तौक़ीर रज़ा की रिपोर्ट :
कटिहार : कटिहार के कोढ़ा प्रखंड अंतर्गत कोलासी और मधुरा मकाईपुर में छठ पूजा बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया। लोक आस्था के इस महा पर्व छठ पूजा उद्ययमान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही ।और आपको बता दें कि कोलासी छठ घाट पर दंडाधिकारी के रूप में अभिषेक कुमार ग्रामीण आवास पर्यवेक्षक कोढ़ा को नियुक्त किया गया था, वहीँ कोलासी शिविर प्रभारी केपी सिंह अपने दल बल के साथ मुस्तैद नजर आए,कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच कोलासी छठ घाट पर महा पर्व सम्पन्न हुआ।
सूर्य उपासना के प्रमुख व्रत में छठ व्रतियों एवं श्रद्धालुओं पूरी नियम निष्ठा पालन करते हुए इस व्रत को किया करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र में छठ व्रतियों के पूजन के लिए प्रशासन के दुवारा कोई विशेष सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गई, बड़ी अफ़सोस की बात तब हो गई जहां कोढ़ा विधयक दुवारा छठ घाट का निर्माण तो कराई गई मगर जहां नदी है वहां नहीं बल्की नदी से दूर जहां पानी नहीं रहता है छठ घाट का निर्माण कर सरकारी राशी की दुरूपयोग किया गया है,ऐसे में यहां के स्थानीय ग्रामीण सवाल कर रहे हैं।
गौरतलब है कि कोलासी के स्थानीय निवासी भानु प्रताप सिंह,अनुज सिंह,कुंदन सिंह,बृजेश पांडे, मनीष सिंह इत्यादि ने बताया कि इस छठ घाट पर प्रशासन के जरिये साफ सफाई लाइट इत्यादि की व्यवस्था नहीं किया जाता है बल्कि हम युवक निजी कोष से इस छठ घाट पर प्रत्येक वर्ष घाट की साफ सफाई लाइट इत्यादि की व्यवस्था करते हैं,आगे इन लोगों ने बताया कि जिला प्रशासन के जरिये नदी की साफ सफाई नहीं करवाने से गंदगी फैलते ही रहती है आए दिन किसी गम्भीर बीमारी का डर लगा रहता है,
भगवान सूर्य उदय एवं अस्त के समय व्रती सूप में फल नैवेद्य और पूजन सामग्री लेकर भगवान भास्कर की ओर मुख करके खड़ी होने के क्रम में भगवान सूर्य को ध्यान में रखते हुए सूप के किनारे गंगा जल और दूध से अर्ध्य दिया गया ।
यहां के स्थानीय युवकों के द्वारा एक सप्ताह पूर्व से ही ही नहर की साफ-सफाई के साथ छठ घाटों से लेकर गांवों तक उत्तम सजावट के साथ प्रकाश का भी समुचित व्यवस्था किया गया ताकि किसी व्रतियों एवं श्रद्धालुओं को आवागमन में असुविधा न हो।
क्यों मनाया जाता है छठ का पर्व
पर्वों और त्योहारों के देश भारत में कई तरह के उत्सवों को काफी धूमधाम से मनाया जाता है। साल में कोई ऐसा महीना नहीं होता, जिसमें कोई व्रत और पर्व ना हो। इन सभी तरह के तीज त्योहारों का भौगोलिक और सांस्कृतिक दोनों रूपों में महत्व होता है। दिवाली के छह दिनों के बाद मनाया जाने वाला छठ पर्व भी इसी तरह का एक त्योहार है। एक समय ऐसा था जब छठ केवल बिहार में ही मनाया जाता था, लेकिन आज के समय में यह पर्व बिहार के साथ ही पूर्वी उत्तरप्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में भी बड़े ही धूमधाम से बनाया जाता है।
कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाले इस त्योहार के पीछे एक सांस्कृतिक संक्रमण है। दरअसल बिहार की बेटियां शादी करके जिस जगह रहने लगती है, वह वहीं पर इस पर्व को मनाने लगती हैं, जिस कारण यह पर्व पटना घाट से लेकर राजधानी दिल्ली के यमुना घाट तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा में सूर्य की पूजा की जाती है, और यह पर्व पूरी तरह से सूर्य देव की उपासना पर आधारित है। सूर्य पूरे विश्व के लिए शक्ति और ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि छठ पूजा की परंपरा मध्यकाल से ज्यादा प्रचलन में आ गई है। माना जाता है कि छठ माता सूर्य देव की बहन है और उन्हें खुश करने के लिए सूर्य की आराधना करना काफी जरूरी होता है और इसके लिए सुबह के समय खड़े होकर सूर्य देव को जल चढ़ाते हैं
श्री राम और माता सीता से इस पर्व का है गहरा नाता
बिहार में मुंगेर नाम के क्षेत्र में माता सीता ने सबसे पहले इस त्योहार को मनाया था। प्रभु श्रीराम अपने पिता की वचनपूर्ति के लिए माता सीता के साथ वनवास गए लेकिन माता सीता के मन में वनवास के दौरान आने वाले संकटों के लिए काफी शंकाएं थी। वनवास के शुरुआती समय में श्री राम और माता सीता मुद्ल ऋषि के आश्रम में रहे, वहीं पर माता सीता ने गंगा में छठ की पूजा की शुरुआत की थी।
वनवास खत्म होने पर जब प्रभु राम अयोध्या लौटे तो रामराज्य के लिए राजसूय यज्ञ करने का निर्णय लिया गया। बाल्मीकि ऋषि ने सीता से कहा कि मुद्ल ऋषि के आए बिना यह यज्ञ असफल रहेगा। जब प्रभु राम और सीता माता मुद्ल ऋषि को निमन्त्रण देने गए तो उन्होंने उन्हें छठ का व्रत रखने की सलाह दी। इसी तरह मां सीता ने छठ माता से पुत्र प्राप्ति की कामना भी की। इतना ही नहीं हम आपको बता दें कि विज्ञान ने भी सूर्य को ऊर्जा का स्त्रोत माना है, छठ पूजा के रूप में सूर्य की पूजा करने से आप भी ऊर्जावान भाव और मन में शांति को महसूस कर पाएंगे।
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