संतोष यादव की रिपोर्ट :
लखनऊ : गांव की पगडंडी से निकलकर मुकाम तलाशना किसी भी बेटी के लिए मुश्किल तो नहीं लेकिन आसान भी नही हैं। लेकिन उन्ही मुश्किलों को आसान बनाया है,उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले में पली बढ़ी किसान की बेटी प्रतिमा यादव ने। विपरीति परिस्थितियों में खुद तो मुकम्मल स्थान हासिल किया ही, छोटी बहन प्रकृति यादव के साथ-साथ गायन विधा में रुचि रखने वाली दर्जनों बेटियों के हुनर को भी तराश रही है,इसके लिए अपने घर पर ही एक मिनी संगीत विद्यालय भी खोल रखा है। पारिवारिक बिरासत में मिली गायन विधा को प्रतिमा आधुनिकता की दहलीज तक ले गई,बल्कि बिलुप्त हो रहे लोकगीतों को दादी,काकी,माई की देहरी तक भी पहुँचाने में कोई कसर बाकी नही रख रही। प्रतिमा की मेहनत का ही नतीजा है कि, आज उनकी गिनती लोकप्रिय लोक गायिकाओं में होती है। आकाशवाणी, दूरदर्शन पर उनके प्रोग्राम अक्सर आते रहते हैं। लखनऊ,मगहर, सैफई आदि महोत्सव के साथ ही कुम्भ मेला, माघ मेला,रामायण मेला सहित बड़े मंचो पर नामवर हस्तियों की उपस्थिति में चार चाँद लगा चुकी है, जिसके लिए उन्हें दर्जनों पुरस्कार भी मिले। वही सरकार द्वारा समय-समय पर आयोजित होने वाले विभिन्न जागरूकता कार्यक्रमों में भी उनकी सहभागिता विशेष रूप से रहती हैं। पर्वतारोही पद्मश्री अरुणिमा सिन्हा की शादी में अपना आशीर्वाद देने पहुँचे यूपी के राज्यपाल राम नाईक सहित नामवर हस्तियों के बीच प्रतिमा के गायन की सराहना हुई। लोकगायन के क्षेत्र में धीरे-धीरे प्रतिमा की प्रतिभा भी निखरती गई। आज वह किसी परिचय की मोहताज नही है।
सदर तहसील के ईश्वरपुर गांव में जन्मी प्रतिमा एक भाई पांच बहनों में दूसरे नंबर पर है। माता कौशिल्या यादव गृहणी,तो पिता परशुराम यादव किसान है। बावजूद इसके अपने पाल्यों की शिक्षा के प्रति वे जागरूक थे। इसी का नतीजा रहा कि बेटियों में प्रतिभा,प्रभा ने एमए,तो प्रतिमा ने नेट क्वालीफाई किया। प्रज्ञा बीएड तो सबसे छोटी बेटी प्रकृति बीएससी फाइनल में है,और बेटा प्रशांत बीपीएड कर रहा हैं। प्रतिमा को गाने का शौक तो बचपन से था, उसकी वजह यही थी,जब प्रतिमा छोटी थी तब बाबा फौदी राम यादव, चाचा बलराम यादव एवं घनश्याम यादव गांव समाज में ढोल मजीरे पर गायकी को तान दे रहे थे। इस सबका असर प्रतिमा पर दिखा,लेकिन बचपन का ये शौक कैरियर बन जायेगा इसकी कल्पना नही की थी। प्रतिमा की प्रतिभा में निखार तब आया जब चाची पूनम यादव का उन्हें साथ मिला,उन्हें भी गायन में काफी रुचि थी, वे ही प्रतिमा के हुनर को तराशने में जुट गई। हाई स्कूल तक विद्यालयीय कार्यक्रमों में प्रतिमा की न सिर्फ भागीदारी रहती बल्कि प्रथम स्थान भी मिलता रहा।
गांव से दसवीं पास होकर आगे की पढ़ाई के लिए प्रतिमा ने शहर की ओर रुख किया,और जीजीआईसी में दाखिला लिया। यहां भी विद्यालय स्तर पर कोई भी कार्यक्रम हो सबमें प्रतिमा अव्वल स्थान पर ही रही। इसी दौरान तत्कालीन क्षेत्रीय सांसद एवं मुख्यमंत्री मायावती के एक कार्यक्रम में प्रस्तुति का मौका मिला जहाँ खूब वाहवाही मिली। विद्यालयीय कार्यक्रमों में मंचो पर दी गई प्रस्तुतियों पर मिली सराहना, वाहवाही एवं तालियों की गड़गड़ाहट ने प्रतिमा को हौसला दिया। इससे उत्साहित प्रतिमा ने अब संगीत को अपना कैरियर