सियासत से दूर आजकल गेंहूँ के कटाई में व्यस्त है यूपी का ये पूर्व विधायक, लोग सादगी की दे रहे हैं मिसाल



प्रभुनाथ शुक्ल की रिपोर्ट :

भदोही : उत्तर प्रदेश के भदोही ज़िले से दो बार भाजपा से विधायक रह चुके डा.पूर्णमासी पंकज आज़ के राजनीति रसूख के दौर में दुपहिए से चलते हैं।विधानसभा से मिलने वाली पेंसन और खेती से परिवार की आजीविका चलती है। जीवन की सादगी देखिए, दिल्ली में मोदी और यूपी में योगी की सरकार होने के बाद भी इन दिनों गेहूँ की कटाई औैर अरहर की मड़ाई में जुटे हैं। तीखी धूप में अरहर और गेहूँ का बोझ ढो रहे हैं। राजनीति में नीति और नियति गंदी हो चली है। लोग यहाँ अब जनसेवा के बजाय जेबें भरने और रसूख बढ़ाने को आते हैं। एक बार बस मंत्री, सांसद और विधायक बन गए तो कई इनकी कई पीढ़ियां दौलत और सोहरत की फिक्र करना छोड़ देती हैं। लेकिन हमारे बीच ऐसे कई लोग हैं जो ज़मीन से जुड़े हैं, जिनमें यह पूर्व विधायक हैं। उनका कहना है कि पार्टी को 2019 को देखते हुए अपनी नीतियों में बदलाव लाना चाहिए और आयातित संस्कृति पर विराम लगना चाहिए। 

पूर्व विधायक पंकज का पैतृक गाँव ज़िले के दुर्गागंज़ के गदौर गडोरा गाँव में है। पेशे से शिक्षक रहे हैं। जब पहली बार विधायक चुने गए तो शिक्षक थे। वह  पीएचडी भी हैं। ज़िले में आज भी पुरानी सोहरत है। उनकी छवि एक ईमानदार विधायक के रुप में रही। 1991 में पहली बार भदोही से विधायक चुने गए। बाद में कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में दिसम्बर 1992 में अयोध्या में विवादित ढाँचा गिराए जाने के बाद सरकार चली गई, लेकिन 1993 में सपा- बसपा के गठबंधन में हार का सामना करना पड़ा। 1996 में दूसरी बार भदोही सुरक्षित से चुनावी मैदान में उतरे और जीत दर्ज़ की। भदोही की जनता में वे बेहद लोकप्रिय रहे। वरुणा नदी पर एक दर्ज़न सेतु का निर्माण कराया। भदोही को जौनपुर से बिजली दिलवाई। पेयजल , स्वास्थ्य , शिक्षा और सड़क के लिए बेहतर कार्य किया, लेकिन पार्टी की उपेक्षा से बेहद दुःखी हैं। बोले पार्टी दलित और अनुसूचित जाति पर अधिक ध्यान दे रही है। लेकिन उसी जाति से होने के बाद मेरी उपेक्षा की गई। 2017 के विस चुनाव में मुझे पार्टी ने टिकट नहीँ दिया। औराई सुरक्षित से दूसरे दल से आए एक पूर्व विधायक को गले लगा लिया गया, लेकिन मेरी सेवा को ताक पर रख दिया गया। भाजपा में आयातित लोगों की मांग से पार्टी और संघ के निष्ठावान कार्यकर्ताओ को किनारे रखने की नीति घातक है। उनका इशारा औराई सुरक्षित से भाजपा के टिकट पर जीते दीनानाथ भास्कर पर था, क्योंकि वे सपा से आए थे। इसके अलावा भदोही सामान्य से विधायक रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी भी बसपा से आकर भगवा थामा और दोनों लोगों ने जीत दर्ज़ किया। हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीँ लिया। लेकिन पार्टी नेतृत्व की इस उपेक्षा से बेहद दुःखी दिखे। उन्होंने कहा कि संघ और पार्टी का सिपाही रहा हूँ और रहूंगा।



पूर्व विधायक के पास आज़ भी फोर व्हीलर की गाड़ी नहीँ हैं। अभी तक वह वेस्पा स्कूटर से चलते आ रहे थे। दो साल पूर्व एक बाइक ली है। इनकी पहचान स्कूटर वाले विधायक के रुप में रही है। व्यवहार से बेहद सौम्य और मिलनसार हैं। कविता भी अच्छी लिखते हैं। उन्होंने कहा मेरे पास रसूख के लिए कुछ नहीँ। फसलों की मड़ाई का मौसम है तो मुझे गेहूँ और अरहर के साथ दूसरी फसलों की कटाई और मड़ाई परिवार के साथ मिल कर करनी पड़ती है। बस राजकीय पेंसन और खेती से परिवार चलता है। 


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