जेमोलॉजी- रत्नों को पहचानने की कला: अंजलि कपूर धमेजा

जेमोलॉजी क्या है
इसे रत्नों की पहचान व मूल्यांकन की कला, पेशा और विज्ञान कहा जा सकता है। जियोसाइंस में इसे मिनरोलॉजी की ही एक शाखा माना जाता है। जेमोलॉजी के अंतर्गत प्राकृतिक रत्नों की पहचान करना व उनमें मौजूद खामियों की जांच करना सिखाया जाता है। इसके अलावा रत्नों की कटिंग, सॉर्टिग(छंटाई), ग्रेडिंग, वैल्यूएशन(मूल्य निर्धारण), डिजाइन मेथेडोलॉजी, मेटल कॉन्सेप्ट, कंप्यूटर एडेड डिजाइनिंग, मेटालर्जिकल प्रोसेस व ऑर्नामेंट डिजाइनिंग के बारे में बताया जाता है।

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रत्नों का संसार
विज्ञान की दृष्टि से रत्न प्राकृतिक खनिज (कुछ रत्न ऑर्गेनिक मेटीरियल और पत्थर के रूप में भी मिलते हैं) हैं, जिन्हें कटिंग और पॉलिशिंग के जरिए आकर्षक स्वरूप दिया जाता है। अपनी चमक व अन्य कलात्मक भौतिक खूबियों के कारण इनका इस्तेमाल आभूषणों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। प्राप्ति की दृष्टि से जिन रत्नों को पाना मुश्किल होता है, उनका मूल्य इस कारण से और भी बढ़ जाता है।

रत्नों का वर्गीकरण उनकी ऑप्टिकल व फिजिकल प्रॉपर्टी के अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर किया जाता है। इस प्रक्रिया में रत्न के क्रिस्टल स्ट्रक्चर, स्पेसिफिक ग्रेविटी व रिफ्रेक्टिव इंडेक्स का पता लगाने के अलावा उसमें मौजूद कठोरता के स्तर को मापा जाता है।

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आवश्यक गुण
चीजों को बारीकी से जानने में रुचि होनी चाहिए। इसके लिए पारखी नजर का होना जरूरी है।
रचनात्मकता व कल्पनाशीलता की इस पेशे में विशेष रूप से जरूरत होती है।
रत्नों को आभूषण के रूप में प्रस्तुत करने के लिए उन्हें अन्य रत्नों या धातुओं के साथ डिजाइन किया जाता है। इसके लिए सौंदर्यबोध और रंग संयोजन की अच्छी समझ होनी चाहिए।

कार्य का स्वरूप
रत्न व आभूषण का कारोबार कुछ दशक पहले तक छोटे-बड़े ज्वेलर्स तक सीमित होने के कारण असंगठित था, मगर अब कई बड़ी कंपनियों के आने के बाद से यह क्षेत्र तेजी से पेशेवर अंदाज में ढल रहा है। इसलिए जेमोलॉजी के विशेषज्ञों के लिए रत्न व आभूषण उद्योग में कई तरह के मौके हैं-

वैल्यूअर: आभूषण निर्माता कंपनियां व बीमा कंपनियां रत्नों के मूल्यांकन के लिए जेमोलॉजिस्ट की सहायता लेती हैं।
रिसर्चर: कई संस्थान रत्नों की फिजिकल प्रॉपर्टी और उनकी विशेषताओं पर शोध के लिए कार्य करते हैं। शोध में रुचि होने पर इन संस्थानों में रिसर्चर के रूप में जुड़ा जा सकता है।
शिक्षण: पढ़ाने और प्रशिक्षण देने के कार्य में रुचि होने पर जेमोलॉजी इंस्टीटय़ूट या ट्रेनिंग सेंटर में बतौर शिक्षक या ट्रेनर काम किया जा सकता है।

इनके अलावा डिजाइनिंग, मैन्युफैक्चरिंग और मैनेजमेंट आदि क्षेत्रों में संभावनाएं हैं।

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योग्यता
डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स में प्रवेश के लिए 12वीं पास होना जरूरी है। इन कोर्स की अवधि कुछ माह से लेकर एक वर्ष तक ही होती है। जेमोलॉजी के पीजी डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश के लिए बैचलर डिग्री होनी जरूरी है। इस विषय की ज्यादातर अध्ययन सामग्री अंग्रेजी में उपलब्ध है, इसलिए अगर इस क्षेत्र में तरक्की चाहते हैं तो अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ बनानी होगी।

जेमोलॉजिस्ट का कार्य
रत्नों की पेशेवर जानकारी रखने वालों को जेमोलॉजिस्ट कहा जाता है। उन्हें रत्नों के ग्रेड और गुणवत्ता की परख के लिए रत्नों की आंतरिक संरचना और बाहरी सतह का बारीकी से विश्लेषण करना पड़ता है। इस कार्य में वह पोलेरिस्कोप और रिफ्रेक्टोमीटर का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रक्रिया के जरिए रत्न के प्राकृतिक या आर्टिफिशियल (कृत्रिम) होने का भी पता लगाया जाता है।

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प्रमुख कोर्स
सर्टिफिकेट कोर्स इन जेम आइडेंटिफिकेशन
सर्टिफिकेट कोर्स इन जेम प्रोसेसिंग
सर्टिफिकेट कोर्स इन स्टोन सेटिंग
डिप्लोमा इन कलर्ड स्टोन्स एंड जेम आइडेंटिफिकेशन
डिप्लोमा इन कटिंग एंड पॉलिशिंग ऑफ कलर्ड जेमस्टोन्स
डिप्लोमा इन डायमंड ग्रेडिंग
डिप्लोमा इन जेम कार्विग
डिप्लोमा इन जेमोलॉजी
डिप्लोमा इन एक्सेसरी एंड ज्वेलरी डिजाइन

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