तंगहाल में बीता बचपन कड़ी मेहनत और लगनशीलता से बनाई पहचान

लखनऊ : विपरीत परिस्थितियों से जूझ कर यदि कोई लड़की सभी बाधाओं को पछाड़ते हुए आगे बढ़े एक मुकाम हासिल कर एक सशक्त नारी के रूप में उभरकर सामने आए तो यकीनन हैरानी होना लाजमी है। ऐसी ही चौंकाने वाली और प्रेरणादायक कहानी है डॉ रेखा रोहितश्रव गौर की जो कि कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट में बतौर वैज्ञानिक रही हैं। इतना ही नहीं वह एक सेलिब्रिटी वाइफ भी है।

रेखा गौर कुशल माँ भी हैं और अपनी बेटियों को अपने जैसे सांचे में ढल रही हैं। इसकी बानगी है कि “भाभी जी घर पर है” के ‘तिवारी’ रोहित गौर और रेखा की बड़ी बिटिया गीती गौर को हाल ही में कुछ माह पूर्व उनके कालेज ‘विल्सन’ में मिस फ्रेशर का खिताब से भी नवाजा गया है, जिस बचपन में कभी खिलौनों के साथ खेलने या फैंसी कपड़े पहनने का मौका नहीं मिला, इनके बचपन में टीवी देखने और कार में घूमने जैसे सुख नहीं थे।ऐसे खानाबदोश शरणार्थी जीवन की डगर आसान नहीं होती।

 

जी हां प्रमुख हास्य कलाकार एवं संजीदा अभिनेता रोहितश्रव गौर की धर्मपत्नी है। रोहित इन दिनों बहुचर्चित धारावाहिक भाभी घर पर हैं मैं तिवारी जी की भूमिका में दर्शकों को खासा पसंद है। रोहित की पत्नी डॉक्टर रेखा साथ ही अपने में मातृत्व को समेटे एक नामचीन समाजसेविका भी हैं।

साक्षात्कार-ए-शख्सियत हिंदुस्तान हेडलाइंस संवाद

द्वारकेश : रेखा जी सबसे पहले तो हिंदुस्तान हेडलाइंस के लिए आपने समय निकाला उसके लिए आभार और साथ ही अभिवादन भी

रेखा : धन्यवाद द्वारकेश! जिस प्रकार से हिंदुस्तान हेडलाइंस में खबर और लेख प्रकाशित होते हैं आपके पब्लिकेशन द्वारा छापे गए कंटेंट को पढ़ना अच्छा लगता है। इस पोर्टल में औरों की अपेक्षा कुछ अलग महसूस करती हूं या यूं कहूं कि इसे सबसे भिन्न पाती हूं।

द्वारकेश : तो रेखा जी यह बताएं कैसा था आपका बचपन?

रेखा: बचपन तो बचपन जैसा ही था मासूम हंसता खेलता और खिलखिलाता लेकिन हां सब की परिस्थितियां ऐसी नहीं होती तो मेरा बचपन तंगहाल में गुजरा है।

द्वारकेश: इससे पहले हम बचपन से अब तक की कहानी के सफर पर चले उससे पूर्व क्यों न आपके माता पिता के बारे में जान लिया जाए?

रेखा :जी बिल्कुल! मेरे पिताजी श्री हेमंत संतानी जी थे और माता जी श्रीमती जसोदा हेमचंद संतानी पिताजी आरपीएफ रेलवे में हेड कांस्टेबल थे और माताजी एक सामान्य ग्रहणी थी।

द्वारकेश: आपने अपने बचपन को गरीबी का बचपन बताया लेकिन आज आपको देखकर लगता तो नहीं है?

रेखा: बिल्कुल सही बात है आज मैं बिलकुल वैसे ही नहीं हूं…क्या आपको मुझमें एक छोटी लड़की दिखती है?

द्वारकेश: जी नहीं

रेखा: तो फिर अब न वह बचपन है और ना ही वैसी तंगहाली पर हां मेरा बचपन एक चॉल में गुजरा है संसाधनों की कमी, सुविधाओं का अकाल, परिवार की सीमित आय और उस समय के हिसाब से भरपूर खर्च के बीच हमारा परिवार गुजर बसर करता था।

द्वारकेश: कितने सदस्य हुआ करते थे आपके परिवार में?

