समीक्षा-
आज बहुत दिनों बाद एक ऐसी किताब की बातें मैं आपसे करने जा रहा हूँ उस किताब का विषय हम सब के बेहद करीब है, ये विषय सारे युवाओं के नसों में है, लोग इससे दूर भी भागना चाहते हैं मगर अछूते नही राह पाते, दोस्ती, पढ़ाई, स्कूल कॉलेज छात्र जीवन और राजनीति सब का ताना बाना है इस स्टोर में, सही अर्थ में ये एक ऐसा स्टोर है दूसरे शब्दों में ऐसा किराना स्टोर जहां सब कुछ मिलता है जो आम जनता के जीवन को उस पल में छूता है जो किसी भी युवा के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दिशा देने वाला समय या पल होता है।
यही है ‘जनता स्टोर’
यूं तो ये कहानी है मयूर अरुण दुष्यंत प्रताप राघवेन्द्र और राजनीति के चंद सूरमाओं की, राजस्थान यूनिवर्सिटी की कहानी दोस्ती से होते हुए जाट पात और राजनीति को समेटे हुए एक ऐसी रचना जिसे नवीन जी ने बेहद सरल शब्दों में जनता के सामने रख है, एक सुलझी हुई कथा जिसमे काफी उतार चढ़ाव है, प्यार और धोखा सब है। मैं आपको न तो कहानी बताने जा रहा न ही उस पे कोई सस्पेंस रख रहा ,मैं बस आपसे ये कह रहा हूँ कि एक बाए इस जनता स्टोर पे आइये, फिर आप अपने आपको इसकी कहानी का एक पात्र समझने लगेंगे ।
हाँ जो ज्ञान मेने पाया वो ये की सब कुछ करना मगर किसी का ईगो को ठेस न पहुंचाना क्योंकि क्या पता वो आग जाने कितने सालों बाद किसी की जान ले ले, और हां जो मंझे राजनीतिज्ञ होते हैं उनसे जरा दूर रहना वरना इस कुर्सी के खेल में आप पक्ष में हो या विपक्ष में अगर राजनीतिज्ञ हैं तो आपको कुछ न कुछ तो मिलेगा मगर आप दिल वाले हैं दिल से दोस्त बनाते हैं दिल से रिश्ता निभाते हैं तो आप अपनी बली जरूर चढ़ाएंगे इसमे या तो आप के किसी अजीज की जान जाएगी या आपका खुद का वजूद।
यही हुआ अपने कहानी के मुख्य पात्र मयूर का कैसे इन सब की जानकारी आप नवीन जी आए मांगिये या जनता स्टोर पे जाइये ।
भविष्य में मैं ऐसी ही रचनाओं की उम्मीद नवीन जी से करता हूँ और आप सब से जनता स्टोर पढ़ने की गुजारिश।
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