संतोष कुमार शर्मा की रिपोर्ट :
बलिया : कर्नाटक विधान सभा चुनाव के पहले 19 दिन तक पेट्रोल व डीजल के दाम नहीं बढ़ाये गये, लेकिन उसके बाद से लगातार पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि की जा रही है और 11 दिनों में यह मूल्य वृद्धि इतनी हो गई है कि जनता में हाहाकार मचा हुआ है। मोदी सरकार के कार्यकाल में नौ बार मूल्यवृद्धि की गयी। आज बडे़ शहरों में पेट्रोल 80 रूपये प्रति लीटर व डीजल 75 रूपये प्रति लीटर से ऊपर बेचा जा रहा है, इसका कारण सरकार की पूंजीपतियों से मिलीभगत है। नहीं तो कर्नाटक चुनाव के पहले भी पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़नी चाहिए थी। ये बातें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के जिला मंत्री परिषद के सदस्य कामरेड परमात्मा नंद राय ने कही।
उन्होंने कहा कि सन् 2012 में कच्चे तेल का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 113.3 डॉलर प्रति बैरल था तब पेट्रोल 65.64 रूपये लीटर तथा डीजल 40.91 रूपये लीटर था, लेकिन आज कच्चे तेल का अंतर्राष्ट्रीय दर करीब 70 डॉलर प्रति बैरल है जो 2012 की दर का आधा है ,उस हिसाब से पेट्रोल का भाव अधिकतम् 35 रूपये से 40 रूपये प्रति लीटर व डीजल की दर 25 रूपये या 30 रूपये लीटर होना चाहिए, क्योंकि पेट्रोलियम की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय मार्केट से जोड़ दी गई है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका जिम्मेदार दूसरा कोई नहीं बल्कि केन्द्र की मोदी सरकार है, जो उत्पाद कर के नाम पर पेट्रोल पर 19.48 रूपये प्रति लीटर तथा डीजल पर 15.33 रूपये प्रति लीटर लेती है, जो एक लीटर पर 35 रूपये होता है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार वैट के नाम पर तथा बिक्री कर के नाम पर पैसा वसूलती है। इस प्रकार ऑकड़े बताते है कि मात्र 2014-16 के दो वर्ष कार्यकाल में केन्द्र सरकार के पास तेल से दो लाख 42 हजार करोड़ की संचित राशि हो गई तथा राज्यों के पास एक लाख 50 हजार 996 करोड़ की राशि जमा हो गई। कंपनियों ने भी काफी धन कमाया। कामरेड राय ने कहा कि केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों एवं कम्पनियों की इस लूट के विरूद्ध अब पार्टी आंदोलन करने को मजबूर है, क्योंकि माल ढुलाई व मशीनों के संचालन महंगा होने से महंगाई बेतहासा बढे़गी।