NSCN कितना भी नागालैंड के लिए अलग झंडे और अलग संविधान की मांग पर अड़ा हो, लेकिन केन्द्र सरकार इसे मानने के लिए हरगिज़ तैयार नहीं है। पिछले कुछ दिनों से एनएससीएन के नेता दिल्ली में खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों के साथ संवाद कर अलग संविधान और अलग ध्वज की मांग पर मनाने की कोशिश कर रहे हैं, परन्तु उन्हें इसके लिए साफ-साफ मना किया जा चुका है।
NSCN समेत विभिन्न नागा अलगाववादी संगठनों के साथ बातचीत की सूचना रखने वाले उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक नागा नेता आईबी के वरिष्ठ अधिकारियों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि नागा आंदोलन के शुरू होने के समय से ही उनका एक ध्वज रहा है, जो नागा आंदोलन का प्रतीक बन चुका है। इसे छोड़ने पर पिछले सात दशक की नागा आंदोलन की पहचान खत्म हो जाएगी। यही अवस्था नागा आंदोलन से जुड़े संविधान की भी है।
वहीं केंद्र सरकार की तरफ से नागा नेताओं को यह बताया गया है पिछले साल ही संसद ने भारी बहुमत से जम्मू-कश्मीर में अलग ध्वज और अलग संवैधानिक प्रावधान को खत्म किया है। ऐसे में एक नए राज्य के लिए ऐसे ही प्रावधान को स्वीकृति प्रदान नहीं की जा सकती है। नागा नेताओं को कहा गया है कि वे निजी तौर से अपनी पार्टी के लिए इस झंडे का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन यह समझौते का हिस्सा नहीं होगा।
वर्ष 2015 में केंद्र सरकार और एनएससीएन के मध्य समझौते के बड़े फ्रेमवर्क पर सहमति बनी थी। इसके पश्चात नागा विवाद के स्थायी समाधान की आशा बढ़ गई थी। पिछले पांच सालों में इसमें काफी प्रगति भी हुई और विवाद के लगभग सारे बिन्दुओं पर सहमति बन गई, लेकिन अलग ध्वज और अलग संविधान को लेकर मामला उलझ गया है।