नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव से पहले दक्षिण की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिशों में जुटी बीजेपी को AIADMK का साथ मिल सकता है। दरअसल पीएम मोदी से मुलाक़ात के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एदापल्ली के. पलानीस्वामी ने भले ही इसे औपचारिक मुलाक़ात बताई हो, लेकिन उन्होंने गठबंधन की बातों से इनकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि गठबंधन के लिए वह चुनावों की तारीख घोषित होने के बाद विचार करेंगे।
दक्षिण की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिशों में जुटी बीजेपी को अगर AIADMK का साथ मिलता है, तो दक्षिण की राजनीति में बड़ी हलचल देखने को मिल सकती है। बीजेपी लगातार ऐसे मौके तथा दल की तलाश में है, जिसके सहारे दक्षिण की राजनीति में कमल खिलाया जा सके। उधर, एआईएडीएमके को भी किसी मजबूत सहारे की दरकार है।
आपको बता दें कि किसी समय में एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता केंद्र में एनडीए का एक हिस्सा थीं। जयललिता और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच अच्छा तालमेल भी था, लेकिन इस तालमेल के बीच तत्कालीन कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी आ गईं। 1999 में तमिलनाडु में एआईएडीएमके की सत्ता थी और जयललिता मुख्यमंत्री थीं। उनके समर्थन के साथ केंद्र में एनडीए की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थी, लेकिन जयललिता और सोनिया गांधी के बीच एक मुलाकात के बात जयललिता ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और एनडीए सरकार अल्पमत में आ गई।
राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री वाजपेयी को बहुमत साबित करने के लिए कहा। वाजपेयी सरकार ने विश्वास प्रस्ताव रखा और 17 अप्रैल, 1999 को लोकसभा में इस पर वोटिंग हुई, लेकिन वाजपेयी सरकार केवल एक वोट से बहुमत साबित नहीं कर पाई और उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े थे और इस तरह से 13 महीने की पुरानी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार महज एक वोट गिर गई।
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