हरिबंश चतुर्वेदी की रिपोर्ट :
आज़मगढ़ : जिले में स्थित दुर्वासा धाम पर कार्तिक पूर्णिमा पर तीन दिवसीय मेले में काफी श्रद्धालुओ की भीड़ होती है । धाम पर जिले से सटे जनपद मऊ , जौनपुर , गाजीपुर , अम्बेडकरनगर , दर्जनों जिले से कार्तिक पूर्णिमा पर श्रद्धालुओ भीड़ इकट्ठा होती है । आज़मगढ़ का ये मेला ऐतेहासिक माना जाता रहा है।
दुर्वाशा ऋषि हिन्दुओ के महान ऋषि माने जाते है ।वे अपने क्रोध के लिये भी जाने जाते है । दुर्वाशा सतयुग, त्रेता, द्वापर तीनों युगों में एक सिद्ध योगी महर्षि है । वे शिव जी के अंश माने जाते है । कभी कभी उनका अकारण क्रोध भी देखा जाता है ।
महर्षि अत्री जी ब्रम्हा जी के मानस पुत्र थे । महर्षि अत्री की धर्मपत्नी अनसुईया थी । महर्षि अत्री और माता अनसुईया की परीक्षा लेने हेतु ब्रम्हा , विश्णु और महेश इनके घर शिशु रूप में उपस्थित हुए । ब्रम्हा जी चंद्रमा के रूप में , विश्णु जी दत्तात्रेय के रूप में और शिव जी दुर्वासा जी के रूप में उपस्थित होते है । देव पत्नीवो के अनुरोध पर माता अनसुईया जी ने कहा कि ये वर्तमान में मेरे पुत्र स्वरूप मेरे पास ही रहेंगे और अपने पूर्णस्वरूप मे तीनो अपने अपने धाम पर विराजमान होंगे । यह कथा सतयुग के प्रारम्भ की है । ये तीनो ऋषि दुर्वासा , दत्तात्रेय ,और चंद्रमा आज़मगढ़ जिले में ही अपने अपने तीन धामों पर विराजमान है । हिंदुस्तान हेडलाइन्स संवादाता हरिबंश चतुर्वेदी के पड़ताल के द्वारा ये कहानियां लिखी जा रही है ।
महर्षि दुर्वासा धाम पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दो दिन पूर्व से ही श्रद्धालुओ की भीड़ इकट्ठा होने लगती है । कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान दान के लिए लोग दूरदराज से आये है इस स्थान को ऐतेहासिक माना जाता है । जुटे श्रद्धालुओ का प्रेम, स्नेह ,भक्ति, और आस्था बहुत ही गहराई से बनी हुई है । हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले मेले में जिले का प्रशाशन भी अलर्ट है । भीड़ को देखते हुए जगह जगह लोगो के रहने के लिए पंडाल भी लगाए गए है ।