गरीबों के विकास में बाधा बन रही 2011 की आर्थिक जनगणना

राजेश पाल की रिपोर्ट :

अमेठी : शुकुल बाजार विकासखंड के अंतर्गत ऐसे गरीबों की संख्या बहुत ज्यादा है जिनका नाम 2011 के आर्थिक जनगणना के सूची में शामिल नहीं है, लेकिन वास्तविकता में एसे गरीबों की संख्या विकासखंड में बहुतायत है, जिनके पास ना रहने के लिए घर है या है भी तो कच्चे और छप्पर युक्त जर्जर मकान। उन गरीबों की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब है, लेकिन प्रधानमंत्री आवास पाने से सिर्फ इसलिए वंचित हैं, क्योंकि 2011 की आर्थिक जनगणना सूची में उनका नाम नहीं शामिल है।

सूची बनाने का काम प्रशासन और प्रशासनिक कर्मचारियों का था। गरीबों का कहना है कि हमें तो यह भी नहीं पता था कि यह क्या हो रहा है ? कौन सी सूची तैयार हो रही है और इसका क्या लाभ मिलेगा ? महज जरा सी लापरवाही से क्षेत्र के ऐसे कई गरीब सरकारी योजनाओं का लाभ पाने से वंचित रह गए जिनका नाम सूची में शामिल नहीं है। वहीं दूसरी तरफ क्षेत्र के तमाम ऐसे अमीर लोगों का नाम 2011 के सूची में शामिल है, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी है। अब सवाल यह उठता है कि क्या उन गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलना चाहिए जिनका नाम 2011 के आर्थिक जनगणना में छूट गया है ? और वास्तव में वह गरीब हैं।

जब भी कोई गरीब किसी अधिकारी कर्मचारी से अपने आवास की बात करता है तो संबंधित अधिकारी यह पूछता है क्या 2011 की सूची में आपका नाम है ? अगर नाम है तब आप गरीब हैं और अगर 2011 की सूची में आपका नाम नहीं है तो फिर आप योजनाओं का लाभ नहीं पा सकते। यही नहीं क्षेत्र में ऐसे गरीबों की संख्या भी बहुत ज्यादा है जिनके पास अभी भी राशन कार्ड मुहैया नहीं है। पात्र गृहस्थी के अंतर्गत सरकार की योजना है कि सभी लाभार्थियों को सरकारी राशन मुहैया होगा लेकिन शुकुल बाजार विकासखंड के अंतर्गत अभी भी ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जिनके पास राशन कार्ड भी नहीं मुहैया है।

यह एक विडंबना है कि देश को आजाद हुए 70 साल हो गए और आज भी गरीब कच्चे और जर्जर मकान में रहने के लिए मजबूर हैं। कुछ गरीब तो ऐसे हैं जो झोपड़ी बनाकर रहते हैं, जिनके पास न कच्चे मकान हैं और ना ही पक्के मकान। राजधानी लखनऊ से महज 90 किलोमीटर की दूरी पर बसा शुकुल बाजार विकास खंड अभी भी पूर्णतया विकास नहीं कर पाया। यह अपने आप में एक बड़ी बात है।

क्षेत्रवासियों का कहना है कि शासन प्रशासन हमें हमारा हक दिलाएं, सरकारी योजनाओं के लाभ से हम महज इसलिए वंचित ना रह जाए कि हमारा 2011 की आर्थिक जनगणना में नाम शामिल नहीं हुआ। किसी भी जनगणना में नाम शामिल करना ना करना यह प्रशासनिक कर्मचारियों का कार्य होता है और जरा सी लापरवाही से गरीबों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है।

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