निर्मल यादव की रिपोर्ट :
फतेहपुर : यूँ तो सरकारें गरीबों के लिए नई नई कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से उनको लाभ पहुँचने का दम्भ भरती हैं, पर उनको अमलीजामा पहनाने का काम जिन मातहतों का होता है, वो पूरी तरह से भ्रष्टाचार में गले तक डूबकर इन योजनाओं को पलीता लगाने का काम करतें हैं।
सदर अस्पताल फतेहपुर में इन दिनों भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। डॉक्टरों की मनमानी इस कदर बढ़ गई है कि न तो वो समय से अस्पताल आते हैं और न ही गरीबों का इलाज सही से हो पाता है। सदर के बाहर फैले हुए निजी मेडिकल स्टोरों की इस वक्त चांदी है, क्योंकि डॉक्टर इन मेडिकल स्टोर वालों से मोटी रकम कमीसन के रूप में प्राप्त करते हैं और बदले में गरीबों का खून चूसने के लिए अस्पताल की उपलब्ध दवाइयां न लिखकर बाहर की दवाइयां मरीजों के पर्चे में लिखते हैं।
अब सवाल खड़ा होता है कि जो सरकार विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से अरबों रुपया इन योजनाओं के माध्यम से गरीब जनता तक पहुंचाने का प्रयास करती है, उन्ही योजनाओं की अर्थी उनके ही मातहतों द्वारा रोज निकाली जाती है, तो फिर कार्यवाही को कौन अंजाम देगा ?