राम धीरज यादव की रिपोर्ट :
अमेठी : ऐतिहासिक व पौराणिक मन्दिर माँ अहोरवा भावानी मन्दिर की स्थापना पांण्डवो ने अज्ञात वास के दौरान की थी। द्वापर युग से ही यह मन्दिर लोगों के लिए अस्था व विश्वास का केन्द्र है। माँ अहोरवा भावानी की मूर्ति दिन में तीन बार अपने स्वरूप बदलती है और नवरात्रि में लोग माँ के दर्शन कर अपनी मुंह मांगी मुरादे पाते है।
अमेठी जनपद मुख्यालय से लगभग 50 किमी0 दूर पश्चिम छोर पर अहोरवा भावानी कस्बे में माँ अहोरवा भावानी का मन्दिर है। इस ऐतिहासिक मन्दिर की स्थापना पांण्डवो ने अज्ञात वास के दौरान की थी। इतिहासकारों के मुताबिक धनुरधारी वीर युद्धा अर्जुन इस विराट वन में शिकार करने आये थे, जहां पर इनको स्वपन में अहेर नामक युवक दिखाई दिया। उसी के बताये जाने के बाद पांण्डवों ने माता कुन्ती व द्रोपदी के साथ प्राणप्रष्ठिा कर पूजा अर्चना की। पहले से ही अहेर के नाम से ही जाना जाता था। अब बोल चाल की भाषा में धीरे-धीरे इसे अहोरवा भवानी कहां जाने लगा ।
मान्यता यह कि महाभारत के बाद अदश्य हो गयी थी जो कालान्तर में एक चरबाहे को माता के दर्शन मिले जिसकी अपार श्रद्धा और पूजा भाव के चलते मन्दिर के रूप में माँ अहोरवा भवानी का अविर्भाव हुआ। वही क्षत्रिय वंशावली पर गौर करें तो अहोरवा भवानी के आस पास लगभग 360 गाण्डीव क्षत्रिय के नाम से जाना जाता है।
मान्यता यह है कि माँ की मूर्ति अपने भक्तों को दिन में तीन रूप में दर्शन देती है। प्रातः काल में बाल्यावस्था दोपहर में युवावस्था तथा सायंकालीन वृद्धावस्था के रूप में भक्तों को दर्शन देती है। मां के मन्दिर की परिक्रमा करने से मुंह मांगी मुरादे पूरी होती है। मां के चरणों से निकलने वाले नीर से भक्तो को असाहय रोगों से छुटकारा मिलता हैं। यह नीर शीशी में लेकर लोग जाते है और आंखों में लगाते है इससे आंखों की रोशनी वापस आ जाती है।
क्वार व चैत्र के नवरात्रि में मां के दरबार में भक्तों की अपार भीड़ उमडती है और प्रत्येक सोमवार को भी मां के दरबार में भक्तों द्वारा पूजा अर्चना की जाती है। यहां पर निःशन्तान दम्पत्ति सन्तान प्रप्ति का अनुष्टान करते है और लोगो की मुरादे मां पूरी करती है। नवरात्रि में लोग मां के दरबार में मांगलिक कार्यक्रम भी सम्पन्न कराते है। नवरात्रि में प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में भक्तगण प्रांगण की फेरी कर मुरादे मांगते है और मां सभी की मुरादे पूरी करती है।