New Delhi: Prime Minister Narendra Modi in the Lok Sabha during the Budget Session of Parliament in New Delhi, Wednesday, Feb. 13, 2019. (LSTV GRAB/PTI Photo) (PTI2_13_2019_000118B)

16वीं लोकसभा के अंतिम दिन सांसदों ने भंग की शब्दों की मर्यादा, लोकतंत्र की मर्यादा हुई तार-तार

नई दिल्ली : राजनीति में जिस तरह से बीते कुछ समय से शब्दों की मर्यादाएं तार-तार हुई है, वो निश्चित तौर पर चिंता का विषय है। जनप्रतिनिधियों की भाषा न सिर्फ राजनीति बल्कि लोकतंत्र की मर्यादा को भी तार-तार कर रही है। 16वीं लोकसभा के अंतिम दिन जब कई महत्वपूर्ण बिल पास होने थे, उस दिन शब्दों की मर्यादाएं हीं तार-तार हुई, कामकाज को छोड़कर।

लोकसभा के अंतिम दिन खासतौर से टीएमसी के सांसदों ने सारी संसदीय मर्यादा ताक पर रख दी। हुआ यह कि निजी चिटफंड कंपनियों पर रोक लगाने वाले बिल पर चर्चा के दौरान टीएमसी सांसद अध्यक्ष के आसान के पास पहुंच कर नारेबाजी करने लगे। इसी बीच कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने शारदा चिट फंड मामले में केंद्र की कार्रवाई का समर्थन किया और कहा कि टीएमसी के आधे सांसदों को जेल में होना चाहिए था। माकपा के मोहम्मद सलीम ने कहा कि सभी पार्टियों में भ्रष्ट लोग हैं, मगर टीएमसी तो भ्रष्ट लोगों की पार्टी है।

इसके बाद टीएमसी सांसदों ने सलीम की सीट पर जाकर उनके खिलाफ लगातार अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। हालात जब ज्यादा बिगड़ने लगे तो माकपा के कई सांसदों ने सलीम को अपने घेरे में ले लिया। इस दौरान टीएमसी के सौगत राय ने अधीर रंजन को माफिया डॉन बताया तो दूसरे सांसदों ने उन्हें रेपिस्ट और मोहम्मद सलीम को दलाल कह दिया।

शून्यकाल के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुए लाठी चार्ज पर जब केंद्र ने राज्य सरकार की भूमिका से इनकार किया, तो सपा सांसद धर्मेंद्र यादव उत्तेजित होकर संसदीय कार्यमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की सीट के करीब पहुंच गए और उनसे बहस करने लगे। इससे नाराज स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे अपना आपा खो बैठे और धर्मेंद्र यादव से उलझ गए।

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