रेखा : हम पांच भाई बहन थे और माताजी व पिताजी

द्वारकेश: परिवार में कमाने वाले कितने थे ?

रेखा: वैसे तो सिर्फ पिताजी थे लेकिन इलाके में महिलाओं को छोटे-मोटे काम मिल जाते थे जरिया था लघु उद्योग और कारखाने तो पिता जी का हाथ बटाने और पारिवारिक स्थितियों को संभालने के लिए मेरी माता जी भी अपना आंशिक सहयोग इस तरह देती रहती थी।

द्वारकेश: किस तरह की दिक्कतें आती थी बचपन गुजारने में?

रेखा: मेरा बचपन मुंबई के एक चॉल में गुजरा है चाल भी वह जो अन्य चॉल की अपेक्षा छोटी थी हम साथ लोगों का एक कुटुंब था मतलब हम पांच भाई बहन और माता पिता रहने के लिए सिर्फ एक छोटा कमरा भर ही था उसी में हम रहा करते थे।

द्वारकेश: न काफी संसाधन, सीमित आए और यह सड़क वाली जिंदगी के बीच में जो बचपन था इस दौरान आपकी पढ़ाई-लिखाई यानी शिक्षा कैसे हुई?

रेखा: मुझे पढाने लिखाने और अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए मेरी मां कभी पीछे नहीं हटीं… मैं कह सकती हूं और मुझे गर्व है कि मेरी मां ने मुझे हिम्मत दी और पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया जहां आज आप लोगों के सामने में हूं और अब मैं वह काम कर रही हूं जिससे मेरी मां को गर्व की अनुभूति हो।

द्वारकेश: माता-पिता से मिली कोई सीख जो आप हमारे पाठकों से साझा करना चाहें

रेखा: यूं तो उनकी हर बात में एक सीख छुपी होती है पर मुझे मेरे पैरेंट्स ने जो रूल सिखाएं जो आज भी मेरे जीवन को बतौर उसूल सरल बना देते हैं। पहला: कि सबसे पहले परिवार, दूसरा: आपका जीवन अनमोल है जब भी कुछ करो, जहां भी करो, जो भी करो, बेहतर से बेहतर करो जो कुछ समय बाद और बेहतर होकर आपके पास लौटेगा।

वैसे ऐसा नहीं कि सिर्फ मेरे माता-पिता ही… सब के अभिभावक अपने जीवन के अनुभवों से अपने बच्चों को सीचते हैं,यह बच्चों पर निर्भर करता है कि वह अपने माता पिता को मित्र समझे और सकारात्मक रूप से संजीदगी के साथ उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण करें तो निश्चित ही जीवन सफल हो ही जाएगा।

द्वारकेश:आपने माता जी से सीखा माता पिता दोनों से सीखा मगर बात करें सिर्फ पिताजी की तो आपने उनसे क्या पाया?

रेखा: मैंने उनसे हिम्मत और संभाल पाया मुश्किल वक्त को हंसकर कैसे बिताया जाये यह सीखा है परिवार को साथ जोड़ कर रखना सीखा है।

द्वारकेश: पिताजी के बारे में व परिवार पर थोड़ा और प्रकाश डालें?

रेखा: वैसे तो मैं बता ही चुकी हूं किंतु मेरे पिताजी बंटवारे के समय तत्कालीन लाहौर (सिंध) जो आज पाकिस्तान है वहां से मुंबई आकर बसे थे उन्होंने अपनी शिक्षा और शारीरिक क्षमताओं के दम पर आरपीएफ में बतौर हेड कॉस्टेबल काम किया और परिवार को पाला, हालांकि वह पदोन्नति ना पा सके जिसके पीछे कुछ कारण थे बस आप ऐसे समझे सिस्टम में छुपी कुछ कुरीतियां उनकी पदोन्नति में बाधक बनीं। पर वह बहुत ही संतोषी और इमानदार व्यक्तित्व के धनी थे, जितना था उतने में ही खुश रहे। माताजी एक सामान्य ज्ञान ही रही किंतु परिवार संभालने के लिए व हम भाई-बहनों की शिक्षा पूरी हो सके उसके लिए वह लघु उद्योगों और कारखानों से मिलने वाले काम को घर पर ही करके स्थितियों को सरल बनाने का प्रयास करती रही। और हम भाई बहन अपनी पढ़ाई और बचपन को जी रहे थे।

द्वारकेश: इन स्थितियों में अपनी शिक्षा कैसे पूरी करी यह बताइए ?

