कुलदीप को साधु वाद दूंगा इस बेहतरीन प्रयास के लिए।
इस कहानी में बहुत सारी ऐसी घटनाएं हैं, जैसे कि अनन्या का ईशान के घर आना और खाना ले लेके आना, जो ये जानती है कि दोस्त भूखा बैठा होगा, अपने टेंशन के वजह से। बात छोटी है मगर गहरी, हम सब के बैचलर लाइफ मे आती हैं ऐसे परिस्थिति, बहुत ही सटीक और सूक्ष्म विवेचना की है कुलदीप ने।
और हां प्यार उसे खोने का डर ,पाने की जिद्द, और पाने के बाद खुशी सारी भावनाओं से ओत प्रोत है ये किताब “आई लव यू”
सच है कि प्यार न उम्र देखता है ना बंधन न समाज और न परिवार, मगर उसी प्यार में सही रूप से सफल होने के लिए लोगों को शादी के बंधन में बंधना , समाज को साथ में लेके चलना और परिवार का पूरा समर्थन चाहिए होता है।
ये सच है… कहते हैं ना खुद के लिए जीया तो क्या जीया, खैर ये मेरी समीक्षा है, आगे और भी आएंगे, हाँ मैं चाहता हूं कि युवा इस किताब को पढ़े ये सब जगह उपलब्ध है, अगर इस किताब की समीक्षा का समापन एक वाक्य में करना हो तो मेरा वाक्य होगा
“युवाओं की कहानी एक युवा की जुबानी”.
कुलदीप बधाई के पात्र हो आप इस प्रयास के लिए।
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