मोदी सरकार किसानों पर नाराज पूंजीपतियों पर मेहरबान-अजय राय

 

 

 

चन्दौली ,किसानों के द्वारा गॉव बन्द आंदोलन के तहत चकिया शव्जी मंडी में किसानों के बीच बोलते हुए स्वराज अभियान के नेता व मजदूर किसान मंच के जिला प्रभारी अजय राय ने कहा कि किसान  जीडीपी, निर्यात व विदेशी करेन्सी लाने में बराबर योगदान करते है इसलिए किसानी व खेती की तरक्की के लिए बैंकों से कर्ज और सरकार से सब्सिडी का सहयोग जरूरी है। लेकिन सरकार उल्टी नीति पर चल रही है। कृषि सब्सिडी लगातार कम करती जा रही है। खेती में लागत बढ रही है और पैदावार औने पौने दाम पर बिक रही हैं। खेती घाटा दे रही है। किसान कंगाल हो गये हैं। कर्ज के बोझ में दबे किसान आत्म हत्या कर रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार हर रोज कम से कम 52 किसान आत्म हत्या कर रहे हैं। किसानों की आत्म हत्या रोकने के लिए सबसे पहले किसान को कर्ज मुक्त करना होगा।

मोदी व बीजेपी ने उ प्र में चुनाव जीतने के लिए किसानों की कर्ज माफी की घोषणा बहुत जोर शोर से की थी। लेकिन जब कर्ज माफी का समय आया तो कर्ज माफी पर अनेकों बंदिशें लगा दीं। जिससे अधिकांश किसान कर्ज माफी से बाहर हो गये। जो कर्ज माफी के दायरे में थे, उनमें से भी केवल गिने चुने किसानों का ही कर्ज माफ किया गया है। किसानों के साथ एक बार फिर धोखा किया गया।

बैंकों से किसानों को दिये जाने वाले कृषि कर्ज की सच्चाई है कि 2017-18 में बैंकों से किसानों को 10 लाख करोड रू0 का कर्ज बांटा गया। पूंजीपतियों को 120 लाख करोड रू0 से अधिक  का कर्ज दिया हुआ है। किसानों को जितना कर्ज बांटा गया है उससे अधिक 11 लाख 50 हजार करोड रू0 पूंजीपतियों की ओर डूबा हुआ कर्ज है।

मोदी सरकार पूंजीपतियों पर बडी मेहरबान है। मोदी के आने के बाद से पूंजीपतियों पर बैंकों का बकाया लगातार बढता जा रहा है। पूंजीपति बैंकों का पैसा लेकर विदेश भाग रहे हैं। सरकार पूंजीपतियों से सख्ती से पैसा बसूलने के बजाय उनको ही और सहायता दे रही है। कानूनों को उनके पक्ष में बदल रही है। मोदी सरकार ने 3 साल में 2 लाख 29 हजार 82करोड रू0 पूंजीपतियों का माफ कर दिया है। बकाया होने के बाबजूद पूंजीपतियों को और लोन देने के लिए बैंको को सरकारी खजाने से 2 लाख 11 हजार करोड दिये जा रहे हैं। विकास को गति देने के नाम पर 6 लाख 90 हजार करोड रू0 सरकारी खजाने से राष्ट्रीय राजमार्गों पर खर्च करने का ऐलान किया है। राष्ट्रीय राजमार्ग पीपीपी माॅडल पर विकसित किये जा रहे हैं। एक बार फिर  प्राइवेट कम्पनियों को लाभ पहुचाने के लिए सरकारी खजाने को खोल दिया गया है।

2 लाख 11 हजार करोड बैंको को देने के बजाय खेती की योजनाओं पर खर्च किया गया होता, राष्ट्रीय राजमार्ग के 6 लाख 90 हजार करोड में से 1 लाख करोड रू0 खेती पर खर्च किये होते और 2 लाख 29 हजार करोड रू0 पूंजीपतियों के बजाय किसानों के कर्ज माफ किये होते तो किसान कर्ज मुक्त हो जाते, किसानों को अगली फसलों के लिए और अधिक लोन मिल गया होता तथा खेती की सब्सिडी में वृद्वि होने से लागत घटती। सरकारी खरीद की व्यवस्था होती। गांवों में इलाज व शिक्षा व रोजगार के मौके बनते। किसानों को बुढापे की पैंशन की व्यवस्था बन जाती। किसान मजदूरों की जेब में पैसा आने से बाजार में खरीद बिक्री बढती। कारखनों में डिमांड बढने से उत्पादन में वृद्वि होती और विकास का पहिया घूमता। लेकिन सरकार  संसाधनों को पूंजीपतियों के हवाले करने की नीति पर चल रही है। इसीलिए  समस्या पैसे की नहीं नीतियों की है। वही फसल लागत के डेढ गुना दाम का झूठा वायदा- मोदी सरकार कर रही है!

उन्होने कहा कि  बीजेपी ने 2014 के संसद के चुनावों में सरकार बनने पर किसानों को फसलों के लागत का डेढ गुना दाम देने का वायदा किया था। लेकिन सत्ता मिलने के बाद मोदी सरकार वायदे से मुकर गई और मोदी सरकार ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर किसानों को फसल लागत का डेढ गुना दाम देने से मना कर दिया।

2019 के चुनाव में छलने के लिए किसानों को एक बार फिर झूठे प्रलोभन देना शुरू कर दिया है। 1 फरवरी 2018 को संसद में पेश बजट में मोदी सरकार ने किसानों को फसलों की लागत का डेढ गुना दाम देने का नये सिरे से ऐलान किया है। लेकिन हकीकत इसके ठीक उल्टी है। कृषि लागत एवम् मूल्य आयोग के अनुसार गेहूॅं की लागत का डेढ गुना मूल्य 1890रू0 होता है और सरकार ने घोषित 1735 रू0 किया है। सरसों की लागत का डेढ गुना 4630रू0 प्रति कुन्टल होता है। लेकिन सरकार ने 4000रू0 रेट घोषित किया है। ऐसे ही साधारण धान का लागत का डेढ गुना 2100रू0 होता है और सरकारी रेट 1650रू से कम है। अन्य फसलों की भी यही स्थिति है। अरहर, मूंग, उदड,, टमाटर, प्याज, सोयाबीन, मूंगफली आदि सभी के दाम बहुत कम हैं। फसल पैदा होने के समय कीमतें इतनी कम ह

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