रेखा: मैंने सन ’85’ में दसवीं कक्षा पास की उस समय में होली क्रॉस हाई स्कूल में पढ़ती थी। सन ’87’ में मैंने इंटरमीडिएट किया तब मैं महर्षि दयानंद कॉलेज में पढ़ती थी। सन ’91’ मैं मैंने इसी कॉलेज से केमिस्ट्री विषय में बीएससी की लेकिन इस सब के बीच जो समस्या थी वह यह कि इस पूरे समय में हमारे अभिभावक हमारी पढ़ाई पर हो रहे खर्च से परेशान रहते थे, लेकिन अपनी परेशानी कभी जाहिर नहीं होने दी।

हमें सामान्य मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों की तरह हर साल नई यूनिफार्म,जूते, बैग व पाठन सामग्री नहीं मिलती थी। सीनियर्स की किताबों से काम चलाते थे। एक यूनिफॉर्म को रोज पहनना फिर धो कर अगले दिन के लिए तैयार करना और एक जोड़ी यूनिफार्म और जूतों को दो-तीन वर्षों तक चलाना होता था। कई बार तो घर में भी स्कूल ड्रेस और जूते पहनने पड़ते थे। दूसरे साथियों को देख कर मन होता था लेकिन अपने घर को देख कर हम चुप रहते थे।

” मुझे आज भी याद है एक बार मैंने पढ़ने के लिए एक गाइड खरीदी थी, वह मंहगी थी जब मुझे अहसास हुआ…. हालांकि माता पिता ने कुछ नहीं कहा फिर भी मैं अगले दिनों से लौटा कर आई थी”। इसी तरह स्कूल व कॉलेज के बाद हमारे सहपाठी ट्यूशन का सहारा लेते थे लेकिन हमको स्वयं ही पढ़ना पड़ता था।

द्वारकेश : आगे की पढ़ाई और जहां तक मुझे पता है आप एक्स्ट्रा एक्टिविटीज में भी थी?

रेखा: लगता है काफी होमवर्क किया है आपने! जिस दौरान मैं स्कूल में थी तब मैं हर कल्चरल इवेंट और प्रतियोगिता में हिस्सा लेती थी गायन,वादन, खेलकूद,व्यायाम सभी क्षेत्रों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करती थी। कॉलेज में भी यह सिंसिला जारी रहा पर यहां एक अलग बात यह थी कि मैं अब एनसीसी से जुड़ गई थी जिसको लेकर मेरे पिताजी बहुत खुश हुए थे और कॉलेज के अलावा मुझे घर पर उनसे भी ट्रेनिंग मिलती थी। एनसीसी में मैं बेस्ट कैडेट रही थी और साथ ही सीनियर अंडर ऑफीसर स्काउट भी रही।

इसके बाद मैंने सन ’92’ में एक प्राइवेट संस्थान से डिप्लोमा इन मेडिकल लैबोरेट्री टेक्नोलॉजी का कोर्स किया जिसके बाद मैं सरकारी जॉब में आई।आगे पढ़ने की बहुत चाह थी पर में जिस संस्थान से जुड़ी वहां कभी आगे पढ़ने का मौका नहीं मिला काफी परेशानीयां भी पेश आईं पर अपने माता पिता की सीख को आदर्श बनाकर मैंने हार नहीं मानी मैं जूझी, लड़ी, आवाज बुलंद की और अपने पूरे 25 वर्ष के कार्यकाल को जिम्मेदारी के साथ निभाया भी।

द्वारकेश: अपने कैरियर के बारे में बताएं?

रेखा: मैंने सन ’92’ में टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट में कांट्रेक्चुअल तौर पर टेक्निशियन के रूप में जॉइनिंग की जिसके बाद सन 93′ में साइंटिफिक असिस्टेंट की पोस्ट पर मुझे परमानेंट किया गया अक्टूबर 2017 में मैंने वहां से वीआरएस लिया। रिटायरमेंट के बाद भी मैं उस क्षेत्र में व अन्य कई क्षेत्रों में सक्रिय हूं साथ ही इस वर्ष 2018 में मुझे ऑनरेड डॉक्टरेट से भी नवाजा गया है।

द्वारकेश:अपने दांपत्य जीवन के बारे में कुछ बताएं मसलन आपकी लव मैरिज या अरेंज?

