निशांत झा की रिपोर्ट :
सुपौल : सरकार और प्रशासनिक तंत्र में बैठे हुए अधिकारी विकास कार्यों को लेकर तमाम तरह के दावे करते हैं लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों से कोसों दूर होती है। हकीकत यह है कि जहाँ एक तरफ सरकार गठन के बाद जनप्रतिनिधि अपने वादों को भूल जाते हैं वही प्रशासनिक अधिकारी भी हालात को भगवान भरोसे छोड़कर चैन की बांसुरी बजाते नजर आते हैं। हम बात कर रहे हैं सुपौल जनपद के छातापुर प्रखंड के लक्ष्मीनिया गांव में स्थित शहतूत भवन की, जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। खास बात यह है कि इस शहतूत भवन के कायाकल्प के लिए राशि तो निकाल ली गई लेकिन काम अब तक पूरा नहीं हुआ है।
इस शहतूत भवन में किसी जमाने में रेशम का सूत तैयार किया जाता था और इस लघु उद्योग से किसी जमाने में लोगों की रोजी-रोटी भी चलती थी, लेकिन सरकार और प्रशासन तंत्र में बैठे हुए अधिकारियों की उदासीनता के कारण यह समय-दर-समय बदहाल होता गया, जिसकी किसी ने सुध नहीं ली। कुछ लोगों ने इसके कायाकल्प के लिए आवाज उठानी शुरू की तो 2011 में इसके मरम्मत के लिए ₹496000 आवंटित किए गए।
इस शहतूत भवन के मरम्मत के नाम पर राशि निर्गत भी कर दिया गया लेकिन गौर फरमाने वाली बात यह है कि इनका काम अब तक पूरा नहीं हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि एक बार गांव में बीडीओ साहब भी आए थे लेकिन ग्रामीणों द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने संतोषजनक जवाब नहीं दिया। ऐसे ममें सवाल ये है कि इस भवन के मरम्मत के नाम पर निकाले गए रूपये आखिर गए कहाँ ? जो राशि निर्गत की गई, वो कहीं भ्रष्टाचार की भेंट तो नहीं चढ़ गए ?
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