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पढ़ें भारतीय संस्कृति में दिवाली पर्व की महत्ता को रेखांकित करता हमारा ये आलेख

Indian Girl Holding Traditional Oil Lamp with Flame

लखनऊ (द्वारकेश बर्मन) : असतो मां सद्गमय,तमसो मां ज्योतिर्गमय,मरतयोमार अंर्तगम्य। अस्त से सात की ओर चल,मृत्यु से अमरत्व की ओर चल। भारतीय वांगमय के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ और वेदों का यह उद्घोष यदिसर्वाधिक चरितार्थ हुआ दिखाई देता है तो वह सिर्फ पावन पुनीत प्रकाश के पर्व दीपावली पर दिखता है।

दीपावली पर दीपों की जगमगाती माला सदियों से यही संदेश सुनाती आई है कि अंतोगत्वा असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की जीत होती है-मृत्यु पर अमरत्व और अंधकार पर प्रकाश की जीत होती है। तां तां प्रकार व विभिन्न रंगों के त्योहार से सजे अपने भारत वर्ष के पावन श्रेष्ठ एक है दीपावली का त्योहार ,जिसे कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि बड़ी सजधज के साथ सारा भारत ही नही विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी मनाते हैं। दीपावली की रात को हर घर में भारी संख्या में दीप जलाए जाते हैं। इसलिए इस त्योहार को दीपावली के नाम से भी जाना जाता है।

दीपावली के साथ कुछ ऐतिहासिक,धार्मिक व पौराणिक प्रसंग भी जुड़े हुए हैं ऐसी मान्यता है कि इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभू विष्णु के भौतिक अवतार में जन्मे भगवान श्री राम चन्द्र जी रावण का संहार करके चौदह वर्ष के बनवास काटने के बाद अपने राज्य अयोध्या वापस लौटे थे उनके आगमन की खुशी में अयोध्या के वासी राजा दशरथ की प्रजा और राम भक्तों ने दीपक जलाये थे। इसके अलावा इसी दिन भगवान महावीर तथा स्वामी दयानन्द ने निर्वाण प्राप्त किया था इसलिये जैन सम्पदाय तथा आर्यसमाज में भी इस दीपोत्सव के दिन का विशेष महत्व है। साथ ही साथ सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह भी इसी दिन कारागार से मुक्त हुए थे। इसलिए गुरद्वारों की शोभा इस दिन देखने योग्य होती है। आपको बता दें कि इसी दिन भगवान विष्णु के भौतिक अवतार ब्रज के कान्हा और द्वारका के धीश ने देवादिदेव इंद्र के क्रोध से ब्रज की जनता को बचाया था।



दीपावली मनाने का वैज्ञानिक यह भी है कि दीपावली वर्षा ऋतु की समाप्ति पर मनाई जाती है ,धरती की कीचड़ और गंदगी समाप्त हो जाती है। अतः सभी लोग अपने घरों,प्रतिष्ठानों व कार्यालयों की पूरी सफाई करवाते हैं ताकि सीलन,कीड़े मकौड़े और अन्य रोगाणु नष्ट हो जायें। इस पर्व से पहले लोग रंग-रोगन करवाके अपनी अपनी जगह को नया रूप देते हैं आज के दिन माना जाता है कि द्वीप जलाने से भी वतावरण से सभी कीटाणु ओर रोगाणु नष्ट हो जायें साथ ही साथ जगमग उजाला हो जाये पौराणिक काल में रोशनी व प्रकाश के लिए यही माध्यम था तो यह प्रथा तब से चली आ रही है जो अब इसलिए जारी है क्योंकि शायद अब हम आज के आधुनिकरण के बाद अपनी सांस्कृतिक विरासत को अब इसमें तलाशते हैं और पर्व के बहाने उस समय को जीवंत कर जीने का प्रयास करते हैं।

