नई दिल्ली : भारतीय संविधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए सरकार और विपक्ष के सांसद ने संसद में जो कार्रवाई की है और संसद नहीं चले दिया है, इसकी साड़ी जवाबदेही दोनों पक्षों के सांसदों पर जाती है। TDP और कांग्रेस के सांसदो ने जो उथल पुथल मचाई है और स्पीकर के सामने उनके दफ्तर में उसका धरना प्रदर्शन किया, जिसके कारण मार्शल के द्वारा संसद से निकाल दिया दिया गया। दोनों पक्षों के सांसद ने एक दूसरे पर दोषारोपण करते हुए संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाया है। संसदीय परंपराओं को ताक पर रखा गया, जिसके कारण अरबों रुपया की बरबादी हुई है, जिसका बोझ गरीब जनता पर पड़ेगा।
संसद के मौजूदा सत्र में लगातार 23 दिनों तक विपक्ष के हंगामे के कारण कोई भी कम नहीं हुआ। जाहिर है इससे सदन के संचालन में जो करोड़ों का खर्च हुआ है वह बर्बाद हुआ है। सदन में जारी गतिरोध को लेकर जहां सरकार विपक्ष पर निशाना साध रही है, वहीं विपक्ष का कहना है कि इस हंगामे के लिए सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है। बहरहाल नुकसान की भरपाई के लिए सत्तारूढ़ एनडीए के सांसदों ने 23 दिनों की सैलरी न लेने का ऐलान किया है लेकिन, इस तरह का ऐलान अभी विपक्ष की तरफ से नहीं किया गया। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि अगर इसी तरह संसद में हंगामा जारी रहा और संसद में कोई काम काज नहीं हुआ तो फिर देश के विकास को दिशा किस तरीके से मिल पाएगी ? और केंद्र की मोदी सरकार ने जो न्यू इंडिया का नारा दिया है वह किस तरीके से साकार हो पाएगा ?