उत्तर प्रदेश

शिक्षा की दिशा में आगे बढ़ने के लिए डॉ.भीमराव अंबेडकर से बडा कोई प्रेरणा नही हो सकता -दिनेश कुमार

भदोही जनपद के सुरियावां ब्लाक के ग्राम-सनाथपट्टी खरगपुर के युवा समाजसेवी दिनेश कुमार यादव दादा ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती पर कहा कि महान विचारक, कर्मयोगी, मन से -वचन से-कृति से निरंतर संघर्षरत डॉ साहब की गणना उन महापुरुषों में होती है, जिनके व्यक्तित्व, कृतित्व ने न केवल इतिहास में अपना स्थान बनाया, बल्कि उस काल के घटनाचक्र को भी एक निश्चित दिशा दी. डॉ बाबा साहेब ने अछूत और निम्न वर्ग के मानव की समता के लिए समाज में एक चिंगारी प्रकट की. बाबा साहेब अांबेडकर निर्भय क्रांतिवीर थे. भारत के उस कालखंड में व्याप्त कुरीतियों से उन्होंने दलित समाज को ऊपर उठाया था, परंतु किसी बदले की भावना से नहीं. उन्होंने दूसरों को मार–काट कर बड़ा होने की बात कभी नहीं की. डॉ बाबा साहेब एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जो वंचितों के लिए लड़ते थे. वे दलितों के अधिकार के लिए लड़ते थे, उनके स्वाभिमान और सम्मान के लिए जूझते थे. दलितों के बीच बैठ कर उन्हें कड़वी से कड़वी, कठोर से कठोर बात कोई कह सकता था, ऐसे थे डॉ बाबा साहेब. दिनेश कुमार यादव दादा ने यह भी कहा कि डॉ आंबेडकर के बारे में अध्ययन किया होगा, उन्हें इस बात का ज्ञान अवश्य होगा. 

 बाबा साहेब का नाम स्मरण होते ही समाज में एक चेतना की अनुभूति होती है. वे समस्त विश्व के महामानव थे. एक बात तो समझनी चाहिए कि अगर जीवन में प्रगति करनी है, तो डॉ अांबेडकर ने जो रास्ता बताया है, उसी पर चलना पड़ेगा. 

बौद्ध परंपरा में और बौद्ध धर्म में एक ही बात की गूंज है–‘अप्प दिप्पो भव’. दूसरे शब्दों में कहें, तो आत्मदीपो भव:. अर्थात स्वयं प्रकाशित हो, अंधकार तुम्हारे पास नहीं आयेगा.  उन्होंने अपने जीवन में कभी भी अंधकार को अपने पास फटकने नहीं दिया. शिक्षा की दिशा में आगे बढ़ने के लिए बाबा साहब से बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती है. 

एक विद्यार्थी के रूप में उन्होंने जैसा संघर्ष जीवन में किया, वैसा हमलोगों को नहीं करना पड़ा है. उन्होंने जितने कष्ट उठाये थे, ऐसे कष्ट तो शायद ही किसी ने उठाये हों. विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने यह ऊंचाई प्राप्त की थी. 

बाबा साहेब की दूसरी विशिष्टिता थी कि वे कहते थे– ‘‘शिक्षित बनो’’, परंतु जब तक वे स्वयं शिक्षित नहीं हुए, तब तक उन्होंने यह उपदेश किसी को नहीं दिया था. शिक्षित होने के बाद ही उन्होंने शिक्षित बनो का नारा दिया। यही एक मात्र सही मार्ग है. डॉ बाबा साहेब के जीवन को जानने का, पढ़ने का, अध्ययन करने का, मनन–चिंतन का संकल्प करें. आप देखेंगे कि इस महामानव के जीवन में से आपको जीने की एक नयी दिशा प्राप्त होगी. मैंने बाबा साहेब को पढ़ने का, अध्ययन करने का काम किया है. मैं भी एक मजदूर पिछड़े परिवार में जन्म लेकर बड़ा हुआ हूं. इसलिए अनुभव करता हूं कि यह वेदना क्या होती है. यह पीड़ा क्या है, इसकी जानकारी मुझे है. और इस कारण अंदर में एक आग सुलगती है.