हमारे देशवालों के लीये प्रकाश का यह पर्व उत्सवों के राजा के रूप में जाना जाता है इसलिए दीपावली को उत्सवों में शिरोमणि माना गया है। भारत में व्यापारी वर्ग इसे विशेष उत्साह के साथ मनाता है इस दिन व्यापारी लोग अपनी अपनी दुकानों व प्रतिष्ठानों का कायाकल्प तो करते ही हैं साथ ही शुभ लाभ की आकांशा भी करते हैं। छोटे से बड़ा हर व्यापारी अपने ग्राहकों को उपहार भी देते हैं ,हर घर और दुकान में लक्ष्मी का पूजन किया जाता है जिसके पीछे एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि इस रात्रि लक्ष्मी अपने भक्तों पर कृपा बरसाने को प्रवेश करती हैं। यही कारण है कि इस रात सभी जन अपने घरों के दरवाजे खुले रखते हैं। इस दिन त्योहार के चलते बाजारों में रौनक लगती है खास कर मिठाई और आतिशबाजी की दुकानों पर ग्राहकों का हुजज्म रहता है। सभी बाजार मिठाइयों से पटे नजर आते हैं सिर्फ यही एक ऐसा दिन होता है जब बाजार में आम से खास तक गरीब से माध्यम और अमीर तक बाल, वृद्ध, युवा सभी एक साथ सभी भेदभाव भुला के मिठाई खाते व आतिशबाजी चलाते नजर आते हैं और सभी अंतर भुलाकर अपनी प्रसन्नता प्रेम और सौहार्द को जाहिर करते हैं। बात अगर घर लक्ष्मी की करें तो वह इस दिन से दो दिन पूर्व धनतेरस पर कोई न कोई नया बर्तन व झाड़ू पुरुष गाड़ी व सोना आदि खरीदते हैं इसे भी पूजा की विधि और शगन के रूप में माना जाता है। आज ही के दिन किसान बंधु अपने खेतों में द्वीप जलाकर फसल के जागरण का उद्घोष करता है,और धरती माता से जागृत होने का आह्वान किया जाता है।



जहां यह पर्व पावनता का प्रतीक है तो वही इस पर्व को कलंकित करने वाली कुछ गतिविधियां भी विध्धिमान हैं जिन्हें हम कुरीतियों के रूप में जानते हैं और इन्हें समाज के लिये कलंक के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि दीपावली की रात को भारतीय खुलेआम जुआ खेलते हैं जो औसतन आम दिनों में अपराध की श्रेणी में आने वाला खेल इस रात अपनी सीमाओं की पराकाष्ठा को भी पार कर देता है।समय समय पर इस कुरीती को बंद करने को लेकर समय समय पर आवाज उठती चली आ रही है किंतु यह प्रथा भी अभी तक समाज में अटल छवि बनाये हुए है,कई बार इस कुरीती के चलते प्राणघातक अपराधों के मसले भी सामने आये हैं।आतिशबाजी में भी व्यर्थ ही अरबों रुपया भारतवासी नष्ट कर देते हैं साथ कि बारूद का अनर्गल नुकसान कर देश की आबोहवा को प्रदूषित किया जाता है किंतु इसके बाबजूद इसे पर्व मनाने का सबसे प्रमुख तरीका माना जाता है। समय समय पर यह आतिशबाजी आगजनी की उपज का माध्यम बनती है और मासूम लोग इसके चलते कई बार आग की चपेट में भी आ जाते हैं। हमारे अनुसार इन विषयों पर पर्याप्त चिंतन की आवश्यकता है,वर्तमान में बढ़ती महंगाई,आर्थिक विषमताएं,इस पुनीत त्योहार के आनंद में बाधक बन जाती हैं।लोकतंत्र के इस सब के साथ विकास वाले इस युग में हम सब का यही प्रयास होना चाहिए कि सभी के घर जगमग रहें और चहरों पर मुस्कुराहटें हों। अमीरों के आलीशान कोठियों से लेकर गरीबों की कुटिया तक खुशहाली हो ।

‘जलाओ द्वीप इतने अधिक की, धरा पर कहीं अंधेरी छटा न रहे’

वस्तुतः दिवाली मात्र आनंद और उत्सव मनाने का पर्व नही है,जहां पर यह त्योहार उद्घोष है कि अन्ततः असत्य पर सत्य की ,अन्याय पर न्याय की और अंधकार पर प्रकाश की विजय होती है तो वहीं यह शंखनाद है ,संदेश है कि हम अंदर बाहर दोनों तरफ से स्वच्छ व निच्छल,निष्पक्ष जीवन शैली अपनायें।

यह कविता इस पर्व की रूह को समेटे त्योहार को परिलक्षित करती है :-

ज्योतिर्मय दीप जले,पावनतम दीप जलें,धरती के आंचल तले माँटि के दीप जलें।
जगमग धरती का तन हुआ,
जगमग मानव मन हुआ,
महामयी धरती का कण कण कंचनमय हुआ,
भावनाओं में दीप जलें,कुटियों में दीप जलें,तुलसी की डार तले,माँटि के दीप जलें

बहुरंगी परंपराओं से महकता हमारा ज्योति पर्व दीपावली,जहां देशवासियों को आनंद और मस्ती का आलम बिखेरे देता है,वहीं कुछ समय के लिए उन्हें जीवन में सभी तनावों से मुख्त कर देता है ,इस दिन लोग मगलभाव को अंतर्मन में लिये आपस में एक दूसरे को शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं,इस अवसर पर हिंदुस्तान हेडलाइन के सभी पाठकों व समूचे देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुये ईश्वर से प्राथना करता है कि :-
बीते हर दिन रात आपके, होली और दिवाली बनकर। दीपों का यह पर्व ज्योति का,भर जाये खुशियों की गागर।


Kanhaiya Krishna

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Kanhaiya Krishna

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