नई दिल्ली : जैसा कि राजनीति के धुरंधर कहते आ रहे हैं कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है, लगता है कि अब उनकी कही ये बात सही साबित होने वाली है और इसकी शुरुआत हो गई है। मतलब महागठबंधन की सरकार में फुट स्पष्ट तौर पर नज़र आने लगी है और अब इंतज़ार नीतीश के एक फैसले पर टिका है और वो फैसला है बीजेपी के साथ पुनः जाने का।
चलिए आगे जो होगा, वो देखा जायेगा, लेकिन बीते दिनों जो हुआ है वो हैरान करने वाला है। मतलब प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जो हुआ वो तो हुआ ही, परदे के पीछे जो हुआ वो दंग करने वाला है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो रामनाथ कोविंद के नाम की सिफारिश खुद नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से की थी। मतलब सब पहले से तय था और बस औपचारिक एलान भर बांकी रह गया था, जो अब पूरा हो गया है।
सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार से जब नरेंद्र मोदी ने किसी दलित नेता को राष्ट्रपति बनाने की बात की तो इस बातचीत में ही नीतीश ने बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम का सुझाव दिया। उन्होंने कोविंद की जमकर तारीफ की। यानी कि वो नितीश ही उनके नाम के प्रस्तावक थे। कोविंद की उम्मीदवारी की घोषणा होने के बाद से नीतीश कुमार के बातचीत के अंदाज एवं तेवर भी इन खबरों की पुष्टी करते नजर आए।
नितीश के मोदी की तरफ बढ़ते कदम को भांपते हुए लालू यादव ने कहा है कि नीतीश एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार के समर्थन के फैसले पर पुर्नविचार करें। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं वो अपने फैसले पर पुर्नविचार करें और महागठबंधन न तोड़े. यानी कि गठबंधन में दरार तो पड़ ही गई है. अब देखना ये होगा कि नीतीश कुमार के भाजपा की तरफ बढ़ते कदम कहां जा के रुकते हैं?