“औरतें उठीं नहीं तो ज़ुल्म बढ़ता जायेगा” ।
भारत में महिलाओं के मार्च (यात्रा) के लिए राष्ट्रीय आह्वान
“वोट हमारा, अधिकार हमारा”
बदलाव के लिए महिलाओं का वोट डर और घृणा के ख़िलाफ़ महिलाओं की आवाज़ घृणा और हिंसा से भरे मौजूदा वातावरण के ख़िलाफ़ और लोकतान्त्रिक व्यवस्था में एक नागरिक के तौर पर अपने संवैधानिक अधिकारों की माँग के लिए पूरे भारत की महिलाएँ 4 अप्रैल 2019 को एक साथ मार्च में भागीदारी करेंगी भारत में इस मार्च का उद्देश्य देश में महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को निशाना बनाए जाने के ख़िलाफ़ असंतोष की आवाज़ को एकजुट करना है। देश में फांसीवादी और नव-उदारवादी ताक़तों में बढ़ोतरी और समाज में हिंसा के परिणाम स्वरूप महिलाओं के जीवन पर गहरा असर पड़ा हैं। दलितों, ईसाइयों और ख़ासकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर होते हमलों ने विभिन्न रूप अख़्तियार कर लिए हैं जिनमें फ़र्ज़ी मुठभेड़ और तथाकथित गौ-रक्षकों की भीड़ द्वारा हत्याएँ किया जाना शामिल है जिसने कुल मिलाकर समाज में भय और असुरक्षा का भाव ही पैदा किया है। समानता के लिए बुनियादी संवैधानिक प्रतिबद्धता और क़ानून के राज में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। उनके नाज़ुक आर्थिक आधार तबाह हो गए हैं और पर्यावरण विनाश ने उन्हें बुरी तरह से प्रभावित किया है। पिछले कुछ बरसों में संविधान पर सीधा हमला होता दिख रहा है — ख़ासकर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर जिसकी गारंटी संविधान देता है— बोलने, लिखने, खाने और चुनाव कर सकने की आज़ादी जिसने महिलाओं को असम्बद्ध रूप से प्रभावित किया है। असंतोष के स्वरों को सिलसिलेवार तरीक़े से शांत कर दिया गया है। एक तरफ़ सुधा भारद्वाज, शोभा सेन और कई अन्य जेलों में बंद हैं तो दूसरी तरफ़ गौरी लंकेश जैसी महिलाओं को बोलने और अभिव्यक्ति के अपने अधिकारों की क़ीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है। अब जबकि हम 2019 के आम चुनावों की तरफ़ बढ़ रहे हैं तब ज़रूरत इस बात की है कि हम हमेशा इस बात को याद रखें कि जातिवादी, साम्प्रदायिक और विघटनकारी ताक़तों के ख़िलाफ़ हम एकजुट हों जिनसे हमारे देश के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिए जाने का ख़तरा है। हमारा वोट हमारी और साथी देशवासियों की क़िस्मत का फ़ैसला करने के लिए निर्णायक रूप से महत्वपूर्ण है | महिलाओं और ट्रांसजेन्डरों की हर क्षेत्र में तत्काल आवश्यकता है — छात्र, एक्टिविस्ट, पेशेवर, घरेलू कामगार, शिक्षाविद, नौकरशाह, पत्रकार, वकील, सेक्स वर्कर, किसान और आदिवासी सभी को एकसाथ फांसीवाद, हिंसा, घृणा, भेदभाव और युद्ध के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करनी है। ज़रूरी हो गया है कि हम अपने गणतंत्र को फिर से हासिल करें , संविधान द्वारा प्रदत्त अपने अधिकारों का दावा करें और संस्थानों के ध्वस्तीकरण के ख़िलाफ़ खड़े हों। सबसे महत्वपूर्ण है कि अपने सिकुड़ते लोकतान्त्रिक दायरे और असंतोष पर अंकुश लगाने के ख़िलाफ़ हम मुखर हों। भारत में महिलाओं का मार्च उनके अलग-अलग समुदायों के लिए एक समावेशी मंच है जो उत्पीड़न की मौजूदा व्यवस्था को ख़त्म कर एक न्यायपूर्ण तथा शांतिपूर्ण भविष्य की दिशा में प्रयास करना चाहते हैं।
इस रैली में बोदलपुर, मुड़हुआ, शिकारगंज, कुसही, बलिया, हेतिमपुर, मुजफ्फरपुर, प्रेमापुर, लठिया, गणेशपुर, कुसहीं आदि गाँवों से सर्वेश, रामबली, हैदरअली, विकास, आशा, प्रीतम, प्रीति, अंजनी, माधुरी, रेखा, कौशल्या, कुसुम, पूजा, कंचन, के आलावा ग्राम्या संस्थान की सचिव बिन्दु सिंह, सुरेन्द्र, नीतू , रामबिलास , त्रिभुवन, बृजेश, मोहन आदि शामिल रहे |
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