नई दिल्ली : आज़ादी के 10 साल बाद 1957 में देश में खेती और किसान की बदहाली दिखाती फिल्म ‘मदर इंडिया’ को दर्शकों ने बहुत सराहा। जहां साहूकार जो अमीर है, किसान को कर्ज़ की मार के नीचे दबोचता हुआ दिखाई देता है। जहां एक किसान परिवार का मुख्य सदस्य खुदकुशी के लिए मजबूर होता है, एक मां अपने दो बेटों को गरीबी के कारण खो देती है और यह साहूकार किसान की पत्नी को जिस्मानी हवस की नज़र से देखने में भी नहीं हिचकिचाता है। इसकी मात्र एक वजह है कि साहूकार अमीर है और किसान उसका कर्ज़दार।
इस फिल्म ने अमीरी और गरीबी में बढ़ती हुई खाई को भी बखूबी दिखाया है, जहां इसी गरीबी की निराशा से किसान का बेटा बिरजू बचपन से जवानी तक साहूकार से नफरत करता है। बिरजू का स्वभाव हिंसक होता जाता है, वहीं साहूकार से बदला लेने के लिये उसकी इच्छा और तीव्र होती जाती है। एक दिन वह बंदूक उठाता है और डाकू बन जाता है और साहूकार का कत्ल करता है।
फिल्म का अंत हम सब जानते हैं, जहां एक मां अपने बेटे का कत्ल इसलिए कर देती है क्योंकि वह इसी गांव की बेटी, साहूकार की बेटी को उठाने के लिये अमादा होता है। यहां फिल्म में खलनायक के रूप में बिरजू के उभरकर आने की मुख्य वजह गरीबी की निराशा और कमज़ोर होना दिखाई देती है।
इसके पश्चात भी इसी तर्ज़ पर कई फिल्में आई हैं, जहां गांव, किसान से हटकर कहानी मज़दूर और शहर में दिखाई देती है। मसलन यश चोपड़ा की फिल्म ‘दीवार’, जहां विजय के किरदार में अमिताभ बच्चन हर तरह के गैर कानूनी काम करने से पीछे नहीं हटता। हां, यहां विजय के किरदार में इसका बचपन, जवानी दोनों ही गरीबी से होते हुए निराशा की चरम सीमा पर है लेकिन इस फिल्म का एक मशहूर संवाद जहां विजय कहता है, “मेरे पास गाड़ी है, बंगला है, बैंक बैलेंस है, क्या है तुम्हारे पास”, इसकी वजह मसलन गरीबी, निराशा से ज़्यादा शहर की चमक धमक दिखाई देती है।
इसी तर्ज़ पर संजय दत्त की फिल्म ‘वास्तव’ में रघु एक बेरोज़गार है, जहां एक हादसा रघु को एक गैंगस्टर के रूप में उभार देता है। पैसा, ताकत सबकुछ है उसके पास। हिंसक मानसिकता से रघु अपने परिवार को अपने गले में पहने हुए सोने के हार को भी दिखाता है, जहां उसका अभिमान सोने के वजन “25 तोला” कहने से पीछे नहीं हटता।
वहीं फिल्म ‘राम लखन’ में पैसों की लालसा में लखन के किरदार में मौजूद अनिल कपूर को भ्रष्ट बनने में कहीं कोई कमी नहीं दिखाई देती है। वह वर्दी में है, जवान है, पढ़ा लिखा है, इतना कमाता है कि एक ईमान की ज़िन्दगी इज्ज़त से सर उठाकर बसर कर सकता है लेकिन पैसों का लालच उसे भ्रष्ट बना देता है। वहीं ऐसी कितनी फिल्में आई हैं, जहां कॉलेज के विद्यार्थी जो पढ़े लिखे हैं, पैसों की कमी भी नहीं है और ना ही कोई निराशा है और ना जीवन में अत्याचार लेकिन फिर भी कॉलेज की कैंटीन में लड़ते हुए दिखाई देते हैं, फिल्म ‘शिवा’ इसका उदाहरण है।
खैर ये फिल्में हैं, जहां कहानीकार को एक सामाजिक दृष्टिकोण से फिल्म का अंत करना होता है लेकिन इसी समयकाल में हमारे ही समाज में कितने दबंग पहले हिंसा को अपनाकर नाम कमाते हैं, जहां वह जनता में लोकप्रिय भी होते हैं और बाद में राजनीति का सफर शुरू करके हम पर ही राज करते हैं। मसलन हिंसा को समाज आज अपनी परवानगी दे रहा है।
लेकिन राम जन्मभूमि के बाद कई ऐसी फिल्में आई हैं, जहां आंतकवाद की रूपरेखा में एक मज़हबी इंसान को खलनायक दिखाया गया है। अगर मदर इंडिया का बिरजू, दीवार का विजय और राम लखन का लखन, गरीबी, पैसों की कमी, अशिक्षा, मसलन मूलभूत अधिकारों की कमी के कारण खलनायक बनता है तो मुल्क का शाहिद जो आंतकवाद की ओर प्रेरित होता है उसके जीवन में मौजूद गरीबी, अशिक्षा, निराशा, मूलभूत सुविधाओं की कमी को फिल्म का दर्शक क्यों नहीं समझ रहा?
समाज में मौजूद धर्म और मज़हब की खाई इसकी एक मुख्य वजह है लेकिन इसी धर्म और मज़हब में यह जो अंतर बनाया गया है उन कारणों को समझने के लिये हर नागरिक को व्यक्तिगत विश्लेषण करने की ज़रूरत महसूस ज़रूर होनी चाहिये। शायद तब ही हम एक बेहतर समाज की नींव रख सकते हैं।
El breve Versión: entre los formas más efectivas de impulsar descansar es por crear tu…
Algunos ocasiones trascendentes han hecho antecedentes y moldearon los destinos de generaciones por venir. La…
Sitio web Detalles: Cost: 8 crédito tienintercambio de parejas liberalesn a ser 13,92 AUD. 25…
Durante 1860 hasta 1861, el Pony presente sirvió como correo servicio conectando la costa este…
Hai mai pensato a cosa piace essere Hugh Hefner? Non posso assisterti con il palazzo,…
Non c'è soluzione rapida per una relazione infranto dal tradimento. Se tutto è sempre ottenere…