लखनऊ : लोकसभा चुनाव से पहले पेश किये गए CAG की रिपोर्ट में गोमती रिवरफ्रंट विकास परियोजना में करोड़ों रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक काम में देरी की वजह से परियोजना पर लागत ढाई गुना तक बढ़ गई तो नियमों को दरकिनार कर एक एजेंसी को लाभ पहुंचाया गया। इस पर गंभीर आपत्ति जताते हुए अफसरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई और सतर्कता आयोग से जांच कराने की संस्तुति की गई है।
नियंत्रक महालेखा परीक्षक की ओर से जनरल एवं सोशल सेक्टर में 31 मार्च 2017 तक हुए खर्च की रिपोर्ट सात फरवरी को ही विधानमंडल में रखी जा चुकी है। इसी क्रम में प्रधान महालेखाकार सरित जफा ने बुधवार को प्रेसवार्ता में बताया कि गोमती रिवरफ्रंट विकास परियोजना पर 656.58 करोड़ रुपये खर्च का प्रस्ताव तैयार किया गया था, जिसे बढ़ाकर 1513 करोड़ कर दिया गया।
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि परियोजना के अधीक्षण अभियंता की ओर से दावा किया गया कि 1188.74 करोड़ रुपये के 24 कार्यों के लिए निविदा का प्रकाशन किया गया। इसके विपरीत जनसंपर्क विभाग से संपर्क करने पर पता चला कि 662.58 करोड़ रुपये की 23 निविदाओं का कहीं प्रकाशन नहीं कराया गया। अफसरों की ओर से उपलब्ध कराए साक्ष्य कूट रचित हैं। प्रधान महालेखाकार का कहना है कि एक फर्म को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा किया गया।
उन्होंने बताया कि 516.73 करोड़ रुपये की योजना डायाफ्राम वॉल के निर्माण के लिए भी एक अयोग्य फार्म का चयन किया गया। इस संस्था को लाभ पहुंचाने के लिए एक योग्य फर्म का आवेदन अस्वीकार कर दिया गया। इसी तरह से गोमती पर इंटरसेप्टिंग ट्रंक ड्रेन के निर्माण में भी एक संस्था को 10.40 करोड़ रुपये लाभ पहुंचाया गया है।
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