लखनऊ : यूपी में जारी दलितों के दमन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने, दलितों पर लादे गये मुकदमों को वापस लेने, भारत बंद में हुई हिंसा की उच्चस्तरीय जांच कराने, उस हिंसा के नाम पर गिरफ्तार सभी को तत्काल बिना शर्त रिहा करने व बंद के दौरान मारे गए लोगों को 20 लाख रू0 मुआवजा देने, एस-एसटी संरक्षण कानून 1989 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए संशोधन के विधि विरूद्ध आदेश के प्रभावों को रोकने के लिए अध्यादेश लाने और भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर समेत उसके सभी साथियों पर लगी रासुका वापस लेकर उन्हें तत्काल रिहा करने की मांग पर जनमंच अन्य संगठनों के साथ मिलकर 12 अप्रैल को भारत के राष्ट्रपति को मांग पत्र सौंपेगा और उनसे संवैधानिक प्रमुख तथा दलित होने के नाते देश में भाजपा की केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा दलितों, आदिवासियों और समाज के कमजोर तबकों के विरूद्ध छेड़े युद्ध पर तत्काल रोक लगाने की मांग करेगा। उक्त बातें जनमंच के संयोजक पूर्व आई0 जीएसआर दारापुरी ने कहीं।
उन्होंने जेल में बंद भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर की भूख हड़ताल का समर्थन करते हुए कहा कि मोदी और योगी सरकार अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए पूरे देश में जातीय ध्रुवीकरण की घृणित राजनीति का खेल खेल रही है। दलितों, आदिवासियों और समाज के कमजोर तबकों के विरूद्ध सरकार ने युद्ध छेड़ दिया है। अकेले यूपी में भारत बंद में हुई हिंसा के नाम पर हजारों दलितों के विरूद्ध फर्जी मुकदमें कायम कर दिए गए है। उनको गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया। उन्हें थानों में बर्बर तरीके से पीटा जा रहा है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गो के साथ बदसलूकी की गयी। बकायदा सूची बनाकर दलितों की हत्याएं हो रही है। भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर और उनके साथियों की हाईकोर्ट से जमानत होने के बाद सरकार ने रासुका लगाकर जेल में बंद रखा है और जेल में भी उन्हें यातनाएं दी जा रही है। सरकार की दमन की यह कार्यवाहियां देश और प्रदेश की शांति और सामाजिक ताने-बाने को तहस-नहस कर देगी। इसलिए योगी सरकार को तत्काल प्रदेश में जारी दलितों के दमन पर रोक लगानी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक ऐसी सरकार जो दलितों के खिलाफ युद्ध में उतरी हो और बर्बर दमन करा रही हो उसके प्रमुख मुख्यमंत्री को बाबा साहब की जयंती पर ‘दलित मित्र’ से सम्मानित करना बाबा साहब के मिशन और उनके विचारों का अपमान है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की सुप्रीम कोर्ट में की गयी लचर पैरवी और एस-एसटी संरक्षण कानून के खिलाफ दी गयी दलीलों के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट को कमजोर करने वाला फैसला सुनाया है। यह बाद खुद सरकार द्वारा दाखिल की गयी रिव्यु पेटिशन की सुनवाई में माननीय न्यायधीश ने कहीं है। सरकार के दलित आदिवासी विरोधी रूख के कारण आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तो देश आईपीसी और सीआरपीसी को लागू करना ही असम्भव हो जायेगा, क्योंकि तब तो हर एफआईआर के दर्ज करने के पूर्व जांच करने की बात उठने लगेगी। उन्होंने कहा कि लगातार भाजपा के दलितों सासदों द्वारा लिखी चिठ्ठियों से यह स्पष्ट है कि भाजपा में दलित आदिवासियों का सम्मान सुरक्षित नहीं है। इसलिए उन्हें भाजपा द्वारा करायी उपवास की नौटंकी में हिस्सेदारी करने की जगह भाजपा से इस्तीफ़ा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति दलित जाति से आते है और देश के संवैधानिक प्रमुख है अतः उन्हें एससी-एसटी एक्ट संरक्षण कानून 1989 में प्रदत्त दलितों-आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए तत्काल अध्यादेश लाने के लिए भारत सरकार को निर्देशित करना चाहिए।
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