बनाने का फैसला कर लिया था। लेकिन राह में रोड़े ही रोड़े थे। इंटर पास होने के बाद की शिक्षा चुनौतीपूर्ण थी। जिले में नया-नया खुला रामा बाई महिला पीजी कॉलेज में संगीत विषय तो था लेकिन शिक्षक नही थे। लेकिन उसी कॉलेज में हिंदी विभाग के डॉ0 त्रिलोकचंद्र मिश्र की सलाह पर प्रवेश ले लिया,और श्री मिश्र ने ही कॉलेज में प्रतिमा के संगीत गुरु की भूमिका का निर्वहन किया, साथ ही हौसला भी देते रहे। हलाकि संगीत शिक्षक की कमी प्रतिमा को खल रही थी, टांडा निवासी सहपाठी पूनम कनौजिया से पता चला कि उनके घर के पास ऋचा पुष्पाकर नाम की एक संगीत शिक्षिका रहती है।
प्रतिमा ने फैसला किया कि वह सहेली पूनम कनौजिया के घर रहकर संगीत सीखेगी। और पूनम के घर से ही साल भर विद्यालय आती जाती रही। अच्छे अंको के साथ प्रथम वर्ष की परीक्षा पास हुई। इसी बीच प्रतिमा की मुलाकात फैजाबाद स्थित मनूचा डिग्री कॉलेज में संगीत की विभागाध्यक्ष डॉ0 कल्पना एस. वर्मन से हुई ,जहां उनके पिता विष्णु कपूर एवं इसी कालेज में संगीत की शिक्षिका डॉ0 रूमा अरोरा से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने लगी। डॉ0 कल्पना एस. वर्मन की सलाह पर प्रतिमा ने लोकगीतों की तरफ रुझान बढ़ाया। और उन्हीं की सलाह पर प्रतिमा ने गांव-गांव जाकर नकटा, कहरवा, बन्ना-बन्नी ,चकिया, निर्गुणी सहित सैकड़ों लोक गीतों का संकलन गांव की दादी, माई, काकी, के बीच रहकर किया। इस बीच प्रतिमा उन सबके बीच काफी लोकप्रिय हो गई।
इसी बीच रामाबाई कॉलेज में संगीत शिक्षक भी नियुक्ति होकर आ गए,उनसे भी कुछ सीखने का उन्हें अवसर मिला। स्नातक में सर्वाधिक अंको से पास होकर प्रतिमा ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
अपने ही जिले में शहीद चंद्रशेखर जयंती के मौके पर जिला स्तरीय संगीत प्रतियोगिता हुई,जिसमें प्रतिमा का जिले में पहला स्थान आया,और तत्कालीन डीएम द्वारा पुरस्कार मिला। यह प्रतिमा की पहली प्रतियोगिता थी जहाँ उन्हें उड़ान भरने का मौका मिला। स्नातक बाद संगीत से स्नातकोत्तर डिग्री लेने अयोध्या स्थित साकेत डिग्री कॉलेज पहुंची,वहां संगीत की गुरु डॉ0 सुरभि पाल का सानिध्य मिला। यहाँ भी मंचीय प्रस्तुति एवं विद्यालय कार्यक्रमों में भी वह हमेशा अव्वल रही। इस दौरान भी वे डॉ0 कल्पना एस0 वर्मन एवं डॉ0 रूमा अरोरा से अनवरत लोकगायिकी की शिक्षा लेती रही। गुरुओं से मिल रही वाहवाही से प्रतिमा को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती गई। इसी बीच केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद में हुई प्रतियोगिता में प्रतिभाग का अवसर मिला जहाँ प्रदेश में प्रथम स्थान के साथ ही दस हजार रुपये पुरस्कार के रूप में मिला था।जो किसी बड़े कार्यक्रम का पहला पुरस्कार था। यही से प्रतिमा को लोक गायकी के रूप में पहचान मिलनी शुरु हुई। वर्ष 2009 में हिंदी पखवाड़ा अन्तर्गत सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में पहली बार उन्हें अपने गृह जिले में भी मंचीय प्रस्तुति का मौका मिला। तालियों की गड़गड़ाहट एवं दर्शकों की वाह वाही से उत्साहित प्रतिमा ने फिर पीछे मुड़कर नही देखा और गायन में बुलंदियों तक पहुँचने का मन बनाया।
