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अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है सिकंदरपुर का ऐतिहासिक किला का पोखरा

सन्तोष कुमार शर्मा की रिपोर्ट

बलिया एक तरफ तो हम सभी जल संरक्षण, ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण, नदियों और पोखरों की सफाई और पवित्रता की बाते करते है, पर यह भी सच है कि हम सभी सिर्फ बातें ही करते है, अगर कभी कुछ होता भी है तो सिर्फ कागजों मे सरकारी फाइलों मे पर वास्तविकता के धरातल पर हर कोशिष हर योजना कराहती रहती है या दम तोड़ देती है,ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा करना आम जनता और सरकार का पहला कर्तव्य बनता है,पर दुर्भाग्य है हमारे समाज का हमारे सरकारी तंत्र का जो ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिये उसके धरातल पर उतर कर काम नही कर पाते। एक ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है बलिया जिले का प्रमुख शहर सिकन्दरपुर मे स्थित ऐतिहासिक व प्रसिद्ध “किला का पोखरा” जो अपने अस्तित्व के रक्षा के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है व विलुप्त होने की कगार पर है,वहीं यह पोखरा गंदगी का पर्याय बनकर,बीमारियों का पर्याय बनकर गंदे जल का पर्याय बनकर व अपने सम्पूर्ण जीर्णोद्धार की आस मे पलके विछाये बैठा इंतजार कर रहा है कि कब वो समय आयेगा जब मुझे सवारा जायेगा, मुझे साफ किया जायेगा,मुझे सजाया जायेगा ताकि इतिहास के पन्ने इस अनमोल ऐतिहासिक धरोहर को कभी भुला न सके।     किसी शायर की चार लाइनें याद आती है-

पल  पल  मरता जा रहा हूँ तेरे शहर मे,    इससे  भी बड़ी  और  सजा  क्या  दोगे ।   मैं बुझ रहा  हूँ अभी  भी बचा  लो मुझे,    मैं कोई दीपक नही जो फिर जला लोगे।   

सदियों पूर्व बादशाह सिकंदर लोदी ने अपने जमाने में यहां किले के निर्माण के समय इस पोखरे की खोदाई कराई थी। पोखरे के खुदाई उद्देश्य ये था किला में निवास करने वाले बादशाह के फौजियों और अन्य कर्मचारियों के स्नान का। खोदाई के समय ही पोखरा के पश्चिम तरफ बहुत ही खूबसूरत सीढियां निर्मित की गई थीं जिन पर बैठ कर नहाने की व्यवस्था थी। पर जैसे ही सिकंदर लोदी की बादशाहत खत्म हुयी उसके बाद शहर की आम जनता को एक पोखरे के रूप में स्नान करने का अच्छा साधन उपलब्ध हो गया। स्वच्छ जल के कारण धीरे-धीरे पोखरे पर स्नानार्थियों की भीड़ दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी। तब हालत यह था कि सुबह से देर शाम तक स्नानार्थियों की भीड़ के कारण पोखरा काफी गुलजार रहता था। यह स्थिति लगातार करीब एक सदी तक बनी रही। फिर बाद में हैंडपंप कल्चर के प्रादुर्भाव से पोखरा में नहाने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती गई। इस दौरान सफाई के अभाव में पोखरे का पानी जहां क्रमश: गंदा होने लगा जिसके चलते आम लोगों ने उसमें स्नान करना छोड़ दिया वहीं इसके भीटों पर कब्जा कर लोग पोखरा में मिट्टी पटाई भी करने लगे। इससे पोखरे का उसका दायरा भी क्रमश: घटता जा रहा था। यही नहीं, मरम्मत के अभाव में पोखरे की सीढियांं जर्जर हो गईं जिनका जीर्णोद्धार भले ही देर से सही, पर पूर्व नगर पंचायत चेयरमैन के प्रतिनिधि संजय जायसवाल की पहल पर कराया गया। वैसे पोखरे का पानी सफाई के अभाव में दिनोदिन काला पड़ता जा रहा है और बदबू का सबब बनता जा रहा है। इससे उसके बगल से गुजरने वाले आम नागरिकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हद तो यह कि अब पोखरा के किनारे पानी में अक्सर शुकर लोटते हुये दिखाई पड़ते रहते हैं, आमजन भी पोखरे मे लघुशंका करते, कचरा फेकते देखे जा सकते है। सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में आज हम इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप मे देखते है, अगर हां तो इसे बचाने के लिये हम नागरिकों ने कितने धरने प्रदर्शन किये और प्रशासन ने क्या कदम उठाये ? शायद ही कोई इसका जवाब दे पाये। आज आवश्यकता है एक ऐसे व्यक्ति या ऐसे संगठन की जो इस ऐतिहासिक धरोहर के अस्तित्व को बचाने के लिए अग्रसर होकर प्रयास कर सके व इस गंदगी के खिलाफ लड़ सके, साथ ही पोखरे की सफाई करा जल संरक्षण के लिए लोगों को प्रेरित कर सके। अब यह पोखरा शहर के नवनिर्वाचित चेयरमैन रविन्द्र वर्मा व प्रशासन से आस लगायें बैठा है कि शायद मेरा वह पुराना स्वरूप लौटा सकें।

Kanhaiya Krishna

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