जेमोलॉजी क्या है
इसे रत्नों की पहचान व मूल्यांकन की कला, पेशा और विज्ञान कहा जा सकता है। जियोसाइंस में इसे मिनरोलॉजी की ही एक शाखा माना जाता है। जेमोलॉजी के अंतर्गत प्राकृतिक रत्नों की पहचान करना व उनमें मौजूद खामियों की जांच करना सिखाया जाता है। इसके अलावा रत्नों की कटिंग, सॉर्टिग(छंटाई), ग्रेडिंग, वैल्यूएशन(मूल्य निर्धारण), डिजाइन मेथेडोलॉजी, मेटल कॉन्सेप्ट, कंप्यूटर एडेड डिजाइनिंग, मेटालर्जिकल प्रोसेस व ऑर्नामेंट डिजाइनिंग के बारे में बताया जाता है।
रत्नों का संसार
विज्ञान की दृष्टि से रत्न प्राकृतिक खनिज (कुछ रत्न ऑर्गेनिक मेटीरियल और पत्थर के रूप में भी मिलते हैं) हैं, जिन्हें कटिंग और पॉलिशिंग के जरिए आकर्षक स्वरूप दिया जाता है। अपनी चमक व अन्य कलात्मक भौतिक खूबियों के कारण इनका इस्तेमाल आभूषणों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। प्राप्ति की दृष्टि से जिन रत्नों को पाना मुश्किल होता है, उनका मूल्य इस कारण से और भी बढ़ जाता है।
रत्नों का वर्गीकरण उनकी ऑप्टिकल व फिजिकल प्रॉपर्टी के अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर किया जाता है। इस प्रक्रिया में रत्न के क्रिस्टल स्ट्रक्चर, स्पेसिफिक ग्रेविटी व रिफ्रेक्टिव इंडेक्स का पता लगाने के अलावा उसमें मौजूद कठोरता के स्तर को मापा जाता है।
आवश्यक गुण
चीजों को बारीकी से जानने में रुचि होनी चाहिए। इसके लिए पारखी नजर का होना जरूरी है।
रचनात्मकता व कल्पनाशीलता की इस पेशे में विशेष रूप से जरूरत होती है।
रत्नों को आभूषण के रूप में प्रस्तुत करने के लिए उन्हें अन्य रत्नों या धातुओं के साथ डिजाइन किया जाता है। इसके लिए सौंदर्यबोध और रंग संयोजन की अच्छी समझ होनी चाहिए।