Breaking News

‘जब माहौल अचानक राममय हो जाए तो समझ लीजिए चुनाव का मौसम आ गया है’

स्वराज अभियान के नेता योगेन्द्र यादव का आलेख :

नई दिल्ली : इस दीपोत्सव पर भाजपा को राम लला की याद कुछ ज्यादा ही सता रही है। दिवाली तो पिछले चार साल भी आई थी, लेकिन अयोध्या जाकर घोषणा का विचार इस बार ही आया है। न जाने कहां से संत समाज से लेकर किन्नर अखाड़ा तक बाहर निकल आए हैं। बाबरी मस्जिद बनाम राम मंदिर का मामला तो पिछले आठ साल से सुप्रीम कोर्ट में अटका है, लेकिन धीरज की परीक्षा न लेने की चेतावनी पिछले कुछ दिनों से ही दी जा रही है। जब माहौल अचानक राममय हो जाए तो समझ लीजिए चुनाव का मौसम आ गया है

मामला सिर्फ राम मंदिर तक सीमित नहीं है। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि भाजपा यह चुनाव हिंदू-मुस्लिम के सवाल पर लड़ना चाहती है। असम में बांग्लाभाषी प्रवासियों के सवाल को बाकी देश में मुस्लिम प्रवासियों की तरह पेश किया जा रहा है। सभी धर्मावलंबियों की आस्था के प्रतीक सबरीमाला में औरतों के प्रवेश को हिंदू भावनाओं पर ठेस की तरह प्रचारित किया जा रहा है। संसद में देश के नागरिकता कानून को धार्मिक आधार पर बदलने की कोशिश हो रही है। भाजपा और संघ परिवार के नेता अब हर मौके पर हिंदू भावनाओं को आहत होने का बहाना ढूंढ़ रहे हैं।

भाजपा की इस चुनावी रणनीति को समझना हो तो पिछले कुछ दिनों में प्रकाशित हुए दो बड़े जनमत सर्वेक्षणों पर निगाह डाल लीजिए। पिछले हफ्ते सीवोटर द्वारा किए राष्ट्रीय सर्वेक्षण को एबीपी न्यूज़ चैनल द्वारा दिखाया गया। उधर ‘आज तक’ पर माई एक्सिस द्वारा हर राज्य के जनमत का एक साप्ताहिक कार्यक्रम पॉलीटिकल स्टॉक एक्सचेंज चलाया जा रहा है। इन दोनों में से किसी भी सर्वेक्षण को पूरी तरह विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता लेकिन, कम से कम इतना तो समझ में आता है कि भाजपा अचानक राम मंदिर की ओर क्यों मुड़ी है।



अगर सर्वे और चैनलों की सुर्खियां देखें तो भाजपा के लिए घबराने का कोई कारण नहीं है। दोनों सर्वे बताते हैं कि भाजपा अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में आगे है। एबीपी न्यूज़ का सर्वे तो भाजपा को दोबारा बहुमत के निकट दिखा रहा है। मोदी सरकार से असंतुष्ट लोगों की तुलना में संतुष्ट लोग ज्यादा हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकप्रियता की दौड़ में राहुल गांधी की तुलना में कहीं आगे चल रहे हैं। जाहिर है टीवी चैनल इसे सत्ताधारी पार्टी के लिए खुशखबरी की तरह पेश कर रहे हैं। लेकिन सच यह है कि भाजपा के नेता स्वयं इस गलतफहमी के शिकार नहीं हैं। वे जानते हैं कि सुर्खियों के पीछे की खबर इतनी खूबसूरत नहीं है। एबीपी के सर्वे में भले ही भाजपा को बहुमत के नज़दीक दिखा दिया गया हो, लेकिन वही सर्वे यह बताता है कि उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का गठबंधन होते ही स्थिति पलट जाएगी। इंडिया टुडे के सर्वेक्षण में नरेंद्र मोदी भले ही राहुल गांधी से 14% आगे चल रहे हों, लेकिन चार महीने पहले उसी सर्वेक्षण में उनकी लीड 22% थी। केंद्र सरकार से संतुष्टि का स्तर उतना ही है, जितना मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार से 2012 में था। भाजपा के नेता जानते हैं कि मोदी सरकार का 2013 की यूपीए सरकार जैसा लोकप्रिय न होना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। उन्हें याद होगा कि अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता के बावजूद अटल जी 2004 का चुनाव हार गए थे।

