भाषा और संविधान

भाषा और संविधान

भाषा मात्र एक माध्यम है भावनाओं को व्यक्त करने का, सामने वाले व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने का। भाषा का कार्य सिर्फ इतना है कि किसी को अपनी बात को समझाया जा सके। भाषा की विविधता हमेशा से रही है लेकिन भाषा कभी भी अवरोधक नहीं बनी। इसको हम ऐसे देख सकते हैं कि आज तो विश्व भर में लगभग अधिकांश देशों में अंग्रेजी भाषा को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है जिससे व्यापार, नौकरी तथा अन्य किसी उद्देश्य के लिए कहीं भी मात्र अंग्रेजी भाषा के ज्ञान से आसानी से सभी कार्यों को अंजाम दे सकते हैं लेकिन पूर्व काल में जब अंग्रेजी भाषा सभी जगह व्याप्त नहीं थी तब भी देश विदेश में व्यापार होता था और बहुत सुचारू रूप से होता था।
वहीं भारत जैसे विविधता वाले देश में जहाँ औसतन हर एक सौ किलोमीटर पर भाषा बदल जाती है, वहाँ भाषा का एक अलग ही सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक महत्व होता है। भारत में भाषा की विविधता को ऐसे देख सकते हैं कि सन उन्नीस सौ इकसठ की जनगणना के अनुसार देश में कुल सौलह सौ बावन भारतीय भाषाएं थी। पीपुल्स भाषाई सर्वेक्षण (पीएलएसआई) ने दो हज़ार दस में भी सात सौ अस्सी भारतीय भाषाओं की गणना की।
सन उन्नीस सौ पचास में भारतीय संविधान में चौदह भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई थी। तदुपरांत कुछ भाषाओं की अधिक उपयोगिता को देखते हुए आठवीं अनुसूची में आठ और भाषाएं (सिंधी, कोकड़ी, नेपाली, मणिपुरी, मैथिली, डोंगरी, बोलो, संथाली) जोड़ी गई। इस प्रकार वर्तमान में भारतीय संविधान में मान्यता प्राप्त भाषाओं की संख्या बाइस है।
भाषाओं की विविधता के चलते देश में शासन संबंधी कार्यों के लिए भाषा का नियमन होना भी आवश्यक था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद तीन सौ तैंतालिस से तीन सौ इक्यावन में आधिकारिक भाषाओं के व्यवहार हेतु प्रावधान किये गये है। यह प्रावधान चार भागों में किया गया है: संघ की भाषा, क्षेत्रीय भाषा, कानून और न्याय तंत्र की भाषा और विशेष निर्देश।
संघ की भाषा संबंधी प्रावधानों के अंतर्गत संविधान के प्रारंभ यानी उन्नीस सौ पचास से अगले पंद्रह वर्षो अर्थात उन्नीस सौ पैंसठ तक आधिकारिक कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग हेतु प्रावधान किया गया। फिर उन्नीस सौ त्रेसठ में संसद द्वारा आधिकारिक भाषा अधिनियम पारित किया गया जिसमें आगे अनिश्चित समय के लिए अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रखने का प्रावधान किया गया। इस कानून में सन उन्नीस सौ सड़सठ में संशोधन किया गया जिसके अंतर्गत केंद्रीय सरकार द्वारा निर्गमित निर्देशो, प्रस्तावो, सामान्य निर्देशो, नियमनो, अधिसूचनाओ, प्रशासकीय सूचनाओ, अधिकारी कागजातो जो संसद के सामने रखे जाएं, ठेके, अनुबंधो, अनुज्ञप्तिओ, आज्ञा पत्रो आदि मामलों में अंग्रेजी और हिंदी का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया। हिंदी भाषा के प्रयोग में देवनागरी लिपि के अंतर्गत लिखी गई हिंदी को ही आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया गया परंतु अंको के आधिकारिक प्रयोग हेतु भारतीय अंकों के अंतराष्ट्रीय स्वरूप को ही स्वीकार किया गया, ना कि देवनागरी लिपि में लिखे गए अंको को।
क्षेत्रीय भाषा के संबंध में संविधान विभिन्न राज्यों की आधिकारिक भाषा के प्रयोग हेतु कुछ उल्लेखित नहीं करता। हां कुछ इसके संबंध में प्रावधान जरूर किए गए हैं, जैसे राज्य की विधान सभा द्वारा किसी एक या एक से अधिक भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया जा सकता है, केंद्र और राज्य के बीच अंग्रेजी को जोड़ने की भाषा का दर्जा दिया गया है, दो राज्य आपस में हिंदी भाषा के इस्तेमाल हेतु स्वतंत्र हैं, हिंदी और गैर-हिंदी राज्यों के बीच संवाद हेतु अंग्रेजी अनुवाद का प्रयोग होना चाहिए। यदि किसी राज्य की जनसंख्या की एक संतोषजनक संख्या उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को चाहती हैं तो राष्ट्रपति द्वारा उस भाषा को उस राज्य की पहचान के रूप में निर्देशित किया जाएगा।
कानून और न्यायतंत्र की भाषा के संबंध में संविधान में प्रावधान किए गए हैं। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की कार्यवाही का अंग्रेजी में होना, केंद्रीय और राज्य स्तर के नियमों, अधिनियमो, संशोधनों, आदेशों, निर्देशों, कानूनों आदि के आधिकारिक पाठों का अंग्रेजी में होना, राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की सहमति के साथ उच्च न्यायालय में हिंदी या क्षेत्रीय भाषा की अनुमति प्रदान की जा सकती है लेकिन फैसले का अंग्रेजी में अनुवाद जरूर होना चाहिए, संसद के सामने पेश होने वाले विधायकों का हिंदी में अनुवाद अनिवार्य आदि प्रावधान शामिल है।
विशेष निर्देशो के अंतर्गत  भारतीय संविधान कुछ भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा हेतु और हिंदी भाषा के विकास को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट निर्देशों को शामिल करता है, जैसे: नागरिकों को संघ और राज्य के अंतर्गत प्रयोग होने वाली किसी भी भाषा में विरोध पत्र दाखिल करने का अधिकार है, विशेष भाषाई बच्चे अपनी मातृभाषा में अपनी बात रख सकते हैं और राष्ट्रपति को भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त करना चाहिए आदि।
भारत की विभिन्न भाषाओं का जिक्र हो और उसकी राष्ट्र भाषा से संबंधित भ्रांति की बात ना हो तो यह बेमानी होगी। असल में यह भ्रांति फैली हुई है कि भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है लेकिन ऐसा है नहीं। संविधान द्वारा केंद्र को हिंदी भाषा के विकास को बढ़ावा देने हेतु जिम्मेदारी सौंपी गई जिसकी वजह से यह भारतीय संस्कृति की जन भाषा बन गई। राष्ट्रभाषा के तौर पर भारत में किसी एक भाषा को स्वीकार नहीं किया गया अपितु बाइस आधिकारिक भाषाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया है।
Priyank Bisnoi

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