आपसी प्रेम, एकता व सद्भाव को बढ़ावा दे, भेदभाव व मतभेदों को त्यागें:- श्री हरि चैतन्य महाप्रभु
ब्रजराज का टीका लगाकर दिव्य व विशाल होलिकोत्सव प्रारंभ
अजय कुमार विद्यार्थी की रिपोर्ट
कामां (राज०)19 मार्च:- प्रेमावतार, युगदृष्टा श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध युवा संत श्री श्री स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज यहाँ श्री हरिकृपा आश्रम में होलिकोत्सव के अवसर पर उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि युगों युगों से मानव मात्र को प्रेम,एकता व सदभाव का दिव्य संदेश विभिन्न संकीर्णताओं, मतभेदों व मतभेदों को भुला देने की प्रेरणा देता चला आ रहा है यह होली का पावन पर्व । होली नास्तिकता पर आस्तिकता की विजय का पर्व है, अन्याय पर न्याय की विजय, अत्याचार पर सदाचार की विजय का प्रतीक है। इसलिए होली ने सामाजिक त्योहार के साथ साथ आज राष्ट्रीय त्योहार की मान्यता भी प्राप्त कर ली है। यह बसंत गमन के साथ साथ आमोद प्रमोद तो लेकर आता ही है साथ ही भारतीयों के लिए सदाचार और न्यायपूर्ण जीवन का संदेश भी लाता है। होलिका दहन के साथ साथ एक चेतावनी भी लाता है कि अन्याय के दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।सत्य धर्म न्याय अच्छाई व प्रभु भक्त की सदैव अंत में विजय होती है। प्रेरणास्पद उदाहरण प्रस्तुत करता है यह दिव्य पर्व।उन्होंने अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों में कहा कि समस्त संसार भी चाहे शत्रु क्यों न हो जाए लेकिन पुण्यात्मा हरि भक्त का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। पग पग पर प्रभु को समर्पित, कर्तव्य परायण, दृढ़ निश्चयी भक्त की रक्षा व सहायता करते हैं “श्री हरि”। इसका साक्षी है यह पर्व। भक्तराज प्रहलाद का दिव्य व आदर्श जीवन चरित्र सचमुच मानव मात्र के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इतिहास साक्षी है कि मिथ्या अहंकार में फूले हुए हिरण्यकश्यप ने स्वयं अपने ही पुत्र प्रह्लाद पर कितने निर्मम अत्याचार किए। जिसका अपराध शायद मात्र इतना था कि उसने परमात्मा का नाम लेना नहीं छोड़ा। लेकिन सदैव रक्षा की प्रभु ने व उस अहंकारी हिरण्यकश्यप का नाश भी किया। भक्त का नाश नहीं हो सकता। परमात्मा की कृपा जिस पर हो उसके लिए विष भी अमृत बन जाता है। शत्रु भी मित्रवत हो जाते हैं। अपार सागर भी गाय के पैर के गड्ढे के समान हो जाता है, अग्नि भी शीतल हो जाती है, सुमेरू जो अलंघ्य पर्वत है जिसे कोई लाँघ नहीं सकता। ऐसा अलंघ्य पर्वत सुमेरू भी उसके लिए रज कण के समान हो जाता है। हर असंभव कार्य भी संभव हो जाता है, कठिनतम कार्य भी सरल हो जाता है, वही प्रहलाद के साथ भी हुआ।
महाराज श्री ने कहा कि दृढ़ विश्वास व सत्य स्नेह परिपूर्ण भक्ति हो तो कोई बाधा दीर्घकाल तक नहीं टिक सकती। व यदि किसी कारणवश टिक भी गई तो इतना साहस मिलता है कि व्यक्ति किसी प्रकार की भी बाधाओं, कठिनाइयों, मुसीबतों, परीक्षाओं से विचलित नहीं हो पाता। सदा सदा से यह त्योहार लोगों को प्यार का संदेश देता आया है। हमने भी देखा है, व सुना भी है कि आज के दिन सदियों पुरानी दुश्मनी को भी भुलाकर लोग गले मिल जाते थे। परंतु दुर्भाग्यवश आज अनेक स्थानों पर होली के दिन दिलों की रंजिश निकालने का मौक़ा ढूंढकर लोग दुश्मनी पैदा कर लेते हैं जैसा कि अनेक घटनाओं द्वारा सुनने को मिलता है। इतिहास को उठाकर देखो, वरदान या कवच प्राप्त होलिका भी जल गई लेकिन प्रहलाद पर आँच भी नहीं आयी। अपने धाराप्रवाह प्रवचनों में उन्होंने सभी भक्तों को मंत्र मुग्ध व भाव विभोर कर दिया। सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा व “श्रीगुरु महाराज”, कामां के कन्हैया व लाठी वाले भैया की जय जयकार से गूंज उठा। सभी भक्तजन “हरिबोल” की धुन में झूम झूम कर नाचने लगे। महाराज श्री ने कहा कि सदैव इस ब्रजरज व पावन भारत भूमि के महत्व को स्वीकार करना, सम्मान देना चाहिए। आज तो इस होलिकोत्सव की शुरुआत ब्रजराज के टीके को अपने अपने मस्तक पर लगाकर स्वयं को कृतार्थ करके ही करनी चाहिए। जय जयकार होने लगी और महाराज जी ने पहले से भी अपने पास सादर रखी बृजधुलि का टीका स्वयं अपने मस्तक पर लगाया व लोगों ने भी लगाना शुरू कर दिया। विश्व में अपने आप में एक अनोखे मर्यादित व आदर्श ढंग से महाराज श्री के सानिध्य में यह पवित्र त्योहार मनायाब
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