नई दिल्ली : सीबीआई के डायरेक्टर पद से हटाए जाने के बाद भी सीबीआई के डायरेक्टर रहे आलोक वर्मा की मुश्किलें कम होने का अनाम नहीं ले रही है। पड़ा से हटाए जाने के बाद आलोक वर्मा ने नौकरी से ये कहकर इस्तीफ़ा दे दिया है, कि ये क्षण आत्ममंथन का है। वहीँ अब आलोक वर्मा पर देश से भारी-भरकम क़र्ज़ लेकर फरार हुए विजय माल्या और नीरव मोदी की मदद करने का आरोप लगा है। वहीँ आरोप लगने के बाद अब केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी है।
वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने नीरव मोदी के मामले में सीबीआई के कुछ आंतरिक ईमेलों के लीक होने पर आरोपी को ढूंढने की बजाय मामले को छिपाने की कोशिश की। उन्होंने ऐसा तब किया जब सबसे बड़े बैंक घोटाले की जांच चरम पर थी। एजेंसी ने जून 2018 में संयुक्त निदेशक राजीव सिंह (नीरव मोदी के मामले की जांच करने वाले अधिकारी) के कमरे को लॉक कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी) को बुलाया था ताकि उनके पास मौजूद डाटा को प्राप्त किया जा सके। हालांकि इस कार्य के पीछे की वजह कभी नहीं बताई गई।
दूसरा बड़ा आरोप वर्मा पर शिवशंकरन के खिलाफ जारी लुकआउट सर्कुलर को कमजोर करने का है। आईडीबीआई बैंक में 600 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने वाले शिवशंकरन ने को भारत से जाने की इजाजत दी गई। यह जानकारी मिली है कि संयुक्त निदेशक रैंक के अधिकारी ने शिवशंकरन से अपने दफ्तर और पांच सितारा होटल में मुलाकात की थी। यह मुलाकात सेवा नियमों और सीबीआई की आंतरिक प्रक्रियाओं के विपरीत थी। इस मुलाकात के बाद उसके खिलाफ जारी सर्कुलर को कमजोर कर दिया गया था।
तीसरा गंभीर आरोप माल्या के लुकआउट सर्कुलर को अक्तबूर 2015 में कमजोर करने का है। माल्या पर आईडीबीआई बैंक के साथ 900 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने के खिलाफ मामला दर्ज है। जिसमें यूके की अदालत ने कुछ दिनों पहले ही उसके प्रत्यर्पण का आदेश दिया है। सर्कुलर जारी होने के एक महीने के अंदर ही सीबीआई के संयुक्त निदेशक एके शर्मा, वर्मा के करीबी ने आव्रजन अधिकारियों से इसे कमजोर करके ‘हिरासत’ में लेने की बजाए ‘सूचित करने’ को कर दिया। इससे विजय माल्या को देश छोड़कर भागने में मदद मिली।