साल की शुरुआत का जश्न मनाने वाले दुनिया भर के तमाम लोगों को इस बात का शायद अंदेशा भी नहीं होगा, कि साल की तिमाही में ही वक्त की रफ़्तार पर सरपट दौड़ती दुनिया की रफ्तार पर पावर ब्रेक लग जायेगा और दुनिया थम जाएगी, सहम जाएगी। नंगी आँखों से न दिखने वाला वायरस दुनिया भर में इस तरह तबाही मचाएगा, कि तमाम ताकतवर देश भी इसके आगे नतमस्तक नज़र आएंगे, इस बात की कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी। कोरोना वायरस ने मानव सभ्यता को उस मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ से तमाम भौतिक संसाधन और आर्थिक संपन्नता बेकार और बेमानी प्रतीत होने लगे हैं। दुनिया भर के तमाम देश इस वायरस का तोड़ ढूंढने में लगे हुए हैं, लेकिन नतीजा अब तक सिफर ही रहा है।
कोरोना ने मानव सभ्यता की धैर्य को प्रत्यंचा पर चढ़ा रखा है, जैसे ही प्रत्यंचा पर पकड़ ढीली हुई, दुनिया को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कोरोना ने दुनिया के तमाम देशों की, मजदूरों और कामगारों को लेकर उपेक्षा भरे रवैये को जगजाहिर कर दिया है और शायद यही कारण है कि मजदूरों का धैर्य शुरुआत में ही जवाब दे गया। मजदूरों के पलायन से उपजी समस्या से हम वाकिफ हैं, लेकिन जरा कल्पना कीजिये कि मजदूरों की तरह अगर मध्यम वर्ग का धैर्य भी जवाब दे जाये, तो क्या होगा। 1 जून से सरकार ने अनलॉक 1 का एलान कर भले ही पाबंदियों में छूट का ऐलान कर दिया हो, लेकिन आम जनजीवन अभी पटरी पर लौटती नज़र नहीं आ रही है। सरकारी दावों में भले ही मौसम गुलाबी नज़र आता हो, लेकिन हकीकत में है बदरंग ही।
दरअसल सरकार ने भले ही पाबंदियों में छूट का ऐलान कर दिया हो, लेकिन इससे न तो व्यवस्थाएं एकदम से सही हो जाएगी और न ही इस महामारी का प्रकोप ख़त्म हो जायेगा। आंकड़ों पर गौर करें तो जब से पाबंदियों में छूट का ऐलान किया गया है, तब से कोरोना संक्रमण के मामलों में रफ़्तार देखने को मिली है। वहीं दूसरी तरफ कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के कारण जो सप्लाई चेन बाधित हुआ है, वो भी एकदम से बहाल नहीं हो पाएगा। इसका सीधा मतलब ये है कि संकट का ये दौर अभी खत्म नहीं होने वाला है। जरा सोचिये कि लॉकडाउन की वजह से उत्पादन की रफ़्तार पर जो ब्रेक लगा है, वो क्या एकदम से बहाल हो जायेगा ? लॉकडाउन की वजह से लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घर चले गए, उन सभी का अभी तुरंत लौटना भी संभव नहीं है, ऐसे में महानगरों में पहले की तरह औद्योगिक गतिविधियों का बहाल हो पाना फिलहाल संभव नज़र नहीं आता।
कोरोना काल में बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार गंवाने की खबर सामने आ रही है। कई कंपनियां ऐसी है, जो आर्थिक नुकसान की वजह से कर्मचारियों की छंटनी कर रही है, जबकि कई कंपनियां जान-बूझ कर कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा रही है। ऐसी कंपनियां कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में गिने-चुने कर्मचारियों पर काम का अतिरिक्त बोझ डाल रही है। हालात ये हैं कि जिन लोगों की नौकरी गई है, वो तो तनावग्रस्त है ही, जो काम कर रहे हैं वो भी वर्कलोड की वजह से हताशा और निराशा में जी रहे हैं। आलम ये है कि इस संकट के दौर में नई नौकरी मिलने से रही। ऐसे में अगर कभी इन लोगों का धैर्य जवाब दे जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
चकाचौंध भरी इस भौतिक दुनिया में आप प्रसन्नता का एहसास तभी कर पाते हैं, जब आप भौतिक संसाधनों से संपन्न हो। आर्थिक संपन्नता के लिए आपके पास अच्छी सैलरी वाली नौकरी का होना जरुरी है और जब ये न हो तो ऐसे में मानव मन की विचलितता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। कोरोना काल में लोगों की असली जमापूंजी है धैर्य, जिसका समुचित संचय ही सही मायनों में मानव सभ्यता को इस त्रासदी के दौर से उबार सकता है।
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