भदोही, 28 अक्तूबर । अयोध्या में युवराज राम के राज्याभिषेक की तैयारियां चल रही थी, लेकिन मंथरा की चालों से अचानक भाग्य ने ऐसा पांसा पलटा की उन्हें चैहद वर्षों के लिए वन जाना पड़ा। इसकी वजह से अयोध्या में खलबली मच गयी, चारों ओर सियापा छा गया। महारानी कैकई की भत्र्सना होने लगी। महाराज दशरथ के लाख समझाने के बाद भी प्रभु राम नहीं माने और मां के आदेशों के अनुपालन के लिए प्रजारंजक चैदह वर्षों के लिए वन के लिए प्रस्थान किया। उनके साथ मां सीता और अनुज लक्ष्मण भी वन को गए। जिले के सुरियावां के हरीपुर अभिया में आदर्श रामलीला समिति की तरफ से आयोजित तीसरे दिन राम वनगमन और केवट संवाद का मंचन किया गया। इस दौरान काफी संख्या में दर्शक मौजूद थे।
महाराज दशरथ चैथापन आने की वजह से गुरु बशिष्ठ और मंत्रीपरिषद की सलाह के बाद जब राम को युवराज पद देने का फैसला किया तो अयोध्या में खुशी की लहर दौड़ गयी। लेकिन मंथरा यानी कूबरी की कुटिल चाल से यह खुशियों का महौल बदल गया। कूबरी की बातों में आकर महारानी कैकेई अपने बेटे भरत लला को राजगद्दी और श्रीराम को चैदह वर्षों का वनवास मांग लिया। महारानी कैकेई देवासुर संग्राम में महाराज दशरथ की मदद किया था, उस दौरान महाराज ने कहा था उनकी जो इच्छा हो वह मांग सकती हैं। महारानी कैकेई ने तीन बचन राजा से लिए थे और कहा था कि जब उचित अवसर मिलेगा उसे मांग लेंगी। बाद में जब राम के राज्याभिषेक की तैयारी होने लगी तो कूबरा की चालों में फंस कर अपनी मांग रखा। जिसकी वजह से राम को वनवास हुआ। लेकिन महारानी कैकेई के इस आघात को महाराश दशरथ बर्दास्त नहीं कर पाए। वन गमन के दौरान भगवान श्रीराम को केवट ने गंगा पार उतारा। जहां मां सीता ने उन्हें अंगूठी दिया, लेकिन केवट ने नहीं लिया। केवट ने कहा प्रभु हमें मोक्ष चाहिए। इस दौरान मंथरा और कैकेई संवाद के साथ केवट ,राम-कौशल्या, लक्ष्मण-उर्मिला के अभिनय को सराहा गया। आदर्श रामलीला समिति 75 सालों से इस ऐतिहासिक रामलीला का मंचन करती चली आ रही है। यहां की आरती और कलाकारों का प्रदर्शन सबसे अलग है। लेकिन बदले दौर में इसका प्रभाव रामलीला पर भी पड़ने लगा है। लेकिन इसके बावजूद समिति पूरी तन्मयता से रामलीला का आयोजन कर रही है। सभी पात्र गांव के हैं। 31 अक्तूबर को रावण बध और भरत मिलाप मेले के साथ रामलीला का समापन होगा।