भाजपा की असली दिलचस्पी और चिंता अलग-अलग राज्यों के जनमत रुझान से होगी। इंडिया टुडे का राज्यवार सर्वेक्षण यह दिखाता है कि कर्नाटक को छोड़कर दक्षिण भारत में अब भी प्रधानमंत्री और भाजपा अपने पैर नहीं जमा पाए हैं। कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस की सरकार अभी से अलोकिप्रिय हो गई है। लेकिन वहां भाजपा के लिए सीट बढ़ाने की गुंजाइश अधिक नहीं है। तमिलनाडु में भाजपा के आशीर्वाद से चल रही एडीएमके सरकार घोर अलोकप्रिय हो चुकी है और उसका चुनावी सफाया होना तय है। भाजपा के लिए विस्तार की असली गुंजाइश पूर्वी भारत में है। ओडिशा, बंगाल और पूर्वोत्तर में भाजपा की लोकप्रियता भी बढ़ती दिखाई देती है। लेकिन बंगाल में अभी भाजपा अपने वोट की बढ़ोतरी को सीट में बदलती दिखाई नहीं देती।

पश्चिम भारत में महाराष्ट्र और गुजरात में भाजपा की हालत ठीक-ठाक है। लेकिन यहां अपनी 2014 की सफलता को दोहराने के लिए सिर्फ ठीक-ठाक होने से काम नहीं चलेगा। महाराष्ट्र में यदि शिवसेना के साथ गठबंधन नहीं हुआ तो भाजपा को झटका लग सकता है। भाजपा के लिए खतरे की घंटी उत्तर भारत की हिंदी पट्‌टी में बज रही है। राजस्थान में भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार से जनता का गुस्सा चरम सीमा पर पहुंच चुका है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी अनिश्चय के बादल मंडरा रहे हैं और भाजपा चुनावी सफलता दोहराने के बारे में आश्वस्त नहीं हो सकती। बेशक इन तीनों राज्यों में केंद्र सरकार के प्रति जनता का गुस्सा नहीं है। लेकिन, इन राज्यों का चुनावी इतिहास बताता है कि अगर विधानसभा चुनाव में भाजपा नहीं जीती तो लोकसभा चुनाव में भी नहीं जीत पाएगी। हरियाणा और उत्तराखंड में भाजपा की राज्य सरकारें इस जनमत सर्वे में बुरी तरह फेल पाई गई हैं। दिल्ली में भाजपा लोकसभा चुनाव और मिनिस्टर लेट के चुनाव की सफलता और आती हुई दिखाई नहीं देती। उधर उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए दोहरा संकट है। एक ओर योगी आदित्यनाथ की सरकार दो साल पूरा होने से पहले ही अलोकप्रिय हो रही है। दूसरा सपा-बसपा गठबंधन अभी तो पक्का दिख रहा है। ऐसे में भाजपा के लिए 2014 की सफलता दोहराना तो दूर, 30 सीट लेना भी कठिन हो जाएगा।



आज भाजपा को इस बात का संतोष हो सकता है कि कांग्रेस या विपक्ष की कोई भी पार्टी स्पष्ट विकल्प के रूप में नहीं उभर रही है। ले-देकर विपक्ष के पास महागठबंधन के गणित के सिवा न तो कोई मुद्‌दा है और न ही कोई चेहरा। ऐसे में भाजपा नेता सोचते हैं कि लोग झक मारकर दोबारा भाजपा के पास ही वापस आएंगे। लेकिन, उन्हें यह भी दिख रहा है कि सीबीआई, रिजर्व बैंक और सुप्रीम कोर्ट के नए तेवर को देखते हुए कभी भी पासा पलट सकता है। रफाल के रहस्योद्‌घाटन सरकार की छवि को बड़ा धक्का दे सकते हैं। लोकप्रियता के चढ़ाव से उतार पर पहुंची भाजपा कभी भी फिसलने लग सकती है। इसलिए भाजपा अब पुराने खेल पर उतर आई है: ‘मंदिर वहीं बनाएंगे, डेट नहीं बताएंगे, चुनाव के पास आएंगे!’


Kanhaiya Krishna

Share
Published by
Kanhaiya Krishna

Recent Posts

test

test test

15 hours ago

test

test test

2 days ago

PeachSkinSheets® Características Parejas Transpirables, Deluxe Sábanas en Asequible Costos

El breve Versión: entre los formas más efectivas de impulsar descansar es por crear tu…

1 month ago

19 más fácilmente útil Desliza Aplicaciones para Citas (100 % liberado para intento)

Algunos ocasiones trascendentes han hecho antecedentes y moldearon los destinos de generaciones por venir. La…

1 month ago

Estafa : MatureContactService.com Desires Estados Unidos Pensar 161 pumas enviados por correo electrónico Estados Unidos , Es ¡Una mentira !

Sitio web Detalles: Cost: 8 crédito tienintercambio de parejas liberalesn a ser 13,92 AUD. 25…

1 month ago

Cuáles son los Beneficios de Unirse un sitio de citas ?

Durante 1860 hasta 1861, el Pony presente sirvió como correo servicio conectando la costa este…

1 month ago