अपने गुरुओं की सलाह पर लोकगायकी में और निखार लाने के लिए वे वर्ष 2009 में ठुमरी की शिक्षा लेने लखनऊ गई। जहां भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय में दो वर्ष रहकर वह सब कुछ हासिल किया जो उनके बचपन की चाहत थी। इस बीच आकाशवाणी लखनऊ में ऑडिशन दिया जहां अवधी लोकगीत में उन्हें बी ग्रेड हासिल हुआ। फिर धीरे-धीरे रेडियो से प्रतिमा की पहचान लोकगायिका के रूप में और बढ़ती गयी। लोकगायन के क्षेत्र आज वह किसी परिचय की मोहताज नही है, फिर भी समय-समय पर अपने गुरुओं से सीखने का कोई मौका गवाना नही चाहती। प्रतिमा अपनी इस उपलब्धि का सारा श्रेय अपने गुरुओं एवं परिवार वालों के साथ मीडिया को देती हैं।
जब टूट गई शादी
पुरानी कहावत है कि हीरे की पहचान जौहरी को ही होती है। प्रतिमा की प्रतिभा एवं उनके अंदर छिपे हुनर को नजर अंदाज कर उनकी कला को दूसरी नजरों से देखा गया। प्रतिमा की शादी तय हो चुकी थी,जब प्रतिमा की लोकगायन के क्षेत्र में रुचि की जानकारी उस पक्ष को हुई तो उन लोगो ने शादी करने से ही इंकार कर दिया। हलाकि प्रतिमा व उनके परिवार को इससे उस समय धक्का जरूर लगा था, लेकिन शादी टूटने के फैसले से सभी खुश थे। परिजन भी नही चाहते थे कि जिस लग्न,मेहनत से अपने सपने लेकर वह मंजिल के करीब पहुँची है, उसके ये सपने एक झटके में बिखर जाय। वर्ष 2011 में जौहरी के रूप में कला के पारखी मिल ही गये। उनकी शादी अम्बेडकर नगर जिले के निवासी एलटी ग्रेड शिक्षक सुरेन्द्र यादव से हो गई। मजेदार बात तो यह है कि मायके की तरह ही ससुराल पक्ष के लोग भी प्रतिमा का उत्साहवर्धन करने में पीछे नही है। यही नही खाली समय मे पति भी घर से लेकर मंचो तक प्रतिमा का हौसला बढ़ाते है।
गायन में रुचि रखने वाली बेटियों के हौसलों को दे रही उड़ान
अपने जिले की बेटियों के सपनों को सजाने में जुटी प्रतिमा उनके हौसलों को उड़ान देकर घर घर तक लोकगीत पहुँचाने का मन बनाया है। और इसके लिए वे लोककला,नृत्य,गीत ,संगीत में रुचि रखने वाली बेटियों को अपने ही घर पर निःशुल्क लोकगीत एवं नृत्य में पारंगत करने का फैसला किया। हाल ही में “मैं हूँ बेटी” अवार्ड से सम्मनित डॉ0 प्रतिमा यादव द्वारा अपने घर पर ही निःशुल्क संगीत की कार्यशाला शुरू की गई। जिसमें वन्देमातरम, गीत,कजरी ,चौमासा,झूला आदि गीतों के साथ विलुप्त हो रही लोक कलाओं में भजन,कहरवा, दादरा आदि गीतों के साथ लोकनृत्य की भी वह शिक्षा दे रही है। बकौल प्रतिमा अभी फिलहाल संगीत की इस कार्यशाला में प्रकृति यादव,शैलजा भारती,सुप्रिया भारती,मधुलिका तिवारी,अन्नू तिवारी, स्प्रेहा गौड़,शालू शर्मा,अंतिमा शर्मा,रीना शर्मा,कोमल भार्गव,संगीता भार्गव,करिश्मा भारती,प्रज्ञा यादव,प्रभा यादव,करुणा यादव,सिंधु यादव,आदि प्रतिभाग ले रही है,लेकिन निकट भविष्य में यह संख्या और बढ़ाई जाएगी।
बेटियों की शिक्षा के साथ आर्थिक मजबूती भी जरूरी
लोकगायिका डॉ0 प्रतिमा यादव समाज की रूढ़िवादी,अंधविस्वास,जाति-पात लिंग,भेद पर सोच से आहत है। उनका मानना है कि बेटियों की शिक्षा के साथ उनकी आर्थिक मजबूती भी जरूरी है। इसी से परिवार एवं समाज उन्हें सम्मान की नजरों से देखेगा। संगीत को लेकर समाज की सोच को वे नए सिरे से नकारते हुए कहती है कि संगीत ही जीवन है। जिसके जीवन मे संगीत नही है, तो समझों कुछ भी नही है।
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