रेखा: हा हा हा…वेरी स्मार्ट! मैं और रोहित जी शादी से पहले ही एक दूसरे को जानते थे पर हमारी शादी को लव मैरिज नहीं अरेंज मैरिज ही कहा जाएगा क्योंकि घर पर अनुमति लेने के बाद ही हमारी शादी हुई। हमने अपने अपने घर पर यह बात बताई जिसके बाद रोहित जी का परिवार तो तैयार हुआ किंतु मेरे परिवार को शुरुआत में यह रिश्ता मंजूर नहीं हुआ मुझसे कहा गया एक एक्टर से शादी जब मैंने अपनी जॉब का हवाला और आत्मविश्वास व परिवार सिपाही शिव की बात की तब जाकर हम दोनों के परिवारों ने मुलाकात की जिसके बाद सन 2002 में हमारी शादी हुई जिसके बाद हमारी पहली बिटिया सन 2003 में गीती का जन्म हुआ जो कि आप 11वीं में पढ़ रही है और सन 2008 में छोटी बेटी संजीती जोकी अब कक्षा 5 में है हमारी जिंदगी में आई और इस तरह हमारी शादी के बाद पुत्रियों के रूप में मुझे मां के आशीर्वाद से सरस्वती व गृह लक्ष्मी रूपी यह दोनों बेटियां मिली।

द्वारकेश: दांपत्य बच्चे और वर्किंग वूमेन होना एक साथ कैसे मैनेज किया?

रेखा: पहली बात तो यह है कि यह सब होता चला गया और जीवनधारा में समय-समय पर अलग-अलग पडाव आए जोकी पार होते गए। दूसरी बात यह है कि रोहित जी के परिवार ने मुझे बहु नहीं माना हमेशा बेटी की तरह रखा जिससे सब आसान हो गया मेरे ससुर रुपी पिता स्वर्गीय सुदर्शन गौर जी ने मुझे बहुत कॉर्पोरेट किया सच में वह रोहित जी से पहले मेरे पिता है। रोहित जी ने भी हर कदम पर मेरा साथ दिया उनके बिना यह सब करपाना संभव ना होता, मैं इसकी कल्पना सपने में भी नहीं कर सकती।

द्वारकेश:आपके पिताजी और माताजी साथ में हैं?

रेखा: पिताजी की मृत्यु सन 2016 में हो गई…

द्वारकेश: ओह सॉरी

रेखा: या यूं कहूं कि मेरे दोनों पिताजी अब मेरे साथ नहीं पर हां उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ है मेरी मां है और मुझे आगे बढ़ते देख खुश होती हैं जब मुझे ऑनरेड डॉक्टरेट की उपाधि मिली तब उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक आए समय-समय पर मेरी हर छोटी-बड़ी उपलब्धि से मिलने वाला गौरव और खुशी को मैंने अपने माता पिता के चेहरे पर महसूस किया है। अच्छा लगता है जब आप के मां बाप आप पर फक्र करने लगे।

द्वारकेश :वैसे आप किसी परिचय की मोहताज नहीं पर फिर भी हमारे पाठकों की जानकारी के लिए बतायें रिटायरमेंट के बाद आप किस किस क्षेत्र में काम कर रही हैं?

रेखा: मैं समाजसेविका बतौर सामाजिक कार्यों से जुड़ी हूं, मैं शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हूं, सांस्कृतिक गतिविधियों में लिप्त हूं, स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करती हूं साथ ही साइंस के क्षेत्र में भी जुड़ी हूं।

द्वारकेश: आप डॉक्टरेट हैं, वैज्ञानिक है कला के क्षेत्र में जुड़ी है और भी बहुत कुछ आपने बताया कृपया थोड़ा विस्तार से जानकारी साझा करें?

