कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान के चंगुल में फंसे भारतीय पायलट को वाजपेयी सरकार ने इस तरह लाया था वापस

नई दिल्ली : पाकिस्तान के चंगुल में फंसे भारतीय पायलट अभिनन्दन को वापस लाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। सोशल मीडिया पर भी भारतीय जवान को वापस लाने को लेकर अभियान छेड़ा गया है। सभी की मांग है कि भारतीय जवान अभिनंदन वर्धमान को तुरंत वापस लाया जाए। वहीँ सरकार ने भी पाकिस्तान से अभिनन्दन को फ़ौरन वापस किये जाने की मांग पाकिस्तान से की है।

20 साल पहले करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान आर्मी के कब्जे में आए भारतीय पायलट के. नचिकेता को एक हफ्ते बाद ही रिहा कर भारत भेज दिया गया था। तब केंद्र में वाजपेयी की सरकार थी और वाजपेयी सरकार ने अपनी सूझ-बुझ से भारतीय पायलट के. नचिकेता को पाकिस्तान के चंगुल से वापस ला लिया था।

3 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान IAF के फाइटर पायलट के नचिकेता को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ में MIG 27 उड़ाने का काम सौंपा गया था, जहां उन्होंने 17 हजार फुट से रॉकेट दागे लेकिन इसी बीच उनके प्लेन के इंजन में खराबी हो गई और MIG 27 क्रैश हो गया। जिसके बाद पाकिस्तान आर्मी ने उन्हें अपनी कैद में ले लिया।

पाकिस्तान आर्मी के जवान नचिकेता को मानसिक और शारीरिक रूप से टॉर्चर करते थे। उन्हें मारते-पीटते थे। नचिकेता ने बताया कि वह मुझे बुरी तरह से पीटते थे। साथ ही उनकी कोशिश रहती थी कि भारतीय सेना के बारे में जानकारी दूं। रिपोर्ट के अनुसार नचिकेता की रिहाई में पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त जी पार्थसारथी का हाथ था उन्होंने ही रिहाई की बातचीत की थी।

पार्थसारथी ने बताया कि मुझे विदेशी कार्यालय से फोन आया और उसने कहा कि मैं वहां से अपने पायलट को लेकर आऊं। क्योंकि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने नचिकेता की रिहाई का ऐलान कर दिया था। उन्होंने बताया कि विदेश मंत्रालय का दफ्तर जिन्‍ना रोड पर था जहां पर प्रेस क्रॉन्फ्रेस हो रही थी, लेकिन वहां जाने के लिए मैंने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि उस समय पाकिस्तान शोर मचाकर बताना चाह रहा था कि वह बड़ा दिल दिखाकर नचिकेता की रिहाई कर रहा है।

मैंने विदेश मंत्रालय के कार्यालय में जाने से सीधे तौर पर इनकार कर दिया और स्पष्ट रूप से कहा कि मैं भारतीय वायु सेना के पायलट का मजाक बनाने के लिए आपके लिए विदेशी कार्यालय में नहीं जाऊंगा। मेरे इन शब्दों से उन्हें काफी झटका लगा। जिनेवा संधि के मुताबिक, किसी भी युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव नहीं किया जा सकता। साथ ही युद्धबंदी को किसी भी तरह से डराया-धमकाया और उस पर किसी भी तरह का दवाब नहीं बनाया जा सकता।

जिनेवा संधि के अनुसार पायलट को भारत को सौंपने की जिम्‍मेदारी पाकिस्‍तान की थी। वहीं नियम के अनुसार पाकिस्तान की गिरफ्त में आए नचिकेता को 8 दिन के भीतर रिहा कर दिया गया था, जहां पाकिस्तान से नचिकेता को भारत को सौंप दिया था, जिसके बाद वह वाघा बॉर्डर के रास्ते भारत लौटे। जहां तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका स्वागत किया।

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