डा० गणेश पाठक
देवाधिदेव भगवान शिव के अनेक रूप हैं। एक तरफ जहाँ वो सत्यम्, शिवम् एवं सुन्दरम् के प्रतीक हैं तथा परिस्थिति के अनुसार संहारक रूप में चर्चित हैं और औघड़दानी के रूप में वरदान देने के लिए भी प्रसिध्द हैं, वहीं दूसरी तरफ भगवान शिव पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैव विविधता अर्थात् सम्पूर्ण प्रकृति के भी रक्षक एवं पोषक हैं। चूँकि वो “भगवान”हैं और भगवान शब्द पाँच शब्दोंः भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि एवं न से नीर से मिल कर बना है अर्थात् प्रकृति के पाँच तत्व क्षिति, जल, पावक, गगन ,समीरा ही भगवान हैं और प्रकृति इन मूल तत्वों को रक्षा करते हैं या यों कहें कि प्रकृति ही भगवान हैं। इस दृष्टि से हम भगवान को प्रकृति का रक्षक एवं पोषक मान सकते हैं।
भगवान शिव का निवास स्थान एवं तपःस्थान कैलाश पर्वत है। पर्वतों पर ही प्रकृति के सभी तत्व अर्थात् पर्यावरण ,पारिस्थितिकी एवं जैव विविधता के सभी कारक विद्यमान रहते हैं , इसलिए इनकी सुरक्षा एवं संरक्षा हो सके, इसीलिए सम्भवतः भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर ही अपना वास स्थान बनाया। यही नहीं प्रकृति के ऐसे तत्वों की सुरक्षा की भगवान शिव ने आत्मसात कर लिया या अपना प्रिय बना लिया ,जिनके विनाश के लिए मानव तत्पर रहता है। जैसे सर्प एवं बिच्छू जैसे अनेक विषधर जीव, अनेक विषैले पौधे आदि । समाज में व्याप्त सभी प्रकार के विष को भगवान शिव आत्मसात कर लिए।
यदि देखा जाय तो मोक्षदायिनी एवं जीवनप्रदायिनी माँ गंगा को भी अपनी जटाओं मे धारण कर जल संरक्षण का संदेश जन- जन में फैलाया। इस प्रकार प्रकृति के सम्पूर्ण संरक्षण हेतु ही भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर रहना पसंद किया। इस प्रकार एक कल्याणकारी देवता के रूप में भगवान शिव न केवल मानव जगत का कल्याण करते है, बल्कि पशु जगत, जीव जंतु जगत एवं पादप जगत को संरक्षण प्रदान कर सम्पूर्ण प्रकृति की रक्षा करते हैं।