चार दिवसीय गुरूपूर्णिमा महोत्सव का श्रीमद् भागवत कथा के साथ शुभारंभ
चन्दौली । संत के सानिध्य मे जाने से सत्संग होता है यदि जीव क्षणमात्र भी ईश्वर की अनुभूति कर लें तो मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । सद्गुरू ही वो है जो जीव को मोक्ष की ओर ले जाता है । व्यक्ति के जीवन मे जब ईश्वर की कृपा होती है तभी हमे सद्गुरू की प्रप्ति होती है और हम उस सद्गुरु की कृपा से इस भव सागर को पार कर पाते हैं । मुक्ति और भुक्ति दोनो संसार मे प्राप्त होता है जिसके भीतर भक्ति न हो उसे प्रकट करा दें जबकि मनुष्य यदि मोक्ष की प्राप्ति चाहता है तो उसे मोह का परित्याग कर ईश्वर की शरण मे जाना पड़ता है तभी उसे मोक्ष प्राप्त होता है । उक्त बातें चन्दौली के समीप कोड़रिया गाँव मे चल रहे चार दिवसीय गुरू पुर्णिमा महोत्सव के अवसर पर श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस व्यास पीठ से श्री मद् भागवत कथा मर्मज्ञ श्री श्री अखिलानन्द जी महाराज जी ने कही उन्होने सत चित्त और आनन्द स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा कि इन तीन स्वरूपो मे हम भगवान की अनुभूति करते है चराचर जगत मे ईश्वर विद्यमान है जड़ और चेतन दोनो ईश्वर के प्रकाश से ही प्रकाशित हो रहा है । पहला स्वरूप प्रकट रूप से दिखाई पड़ता है । संसार के हर जीव का आध्यात्मिक विकास होना चाहिए । अपने अंत:करण मे एक भावना जागृत होती है जो हमे अधर्म के कार्य करने से सावधान करती है उसे हम चित्त स्वरूप कहते हैं अप्रकट अथवा आनन्द स्वरूप उसे कहते हैं जो ब्रह्म का स्वरूप होता है और आनन्द स्वरूप को पा लेता है उसे कोई बाधा या कष्ट नही रह जाता ।