लखनऊ : मई 2017 में सहारनपुर में हुए जातीय हिंसा के आरोपी आरोपी भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर ‘रावण’ को योगी सरकार ने समय से पहले रिहा कर दिया है। 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर दलितों को अपने पाले में करने की कोशिशों में जुटी बीजेपी ने ‘रावण’ को रिहा कर एक और बड़ी चाल चल दी है। बता दें कि रावण की सभी मामलों में पहले ही जमानत हो चुकी थी और केवल राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत ही उसकी महज 26 दिन की कारावास अवधि शेष थी।
2 अप्रैल को दलितों के भारत बंद के दौरान हिंसा और फिर 6 अगस्त को एससी-एसटी एक्ट के मूल स्वरूप को बहाल करने के फैसले से केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी देश भर में सवर्ण जातियों के निशाने पर है। उधर 2019 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को दलित विरोधी दाग छुड़ाने में हर संभव प्रयास लगातार करने पड़ रहे हैं।
8 जून 2017 को हिमाचल प्रदेश के डलहौजी से एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार किए गए चंद्रशेखर ‘रावण’ के समर्थन में यूपी कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व पूर्व विधायक इमरान मसूद पहले ही दिन से खड़े थे। मायावती के बाद राहुल गांधी ने भी सहारनपुर पहुंचकर खुद को दलित हितैषी के रूप में पेश किया था। तमाम दलित संगठन भी इस मसले पर सहारनपुर से लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर तक जुटे। ऐसे में संघ और भाजपा अपने ऊपर लगे दलित विरोध के धब्बे साफ करने में लगातार जुटी रही है।
भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण की मां की जिस अर्जी को यूपी शासन ने रिहाई का आधार बनाया है, वह बहुत पुरानी है। रावण के अधिवक्ता हरपाल सिंह जीवन कहते हैं, ‘‘छह महीने से हमने इस संबंध में कोई आवेदन शासन से नहीं किया था। वैसे भी शासन एक साल तक ही रासुका बढ़ा सकता है और यह अवधि 1 नवंबर को पूरी हो रही थी।’’ वहीं, कांग्रेस के पूर्व विधायक इमरान मसूद ने सरकार के इस फैसले पर कहा कि देर से ही सही, लेकिन इससे दोनों पक्षों में सौहार्द बहाल होगा।
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