संतोष कुमार शर्मा की रिपोर्ट :
बलिया : जल संचयन के मुख्य स्रोत कभी तालाब और कुआं होते थे, लेकिन आज ठीक इसके उलट हो गया है। तालाब एवं जलाशयों की उपेक्षा के कारण परंपरागत जल स्रोत सूख गए हैं। जल का संचय नही होने के कारण भविष्य में पीने के पानी से लेकर अन्य दैनिक उपयोग तक के लिए लोगों को जल संकट से जूझना पड़ सकता है।
कभी तालाब और कुंओ का निर्माण धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हुआ करता था, लेकिन आज कुंओ का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया है। क्षेत्र के बचे खुचे तालाबों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। निकट भविष्य में यदि तालाबों के संरक्षण का उपाय नहीं किया गया तो निश्चित रुप से तालाबों का अस्तित्व विगत कुछ वर्षों के बाद स्वत: मिट जाएगा।
कस्बे के इंटर कॉलेज के समीप गुललहा के पोखरे के नाम से मशहूर तालाब आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। तालाब पूरी तरह सूखने के करीब है। केवल तलहटी में थोड़ा बहुत जल जमा है। वह भी अत्यंत गंदा। बीते वर्षों में ग्रामीणों के प्रयास से यह तालाब कभी लबालब भरा रहता था, लेकिन आज उन्ही ग्रामीणों की उदासीनता ने तालाब का यह हाल कर दिया है। तालाब कभी आधे गांव के लोगों के स्नान करने का मुख्य स्रोत था। सैकड़ों पशु प्रतिदिन इसी तालाब से पानी पीते थे।
तालाब के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर छठ व्रतियों का रेला लगता है। आज तालाब अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को विवश है। तालाबों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है और यह तभी संभव है जब क्षेत्र व गांव के बड़े बुजुर्ग इसके लिए लोगों को प्रेरित करें। भागमभाग की जिंदगी में अपनी परंपराओं और अपनी विरासत को कायम रखने के लिए तालाबों के संरक्षण के प्रति लोगों को गंभीर होना पड़ेगा, तभी जल संरक्षण का सपना पूरा होगा। नहीं तो भविष्य मे जल संकट और विकराल रूप धारण कर सकता है।