दुनिया के तमाम धर्मों मे रोजे का महत्व

 

संतोष कुमार शर्मा की रिपोर्ट

 

1 हिंदू धर्म में रोजा

 

बलिया हिंदू धर्म में रोजे को  व्रत  के नाम से जाना जाता है हिंदू धर्म के मान्यता के अनुसार संसार में मनुष्य ने जो पाप किया है उसके पश्चात आप ने देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए रोजा रखा जाता है उपवास से प्रसन्न होकर इष्ट देवता अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं उपवास करने से आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है एवम इष्ट देवता की कृपा से पापों में कमी होती है इनके यहां बुनियादी उद्देश्य रोजे के माध्यम से अपने इंद्रियों को वश में करने एवं शरीर को कष्ट देकर  मोक्ष की प्राप्ति करना है यह भगवान द्वारा सजा पाने की बजाय खुद को सजा देना उचित मानते हैं रोजा शरीर एवं आत्मा के मध्य शांति का एक माध्यम है एकादशी के दिन एक रोजा रखने का प्रावधान है 8 वर्ष से 80 वर्ष तक के सभी लोगों को किस दिन खाने और पीने जल ग्रहण करना वर्जित मानते  है

 

2    यहूदी धर्म में रोजा

 

यहूदी धर्म में भी रोजे का बहुत अधिक महत्व एवं लाभ बताए गए हैं धार्मिक ग्रंथों बाइबल एवं ईबरानी ने इसे वाह एवं आंतरिक दोनों प्रकार के आदेशों के रूप में देखा है यहूदी ईश्वर से इसराइल की तरह से रहमत की नजर हेतु प्रार्थना करते हैं सामूहिक करो जो पूरे यहूदी धर्म के लिए ईश्वर की दया को अपनी ओर खींचने के लिए रखे जाते हैं जबकि व्यक्ति रोज अपने पापों के पश्चाताप के लिए रखे जाते हैं यहूदी एवं वधू विवाह के दिन अपने उज्जवल भविष्य हेतु रोजा रखते हैं यहूदी कैलेंडर में कुछ रोजे नियमित रूप से रखे जाते हैं इसी प्रकार का एक रोजा एक यौमे कबूर के नाम से विशेष महत्व रखता है यहूदी मान्यता के अनुसार वसंत ऋतु के प्रारंभ में उस महीने के 10वे दिन रोजा रखा जाता है यहूदियों को किस दिन ईश्वर की ओर से पवित्र कर दिया जाता है एवं सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है

योमे सबत का दिन यहूदी धर्म के मानने वालों के लिए आराम का दिन है इस दिन इन्हें सभी पिछले पापों से मुक्ति मिल जाती है योमें कबूर यहूदियों के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण एवं संगीन दिन ख्याल किया जाता है यहूदी इस दिन अपने पापों से मुक्त के लिए विशेष पूजा करते हैं

 

ईसाई धर्म में रोजा

 

ईसाई धर्म के मान्यता के अनुसार रोजा दो इब्रानी भाषा के शब्द सुम sum से लिया गया है जिसका अर्थ है मुंह को ढकना वही यूनानी शब्द nestoo जिसका अर्थ है परहेज करना अर्थात बगैर खाए पिए रहना

हज़रत ईसा के द्वारा रोजे के विषय में जो उल्लेख मिलता है वह कुछ-कुछ यहूदियों से मिलता-जुलता है हजरत ईसा ने पर्वत पर अपने इस आदेश को नकल किया एवं अपने शिष्यों को भी रोजा रखने का निर्देश दिया हजरत ईसा कहते हैं तुम रोजा रखो तो इसे जाहिर न करो ऐसा कपटी लोग करते हैं इस प्रकार वह रोजा रखकर संसार में अपने को श्रेष्ठ बनने का स्वांग करते हैं ताकि लोग इनकी प्रशंसा करें मैं तुम्हें सच्चाई बताता हूं यह एक पुण्य जिसका बदला तुम्हें मिलेगा जब तुम रोजा रखो तो बोलो की कंघी करो चेहरे को धो डालो इसलिए कि कोई यह  न जान सके कि तुम रोजा हो   सिवा तुम्हारे ईश्वर के जो सर्वज्ञाता है जो तुम गुप्त रखते हो

 

इस्लाम धर्म में रोजा

 

मजहबी इस्लाम के पांच आधार स्तंभों में से देवस्थान रमजान उल मुबारक के महीने में रोजे का है इस महीने की 303 तक रोजा रखना हर मुसलमान मर्द एवं औरत व्यस्त बालक पर फर्ज है इस्लाम मत के अनुसार रोजा सूर्योदय से पहले से लेकर सूर्यास्त तक बिना खाए पिए उपवास एवं इंद्रियों को वश करने का नाम है रोजा रखने वाला व्यस्त समझदार स्वस्थ होना चाहिए ईश्वर के आदेश के अनुसार जैसा कि कुरान बताता है रोजे का महीना रमजान का महीना है इसमें पूरा पूरा पुराण आकाश से उतरा जो सारे मनुष्यों के लिए पथ प्रदर्शक की भांति है जो कोई तुमसे इस महीने में मौजूद हैं उन्हें चाहिए कि पूरे महीने रोजा रखें यदि कोई बीमार या सफर में है तो दूसरे दिन में रोजा रखकर पूरा कर ले इस कृपा के बदले ईश्वर ने तुम्हें निर्देश दिया है और तुम ईश्वर को मन से याद करो

रोजा सिर्फ उपवास का नाम नहीं अपितु अपनी आत्मा की शुद्धि करण का नाम है आत्मा के शुद्धिकरण के लिए आवश्यक है कि हम अपने पैरों को कार्यो की ओर ना ले जाएं अपने हाथों से बुरे कार्य न करें अपनी जुबान से किसी को बुरा ना कहें आंखों से बुरी चीजें न देखें हृदय एवं मस्तिष्क से कोई गलत बात न सोचें जब बंदा इन सभी इंद्रियों पर वश पा लेगा तो उसकी सोच विचार हिल जाए मस्तिक सब पवित्र हो जाएंगे एवं ईश्वर के निकट हो जाएगा

अल्लाह हमें (हजूर सल्लल्लाहो वाले वसल्लम) के ऐन इरशाद के अनुसार जीवन व्यतीत करने की क्षमता उत्पन्न करें जिसमें हमारा समाज प्रदेश और मुल्क मैं अमन सौहार्द भाईचारे का वातावरण कायम कर सकें और देश उन्नति के मर पर प्रस्तर हो सके

 

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