मंहगा पड़ सकता है कांग्रेस को भभुआ में कुर्मी दाव

कैमूर से अरशद रज़ा की रिपॉर्ट:

भभुआ विधान सभा मे नाम निर्देशन की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है। कुल 17 प्रत्याशी जिसमे 3 महिला 2 मुस्लिम प्रत्याशी भी शामिल है। दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी पहली बार आमने सामने होंगे लेकिन इस बार का चुनाव विकास के बजाए अगड़ी और पिछड़ी बनाम होता दिखायी पड़ रहा है।

भाजपा ने जहां अपने दिवंगत विधायक आनंद भूषण पांडेय की पत्नी रिंकी रानी पांडेय पर भरोसा जताया है तो वहीं कांग्रेस ने अपने तपे तपाए पुराने कार्यकर्ता शंभू पटेल पर दांव लगाया है. दोनों प्रत्याशी पहली बार मैदान में हैं.

दोनों प्रत्याशियों ने नामांकन के बाद अपने हिसाब से जातीय समीकरणों को साधना शुरु कर दिया है. अभी मतदान होने में समय है
लेकिन क्षेत्र में बैकवर्ड फाॅरवर्ड गोलबंदी शुरु हो गई है. गांव की चाय की दुकान हो या सोशल मीडिया, हर ओर यही चर्चा हो रही है.  सोशल मीडिया पर  जातीय आधार पर खूब बहस हो रही है.

बात करें जातीय अंकगणित की तो इस विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की तो तकरीबन 35 हजार वोट इनके पास है जबकि कोयरी कुर्मी मतदाताओं का मिश्रित वोट 42 हजार है. राजपूत मतदाताओं की संख्या 14 हजार, यादव 14 हजार, अल्पसंख्यक 18 हजार. वैश्य मतदाताओं की संख्या भी 10 हजार के करीब है.

बात करें अनुसूचित जातियों की तो इनकी संख्या इस विधानसभा क्षेत्र में 35 हजार के करीब है. इनमें चमार मतदाता 18 हजार और पासवान 11 हजार है. बाकी अन्य हैं. अति पिछड़ी जातियों की बात करें तो 20 हजार बिंद मतदाता इस विधानसभा क्षेत्र में रहते हैं.

एनडीए का समीकरण
भाजपा के पक्ष में ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य और पासवान के अतिरिक्त बिन्द जाति के गोलबंद होने की उम्मीद जताई जा रही है. वहीं जदयू और रालोसपा के साथ होने के कारण भाजपा उम्मीदवार को कुर्मी और कुशवाहा वोटों के साथ आने की उम्मीद भी है. हालांकि जदयू के कैडर कुर्मी समाज का वोट जहां भाजपा के साथ जा सकता है तो रालोसपा की मदद का भरोसा रिंकी रानी पांडेय को हैं जदयू का कुर्मी कैडर वोट में निर्दलीय प्रत्याशी विकास पटेल सेंध लगा सकते है। इसके अलावा कुछ अल्पसंख्यक वोट भी सहानुभूति के आधार पर रिंकी पांडेय की मिलने का अनुमान है। हालांकि रिंकी पांडेय को मिलने वाला मुस्लिम मत पार्टी के नाम पर नही केवल सहानुभूति के आधार पर हो सकता है।

यूपीए का गणित
यूपीए की ओर से यहां कांग्रेस के उम्मीदवार के पक्ष में जो गणित यह है कि उन्हें कुर्मी कोयरी, यादव, अल्पसंख्यक और चमार वोटों का भरोसा है. वहीं ब्राह्मणों का कुछ हिस्सा भी कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है, हालांकि ये हजार दो हजार से ज्यादा नहीं होगा, इतने कोयरी कुर्मी वोट भी भाजपा की ओर जाने का अनुमान है. दो मुस्लिम प्रत्याशी भी है। जो मुस्लिम वोट साथ होने का दावा कर रहे है मोमिन फ्रंट से सलीम अंसारी और निर्दलीय शमीम राईन । दोनो मुस्लिम उम्मीदवार कांग्रेस के वोट में सेंध लगा कर कांग्रेस की हार का कारण बन सकते है। कुल मिला जुला कर कांग्रेस हाशिये पर खड़ी दिखाई पड़ रही हैं।
बसपा के चुनावी मैदान में नहीं होने का लाभ भी कांग्रेस प्रत्याशी को खास मिलता दिखायी नही पड़ रहा है। बिंद मतदाताओं पर भी कांग्रेस और भाजपा दोनो उम्मीदवार को भरोसा है. कैमूर की राजनीति के धुरंधर राजद के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह राजपूत मतदाताओं को यूपीए की ओर मोड़ सकते हैं. बसपा भले ही चुनावी मैदान में नहो लेकिन बसपा के पूर्व प्रखण्ड अध्यक्ष कमलेश आज़ाद बसपा का वोट कांग्रेस और बीजेपी दोनो से काटते दिखायी देंगे। पूर्व लोक सभा स्पीकर मीरा कुमार के करीबी माने जाने वाले कैमूर ज़िप के उप सभा पति भी कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते है। सुनील कुशवाहा कांग्रेस के टिकट दावेदारों में शामिल थे।

बात करें निर्दलीय प्रत्याशियों का तो भाजपा का कम कांग्रेस का अधिक खेल बिगाड़ सकते हैं. पिछले चुनाव में यहां से 21 उम्मीदवार मैदान में थें. भाजपा के आनंद भूषण पांडेय को जहां 50768 वोट मिले थें तो जदयू के प्रमोद कुमार सिंह को 43024 जबकि बसपा के प्रत्याशी भरत बिंद को 29983 वोट हासिल हुए थें.

छोटी पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों के वोटों पर निगाह डालें तो उन्हें अलग अलग कुल 22,342 वोट प्राप्त हुए थें. इनमें शिवसेना प्रत्याशी संजय कुमार सिन्हा को 4857 और निर्दल विकास कुमार सिंह को 3192 वोट उल्लेखनीय थें. पूर्व विधायक रामचंद्र यादव की पत्नी नीतू सिंह यादव समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में थीं. उन्हें 1991 वोट हासिल हुए थें. 642 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था.

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