मुख्य वक्ता के रूप में डा० गणेश कुमार पाठक, डा० रघुनाथ उपाध्याय ‘सलभ’, पत्रकार अशोक जी एवं संजय कुमार मौर्य ने उपन्यास पर अपने समीक्षात्मक व्याख्यान प्रस्तुत किए। अन्य वक्ताओं में रामजी तिवारी, शेषनाथ राय, आशीष त्रिवेदी आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
मुख्य वक्ता के रूपमें अपने विचार व्यक्त करते हुए अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य डा० गणेश कुमार पाठक ने कहाकि 20 वीं शदी के अंतिम दशक में हिन्दी साहित्य में “दलित विमर्श ” एवं ” स्त्री विमर्श” दो प्रवृत्तियाँ सामने आयीं और इसके पहले ही यह उपन्यास 1984 में प्रकाशित हो चुका था, जिसमें अति उपेक्षित दलित डोम जाति को केन्द्र में रखकर इस उपन्यास को लिखने का साहस रामबदन याय ने किया और अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि को दरकिनार करते हुए, लोगों के ब्यंग्य बाण सहकर भी इस अछूते समाज का वास्तविक चित्र हमारे सामनने उकेरा है।उपन्यास की कथावस्तु एक प्रेम कहानी पर आधारित है और इसका केन्द्रीय तत्व प्रेम है। इसके केन्द्रीय पात्र सुगिया एवं सोहना को दलित होने के नाते समाज की सभी विद्रूपताओं, विषमताओं, विसंगतियों एवं विकृतियों को झेलना पड़ता है। किन्तु वहीं दूसरी तरफ इस उपन्यास में देवेन एवं दीवानी ( जो आपस में भाई- बहन का नाता रखते हैं) के माध्यम से हमाज की अच्छाइयों को भी उकरने का प्रयास किया है और सभी विद्रूपताओं को झेलते हुए भी सुगिया एवं सोहना एक दूसरे के हो जाते हैं। यह उपन्यास स्थान , काल एवं परिवेश के संदर्भ मे आँचलिकता, प्रकृति चित्रण, मेले- त्यौहार, मुहावरे , लोकोक्तियों, कहावतों एवं गीतों की प्रस्तुति के माध्यम से लेखन ने उपन्यास को काफी महत्वपूर्ण बना दिया है।
डा० रघुनाथ उपाध्याय ‘ सलभ’ ने कहाकि ‘फिरकी वाली ‘ उपन्यास में लेखन ने ग्रामीण परिवेश की आँचलिकता को चित्रित करते हुए सामाजिक बर्चस्व एवं सामाजिक बर्चस्व के विरूध्द संघर्ष को उकेरा है। संजय कुमार मोर्य ने कहाकि यह उपन्यास सौन्दर्यबोध से ओत- प्रोत है, जिसको प्रकट करने हेतु लेखक ने आँचलिक शब्दों कू साथ ही साथ अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयो किया है। पत्रकार अशोक ने सभी वक्ताओं के वक्तव्यों की समीक्षा करते हुए कहा कि राजसत्ता किसी न किसी रूपमें प्रत्येक समाज एवं वर्ग में सदैव से रहा है और संघर्ष भी होते रहे हैं, किन्तु जिस दलित वर्ग के डोम जाति की राजसत्ता को एवं उसके संघर्ष को रामबदन राय ने ” फिरकी वाली” उपन्यास के माध्यम से प्रस्तुत किया है, यह पुस्तक सदैव प्रासंगिक रहेगी।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो० यशवंत सिंह ने कहाकि ” फिरकी वाली” उपन्यास में सामाजिक बर्चस्व एवं सामाजिक संदर्भों की अद्भूत परम्परा का रेखांकन किया गया है। यह चलता रहेगा, यही इसकी ऊर्जा है। किन्तु इसमें एक संतुलन होना चाहिए ताकि समाज चलता रहे। रामजी तिवारी ने कहाकि जो साहित्य ग्रामीण परिवेश की पृष्ठभूमि पर लिखा गया हो , उसमें आँचलिकता तो रहेगी ही। लेखन में समाज का जो हिस्सा है, वह साहित्य से जुड़ा होना चाहिए। अब तो आँचलिक साहित्य, साहित्यकार एवं समाज से उनका जुड़ाव समाप्त होता जा रहा है , क्योंकि अब तो साहित्य और सत्ता दोनों में समन्वय स्थापित हो गया है और साहित्य तथा सत्ता दोनों का केन्द्र दिल्ली हो गया है। मुख्य अतिथि अपने को सभी वक्ताओं से जोड़ते हुए इस उपन्यास को एक सफल उपलब्धि बताया।
उपन्यास के लेखक रामबदन राय ने इस ” फिरकी वाली” अपने उपन्यास के लेखन की शुरूआत के बारे में चर्चा किया और बताया कि डोम जाति की डोमकच एवं समाज में उनके प्रति उत्पन्न तिरस्कार ने उन्हें झकझोर दिया और फिर समाज की चिन्ता किए बगेर उन्होंने अपनी लेखनी चलानी शुरू कर दी । पहले तो उन्होंने कहानी लिखना प्रारम्भ किता , किन्तु लह उपन्यास बनता गया जो आपके सामने है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डा० जनार्दन राय ने कहा का आज मैं निःशब्द हूँ। इस कालजयी कृति के लिए बस मैं आशिर्वन ही दे सकता हूँ।
कार्यक्रम के अंतमें प्रसिद्ध रंगकर्मी विवेकानन्द ने सभी आगन्तुकों के प्रति आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम के संयोजक मोहनजी श्रीवास्तव रहे , जबकि कार्यक्रम का संचालन डा० राजेन्द्र भारती ने किया।
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