नई दिल्ली : भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में महराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए आरोपियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले सुनवाई करते हुए आरोपियों को घर में नजरबंद रहने का फरमान जारी किया था, वहीँ अब कोर्ट ने अपने फैसले में आरोपियों के नज़रबंद रहने की समय सीमा 4 हफ्ते के लिए बढ़ा दी है।
कोर्ट ने कहा कि आरोपी यह नहीं चुन सकता कि कौन सी जांच एजेंसी को मामले की जांच करनी चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा कि यह गिरफ्तारियां राजनीतिक अहसमति की वजह से नहीं हुई हैं, बल्कि पहली नजर में ऐसे साक्ष्य हैं जिनसे प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के साथ उनके संबंधों का पता चलता है।
इस मामले में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने 20 सितंबर को दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश साल्वे और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी-अपनी दलीलें रखी थीं।
पीठ ने महाराष्ट्र पुलिस को मामले में चल रही जांच से संबंधित अपनी केस डायरी पेश करने के लिये कहा था। बता दें कि पांचों कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से ही अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं।
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