मजदूर और कामगार कर रहे हैं पलायन
असलम खान की रिपोर्ट
अहरौरा मिर्जापुर स्थानीय क्षेत्र के पहाड़ियों में इन दिनों भारी मशीनों के इस्तेमाल की जैसे बाढ़ सी आ गयी है।खनन संपदा से भरमार क्षेत्र में हर एक कार्यों में बिना एनओसी के किये जा रहे भारी मशीनों के इस्तेमाल पर आखिर कब रोक लगेगा।पत्थर खदानों में पोकलेंन जेसीबी, डीप होल इंस्टूमेंट,भोट कटर जैसे तमान उपकरण धड़ल्ले से अपने कार्यो को अंजाम दे रहे हैं।मिनटों में बड़े से बड़े चट्टान को धरासाई करने वाले ये मशीन नियम की अवहेलना के साथ साथ प्रकृति को भी काफी मात्रा में नुकसान पहुँचा रहे हैं।2017 में योगी जी की सरकार बनते ही कुछ दिनों के लिए इन सभी मशीनों को कुछ पल के लिए बैन किया गया। किंतु खनन व्यापारियों और सफेदपोस की जुगलबंदी ने अधिकारियों पर दबाव बनवा पुनः भारी मशीनों का इस्तेमाल सुरु कर दिया।अगर किसी समाज सेवी या पीड़ित व्यक्तियों के द्वारा आवाज उठाया गया तो उनको भी राजस्व छति का हवाला देकर मुकदमा लिखने की धमकी दे आवाज दबा दिया जाता है।जिसका खामियाजा यहां के बेरोजगार मजदूर भुगत रहे हैं।और नगर ग्रामीण क्षेत्र के मजदूर अन्य राज्यो में पलायन कर रहे हैं।मशीनों के इस्तेमाल से प्लिंथ भूमि के नीचे खुदाई कर पत्थर और मिट्टी धड़ल्ले से निकाला जा रहा है।जिसका जीता जागता सुबूत खनन से बने गढ्ढे और तालाब है।जिसमे डूबकर दर्जनों जीव जंतुओं और इंसानों की मृत्यु भी हो चुकी है।जिन खेतो की उपजाऊ मिट्टी से किसान खेती कर समाज में अपना योगदान देता है उसे भी खननकर्ता कम दूरी और मोटी रकम बचत के चलते चंद पैसों का लालच देकर खेतो से कई फ़ीट मिट्टी निकालकर गढ्ढा बना दे रहे हैं।ऐसे में अगर जल्द ही इन अवैध खनन कर्ताओं और भारी मशीनों के इस्तेमाल पर अंकुश न लगाया गया तो भविष्य में ये पुरात्तविक अहरौरा क्षेत्र पठार में तब्दील हो जायेगा।और बाहरी लोग इसको अंदर बाहर दोनों तरफ से खोखला करते रहेंगे।
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