साजिद इक़बाल की रिपोर्ट :
गया : रोज़ा इंसान को मुत्तक़ी,परहेज़गार और इबादत गुज़ार बनाता है। इस महीने में अल्लाह ने अपने बन्दों को खास इनामात से नवाज़ा है । 30 दिनों में पहला असरा 10 दिन रहमत दूसरा मगफिरत और तीसरा यानि आखिरी असरा निजात का है। रमज़ान में रोज़ेदार के साथ अल्लाह की गैबी मदद होती है रोज़ेदार जैसे सच्चे दिल से नियत करता है वैसे ही उसके नफ़्स और ख्वाहिसात को मार दिया जाता है,फिर क्या भूख क्या प्यास रोज़ेदार को इनसब चीज़ों की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती जो लोग भूख और प्यास के डर से रोज़ा नहीं रखते उनको करबला के मज़लूमो से सबक हासिल करनी चाहिए। जब जिंदान के अंधेरों में कई दिन और रात बीत जाने के बाद एक दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की लाड़ली बेटी जनाबे सकीना सलामुल्लाह अलैहा ने अपने भाई इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास जाकर एक सवाल किया।
जनाबे सकीना सलामुल्लाह अलैहा – भाई सज्जाद, आप इमामे वक़्त है और इमामे वक़्त हर इल्म से आरास्ता होता है मै आपसे एक सवाल करती हूँ कि आप मुझे बताएं “प्यास में कितनी मंज़िले होती हैं ?
जनाबे सकीना का ये सवाल सुनकर जनाबे ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा तड़प गयीं। आगे बढ़कर सकीना को गोद में उठाया,प्यार किया और कहा मेरी बच्ची तू ऐसा क्यों पूछती है।
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा – फूफी अम्मा सकीना ने ये सवाल अपने वक़्त के इमाम से किया है और मुझपर लाज़िम है की मै इस सवाल का जवाब दूँ।
इमाम ने फ़रमाया- बहन सकीना, प्यास की कुल चार मंज़िलें होती है
पहली मंज़िल वो होती है जब इंसान इतना प्यासा हो की उसे आँखों से धुँआ धुँआ सा दिखाई दे और ज़मीन और आसमान के बीच का कोई फ़र्क़ महसूस न हो।
जनाबे सकीना- हाँ मैंने अपने भाई क़ासिम को बाबा से कहते सुना था ” चचा जान मै इतना प्यासा हूँ की मुझे ज़मीन से आसमान तक सिर्फ धुआं सा दिखाई देता है।
इमाम ने फिर फ़रमाया- प्यास की दूसरी मंज़िल है जब किसी की जुबान सुखकर तालु से चिपक जाए।
जनाबे सकीना- हाँ जब भाई अकबर ने अपनी सुखी ज़ुबान बाबा के दहन में रखकर बाहर निकाल ली थी और कहा था “बाबा आपकी ज़ुबान तो मेरी ज़ुबान से ज़्यादा खुश्क है तब शायद मेरा बाबा प्यास की दूसरी मंज़िल में था।
इमाम ने फिर फ़रमाया- प्यास की तीसरी मंज़िल वो है जब किसी मछली को पानी से बाहर निकाल कर रेत पर डाल दिया जाता है और वो मछली कुछ देर तड़पने के बाद बिलकुल साकित सी हो कर अपना मुंह बार बार खोलती है और बंद करती है।
जनाबे सकीना- हां जब मेरे बाबा ने भाई अली असग़र को कर्बला की जलती रेत पर लिटा दिया था तो असगर भी वैसे ही तड़पने के बाद साकित सा था और अपना मुँह खोलता था फिर बंद करता था शायद मेरा भाई उस वक़्त प्यास की तीसरी मंज़िल में था।
इमाम ने फिर फ़रमाया- प्यास की चौथी और आखिरी मंज़िल वो है जब इंसान के जिस्म की नमी बिलकुल खत्म हो जाती है और उसका गोश्त हड्डियों को छोड़ देता है फिर इंसान की मौत हो जाती है।
इतना सुन कर जनाबे सकीना ने अपने हाथों को इमाम के आगे किया और कहा- भाई सज्जाद मै शायद प्यास की आखिरी मंज़िल में हूँ। देखो मेरे जिस्म के गोश्त ने हड्डियों का साथ छोड़ दिया है और मै अनक़रीब अपने बाबा के पास जाने वाली हूँ।
सकीना के ये अलफ़ाज़ सुनकर कैदखाने में एक कुहराम बपा हो गया।
अब हम अंदाजा लगा सकते है हम रोजे मैं प्यास की पहली मंजिल तक भी नही पहुँचते अफसोस फ़िर भी कई लोग भूख और प्यास के डर कर रोज़ा नहीं रखते।
ये सब बाते करबला के डॉ सयैद शब्बीर आलम ने बताई।
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