बाबा साहेब की एक और विशिष्टता थी. वे सत्य के लिए लड़ते थे, परंतु उनके जीवन में नफरत का कहीं कोई स्थान नहीं था. वे समाज को तोड़ना नहीं जोड़ना चाहते थे. एकता, समता और ममता के लिए जीवन भर उनका मंथन चलता रहा है. समाज परिवर्तन में नारी कितना योगदान दे सकती है, यह भी बाबा अच्छी तरह से जानते थे. इसलिए उन्होंने 1942 में शिड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन (अनुसूचित जाति संघ) के अधिवेशन में 20 हजार अस्पृश्य महिलाओं से आह्वान किया था– ‘‘आप स्वच्छ रहिए, दुर्गुणों से दूर रहिए, अपनी संतानों को अच्छी तरह पढ़ाईए और शिक्षित कीजिए. मेरी इस सलाह को मान कर आप सब अपनी भी उन्नति करेंगे और समाज को प्रगति के मार्ग पर भी ले जा सकेंगे’’.

मुझे लगता है कि घर-परिवार को सुखी बनाना है, तो डॉ साहब की यह बात केवल अनुसूचित जाति की माता–बहनों को ही नहीं, बल्कि भारतवर्ष की समस्त माता–बहनों को स्वीकार करनी चाहिए. दलितों, पीड़ितों और शोषितों के सामाजिक व आर्थिक जीवन में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने संघर्ष किया.

भदोही जनपद के डीह ब्लाक के समाजसेवी लालू यादव न कहा की बाबा साहेब देश के लिए काम किया, इस कारण वे पूजनीय हैैं. परंतु बाबा साहेब को मात्र दलितों का तारणहार मान कर उन्हें एक सीमा में बांध दिया गया है. बाबा साहेब तो सभी पिछड़े व उपेक्षित लोगों के तारणहार थे. वंचितों के लिए लड़ते विगत सदी के दो महामानव इसके उदाहरण हैं. भदोही जनपद के ज्ञानपुर के सपा नेता रमेश चंद्र यादव दद्दा ने कहा कि अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग और भारत में डॉ अांबेडकर. इन दोनों ने अपना जीवन दबे–कुचले लोगों के अधिकार के लिए संघर्ष करते हुए बीता दिया. बाबा साहेब और मार्टिन लूथर किंग के पालन-पोषण में अद्भूत साम्य है. दोनों अभावों के बीच जन्मे और पले. दोनों अपने लिए नहीं, बल्कि वंचितों के लिए लड़ते रहे. सामाजिक असमानता और विषमता की खाई को पाटने के लिए जीवन भर जूझते रहे. दोनों ने शिक्षित होने पर जोर दिया.

बाबा साहेब आंबेडकर ने इंग्लैंड की धरती पर रह कर डिग्रियां प्राप्त कर ली थी. इन डिग्रियों के आधार पर वे चाहते तो रुपयों का ढेर लग जाता, परंतु उन्होंने यह सब छोड़ दिया. बैरिस्टर बने थे. इसके बाद भी उन्होंने इंग्लैंड के पाउंड को ठोकर मार दी और कहा कि मैं तो अपने देशवासियों की सेवा में जीवन अर्पित कर दूंगा. उन्हें स्वयं की नहीं, समाज की चिंता थी. डॉ बाबा साहब, पं नेहरू के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री थे, परंतु उनके ह्दय में तो समाज हित की अखंड धारा प्रवाहित हो रही थी. इसी कारण वे मंत्री पद त्याग कर समाज के काम पर निकल पड़े.

 सुरियावां के महजुदा निवासी छात्र नेता बृजेश यादव ने कहा कि आजादी के बाद देश में कांग्रेस की सरकार थी. कांग्रेस का झंडा लहराता था. तब देश में लोग बाबा साहेब को कम से कम पहचाने, इसके लिए योजना पूर्वक कार्यक्रम बनाया गया था. कांग्रेस ने खुद योजनाबद्ध तरीके के दो महापुरुषों के प्रति अन्याय किया था. एक थे सरदार पटेल और दूसरे बाबा साहेब अांबेडकर. पूरे देश से इनका संपूर्ण परिचय ही नहीं होने दिया. यही कारण है कि आज भी समाज के अंदर बाबा आंबेडकर और सरदार पटेल की कमी महसूस होती है. बाबा साहेब को भारत रत्न पुरस्कार मिले, इसके लिए हम सबको आंदोलन करना पड़ा, इससे बड़ा कोई दुर्भाग्य नहीं हो सकता

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