रेखा: सामाजिक रूप से मैं समाज के हर वर्ग व तबके के लिए संस्थानों के साथ जुड़कर समाज सेविका के रूप में अपना योगदान देती हूं। यही काम में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी करती हूं हाल ही में मेरे द्वारा भारत की पहली रिलेथान का सफल आयोजन मुंबई में किया गया,रिलेथान भारत में पहली बार हुई मजेदार बात यह है कि विदेशों में यह सिर्फ एथलीट्स के लिए होती है किंतु हमने इसमें हर क्षेत्र व समाज के लोगों को जोड़ा और लाखों की संख्या में लोग इस कार्यक्रम में हमारे साथ जुड़ें, इतना ही नहीं संस्थाओं के साथ साथ आम जनमानस तक हमसे जुड़ा। कला के क्षेत्र में अपने पिताजी स्वर्गीय श्री सुदर्शन गौर (ससुरजी) की संस्था ऑल इंडिया आर्टिस्ट एसोसिएशन में सन 2015 से एडवाइजर हूं और प्रेसिडेंट रोहित जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कला क्षेत्र से जुड़ी नई प्रतिभाओं को एक वृहद मंच के माध्यम से नवचेतना का मार्ग प्रशस्त करने का जो बीड़ा पिताजी ने उठाया था उसे अनवरत जारी रखने के लिए कृतसंकल्पित हैं। इसके साथ ही मैं विज्ञान के क्षेत्र में साइंटिफिक वर्कशॉप का भी आयोजन करती हूं इसमें हम फ्लो साइटोमेट्री,ब्लड कैंसर, स्टेम सेल के तकनीकी ज्ञान की शिक्षा देने का काम करते हैं। मेरा एक और कन्सर्न आर .के इनीशिएटिव ( रेखा कविता ) है जिसके अंतर्गत हम हेल्थ व कल्चरल छेत्रों में लोगों के लिए काम करते हैं उन्हें जागरुक करते हैं इसी के चलते हमने पहला रिलेथान करवाया था जिसे आगे भी जारी रखने का प्रयास है। और हमारी इस मुहिम का नाम है “बीमारी भारत छोड़ो आंदोलन”

द्वारकेश: अपने आगामी कार्यक्रमों के बारे में बतायें?

रेखा: हम हर जून में ऑल इंडिया टेस्ट एसोसिएशन के बैनर तले डांस एवं ड्रामा फेस्टिवल करते ही हैं इसके अलावा अभी हम आगामी मार्च में काठमांडू नेपाल में फोक फेस्टिवल करवाने जा रहे हैं भारत की बहुमुखी प्रतिभा को लेकर हर सूबे के शहरों में हमने कार्यक्रम करवाना शुरू किया है. फिलहाल उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में कार्यक्रम किए जा चुके हैं और कुछ पर काम जारी है जल्द ही आपके माध्यम से कार्यक्रमों का विवरण और डेट साझा करूंगी।

द्वारकेश: एक आखरी सवाल बतौर सेलिब्रिटी वाईफ और बतौर सोशल एक्टिविस्ट आप अपने को कहां बेहतर पाती हैं?

रेखा: रोहित जी के बिना मैं कुछ भी नहीं हूं और चूंकि रोहित जी सेलिब्रिटी है धारावाहिक ‘लापतागंज’ और अनेक किरदारों में जिस तरह दर्शकों का उन्हें प्यार मिला जोकि आज जी धारावाहिक ‘भाभी जी घर पर हैं’ में तिवारी जी की भूमिका में अब तक मिल रहा है जो प्यार दर्शकों का उन्हें मिलता है, वैसे ही मैं जब कहीं लोगों के बीच में होती हूं तो वहीं दुलार लोग मुझ पर भी न्योछावर करते हैं तो अच्छा लगता है वैसे रोहित जी सेलिब्रिटी हैं जरूर पर वह भी जमीन से जुड़े हैं तो हमारे और आपके जैसे ही सामान्य हैं… पर है सेलिब्रिटी वाईफ होने की खुशी अलग ही है। बाकी सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर समाज के लिए जब कुछ करती हूं उसकी खुशी तो मैं बयां ही नहीं कर सकती वह एक अलग ही अनुभूति होती है। बस माता-पिता से मिली सीख ही याद है ‘जब आप कुछ करें तो बेहतर करें एक समय के बाद आपको वह और बेहतर होकर मिलेगा आप फिर और बेहतर करें’।

द्वारकेश: रेखा जी आपने हमें समय दिया उसके लिए धन्यवाद

रेखा : हिंदुस्तान हेडलाइंस भी तो मेरा परिवार ही है तो धन्यवाद कैसा… आपने भी तो मेरे लिए समय निकाला इसके लिए स्नेह और शुभ आशीष।

Kanhaiya Krishna

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Kanhaiya Krishna

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