लोकपति सिंह की रिपोर्ट :
सैदूपुर : विनम्रता भगवान को प्रिय है। मानव जीवन का मूल उद्देश्य विनम्र बनकर रहने में ही निहित है। मनुष्य विनम्र बनकर सब कुछ सहज रूप से हासिल कर सकता है। वहीं व्यक्ति के अंदर अपने आपको सबसे बड़ा बनने का भाव आ जाए। तो छोटा सा कार्य भी कठिन हो जाता है। उक्त बातें मानव प्रेम यज्ञ सेवा समिति का खरौझा के तत्वावधान में राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय सरैया,बसाढ़ी के प्रांगण में चल रहे श्री राम कथा की तीसरी निशा पर कथावाचक नीरजानंद शास्त्री ने श्रोताओं को श्री राम कथा का रसपान कराते हुए कही। उन्होंने कहा कि समुद्र कितना भी बड़ा क्यों न हो मगर वह अपने खारा पानी के स्वभाव से किसी को प्रिय नहीं है। मगर उसी समुद्र का पानी जब बादल बनकर धरती पर टपकता है। तो लोग उसे पाकर धन्य-धन्य हो जाते हैं। कहा कि जब गाय का बछड़ा छोटा रहता है। तो वह दूध पीता है। वही जब बड़ा हो जाता है। तो उसे घास भूसा खिलाया जाता है। इसलिए छोटा बन करना हर तरह से लाभकारी है। कथावाचक कहते हैं कि भगवान राम प्रेम की प्रतिपूर्ति हैं। वही माता सीता भक्ति की जननी है। प्रेम और भक्ति का जब मिलन होता है। देवता भी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।
कथा में विश्वनाथ दुबे जयप्रकाश शर्मा राजेश सिंह अरुण श्रीवास्तव विनोद द्विवेदी बिहारी पांडेय, कन्हैया जयसवाल,बेद प्रकाश पाडेय, पूनम पाडेय, त्रिबेणी दूबे, आनंद नारायण पांडेय, रामचंद्र जयसवाल, सुनिल कुमार , उमाशंकर मौर्य, आज श्रोता उपस्थित रहे।